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31. श्रीराम का मोक्षगमन

October 24, 2013Booksjambudweep

श्रीराम का मोक्षगमन


(२८६)
आगे अब सुनो रामप्रभु की, आयु सत्तरह हजार वर्षों की थी।
पच्चीस वर्ष तक योगि रहे, फिर घाते कर्म अघाति भी।।
श्री रामचंद्र भगवान पुन:, इस जग में कभी न आयेंगे।
उनके आदर्श सभी जन को, युग—युग तक याद दिलायेंगे।।

(२८७)
हैं बीते वर्ष हजारों पर, हर वर्ष दशहरा आता है।
मर्यादाशील रामप्रभु की, जीवनगाथा दुहराता है।।
ये रामायण की कथा सुनो ‘‘त्रिशला’’ अब हुई पुरानी है।
पर बहुत प्रेरणादायक है, और लगती बड़ी सुहानी है।।

(२८८)
यह जितनी पढ़ी—सुनी जाये, उतना ही मन को सुख देती ।
जीवन के कठिन क्षणों में ये, जीने का साहस भर देती।।
इन कर्मों ने तीर्थंकर और, बलभद्र किसी को न छोड़ा।
सीताजी की रामायण से, अनुकरण करें थोड़ा—थोड़ा।।

(२८९)
‘‘श्री ज्ञानमती’’ माता द्वारा, जो लिखी ‘‘परीक्षा’’ पुस्तक है।
उसको आधार बना करके, जो काव्य बनाये अब तक हैं।।
यदि त्रुटि कहीं पर रह जाये, तो ज्ञानीजन सुधार कर दें।
यदि मानसपट पर छा जाये, तो इसको बार—बार पढ़ लें।।

Tags: jain ramayan
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