तर्ज-चलो मिल सब……………..
चलो तीरथ वंदन कर लो, निजात्मा को तीरथ कर लो,
जिनवर पंचकल्याणक तीर्थों का अर्चन कर लो।।चलो.।।
ऋषभ अजित अभिनंदन सुमती, अरु अनंत जिनवर।
नगरि अयोध्या में जन्मे, जो तीरथ है शाश्वत।।
अयोध्या को वंदन कर लो,
ऋषभदेव की जन्मभूमि का रूप नया लख लो।। चलो.।।१।।
श्रावस्ती में संभव, कौशाम्बी में पद्मप्रभू।
वाराणसि में श्री सुपार्श्व, पारस प्रभु को वंदूँ।।
चन्द्रपुरि तीरथ को नम लो,
जहाँ चन्द्रप्रभु जी जन्मे वह रज सिर पर धर लो।।चलो.।।२।।
पुष्पदन्त काकन्दी, शीतल भद्दिलपुर जन्मे।
श्री श्रेयांसनाथ तीर्थंकर, सिंहपुरी जन्मे।।
तीर्थ चम्पापुर को नम लो,
वासुपूज्य की पंचकल्याणक भूमि इसे समझो।।चलो.।।३।।
कम्पिल जी में विमलनाथ, प्रभु धर्म रतनपुरि में।
हस्तिनापुर में शांति कुंथु अर, तीर्थंकर जन्मे।।
चलो मिथिलापुरि को नम लो,
मल्लिनाथ नमिनाथ जन्मभूमी वंदन कर लो।। चलो.।।४।।
राजगृही में मुनिसुव्रत, नेमी शौरीपुर में।
कुण्डलपुर में चौबिसवें, महावीर प्रभू जन्मे।।
तीर्थ से भवसागर तिर लो,
जिनवर जन्मभूमि दर्शन कर जन्म सफल कर लो।। चलो.।।५।।
गणिनी ज्ञानमती जी की, प्रेरणा मिली भक्तों।
सभी जन्मभूमी जिनवर की, जल्दी विकसित हों।।
पुण्य का कोष सभी भर लो,
तीर्थ वंदना करके भव्यों पुण्यकोष भर लो।। चलो.।।६।।
तीर्थ प्रयाग व अहिच्छत्र, जृंभिका को वंदन है।
अष्टापद, सम्मेदशिखर, गिरनार का अर्चन है।।
तीर्थ पावापुरि को नम लो,
दीक्षा, ज्ञान व मोक्षकल्याणक भूमि नमन कर लो।।चलो.।।७।।
पूर्ण अर्घ्य का थाल सजाकर, फल अनर्घ्य चाहूँ।
सब तीर्थों की यात्रा करके, तीरथ बन जाऊँ।।
यही इच्छा पूरी कर दो,
कहे ‘‘चन्दनामती’’ अर्घ्य स्वीकार प्रभू कर लो।।८।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकतीर्थमांगीतुंगीआदिसिद्धक्षेत्र-
श्रीमहावीरजीआदि अतिशयक्षेत्रेभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-शेर छंद-
तीर्थंकरों के पंचकल्याणक जो तीर्थ हैं।
उनकी यशोगाथा से जो जीवन्त तीर्थ हैं।।
निज आत्म के कल्याण हेतु उनको मैं नमूँ।
फिर ‘‘चन्दनामती’’ पुन: भव वन में ना भ्रमूँ।।
।। इत्याशीर्वाद:।।