दिगम्बर जैन मुनिराज हमेशा नग्न रहते हैं। ठण्डी, गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में शरीर पर वस्त्र धारण नहीं करते। दिगम्बर जैन मुनि दिन में एक बार भोजन करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि अहिंसा का उपकरण मयूर पंख की पिच्छिका, शौच का उपकरण कमण्डलु और ज्ञान का उपकरण धर्म ग्रन्थ (साधना में सहायक उपकरण के रूप में) अपने पास रखते हैं। दिगम्बर जैन मुनि केशलोंच चार माह के भीतर ही भीतर अपने हाथों से करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि हमेशा पैदल ही विहार करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि मठ, मंदिर, आश्रम न तो बनाते हैं और न उन पर अपना स्वामित्व रखते हैं। दिगम्बर जैन मुनि नगर या तीर्थ पर वर्षावास में नियम रूप से एक जगह रुककर चातुर्मास करते हैं। शेष मौसम (गर्मी, सर्दी) में रुकना या विहार करना उनकी आवश्यकता या अनुकूलता पर निर्भर करता है।
दिगम्बर जैन मुनि रुपये, पैसे, जमीन, जायदाद, सोना, चाँदी, घर—मकान, नौकर—चाकर, भोजन—पानी अपने पास या अपने नाम से बैंक आदि में नहीं रखते हैं। दिगम्बर जैन मुनि कमण्डलु में रखे गए उबले (गर्म—बॉईल्ड) पानी का उपयोग केवल हाथ, पैर धोने (शुद्धि आदि के समय ही) में ही करते हैं, उस पानी को पीते नहीं हैं, न किसी को पिलाते हैं। दिगम्बर जैन मुनि रात्रि में आवागमन नहीं करते एवं रात्रि में बोलते भी नहीं हैं, मौन रहते हैं। दिगम्बर जैन मुनि अपने दोनों हाथों की हथेली को आपस में मिलाकर अंजुलि बनाकर उसमें भोजन करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि एक स्थान पर खड़े—खड़े होकर ही भोजन करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि भोजन में बाल आदि अशुद्ध वस्तुओं के निकलने पर अन्तराय कर देते हैं अर्थात् फिर भोजन नहीं करते, न पानी ही पीते हैं। केवल मुखशुद्धि करके वापस आ जाते हैं। दिगम्बर जैन मुनि सूखी घास, तृण की चटाई या लकड़ी के पाटे पर ही रात्रि में विश्राम करते हैं।