(२५५)
इस तरह राम के एक दिन कम, छह महिने ऐसे बीत गये।
तब देवों ने उनके सम्मुख, विपरीत कार्य प्रारम्भ किये।।
इक देव मनुष का वेष बना, सूखे वृक्षों को सींच रहा।
पत्थर पर बीज डाल करके, दो मृतक बैल को खींच रहा।।
(२५६)
कोई पानी को मटके में रख,मक्खन की तरह विलोता है।
घानी में रेत डाल करके, दूसरा पेलने लगता है।।
अब बोले राम अरे मूर्खों, क्यों ऐसे कारज करते हो।
क्या तेल निकलता बालू से, पत्थर पे बीज क्यों बोते हो ?।।
(२५७)
तब कहा देवताओं ने नृप! क्यों मृत शरीर ले घूम रहे ?
क्यों नहीं कर रहे दाहक्रिया? क्यों मृतकाया को चूम रहे।।
श्रीराम कुपित होकर बोले, यह कोरा ख्याल तुम्हारा है।
मेरा भाई तो जीवित है,देखो तो कितना प्यारा है।।
(२५८)
फिर उनके आगे वही देव, उनके जैसी ही क्रिया करी।
इक मृतक डाल निज कांधे पर, समझाने की प्रक्रिया करी।।
जब पूछा रामप्रभू ने ये, मुर्दा डाले क्यों घूम रहे ?।
तब कहा प्रीतवश हे स्वामी ! तुम ही तो हो स्वामी मेरे ।।
(२५९)
हम सभी पिशाचों के स्वामी, अब आप बन गये राजा हैं।
होती समान में प्रीत सदा, ये ही ऐतिहासिक गाथा है।।
हट गया मोह अब रघुवर का, मन में अब लगे सोचने वे ।
मैं इतना ज्ञानवान होकर,क्यूँ ऐसी चेष्टा की मैंने।।