दर्शनं जिनसूर्यस्य, संसार ध्वान्त—नाशनम्।
बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थ प्रकाशनम्।।
जिनेन्द्ररूपी सूर्य का दर्शन संसाररूपी अंधकार का नाश करने वाला, मनरूपी कमल का विकासक तथा समस्त पदार्थों का प्रकाशक है। जिनेन्द्रदेव का दर्शन श्रावक का प्रमुख कर्तव्य कहा गया है। जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा को श्रद्धापूर्वक अवलोकन करना देवदर्शन कहलाता है। वीतरागी देव का दर्शन जन्म—जन्म के संचित पापों को नष्ट करने वाला स्वर्ग—मोक्ष को देने वाला कहा गया है। देवदर्शन करने का अचिन्त्य फल है— देवदर्शन के विचार करने से २ उपवास का, तैयारी करने से ३ उपवास का, घर से दर्शन हेतु निकलने से ५ उपवास का, कुछ दूर तक पहुँचने से १२ उपवास का, मंदिर की आधी दूरी तय करने पर १५ उपवास का, मंदिर के दर्शन से १ माह उपवास का, आँगन में प्रवेश पर ६ माह उपवास का, मंदिर के द्वार प्रवेश करने पर १ वर्ष उपवास का, वेदी की प्रदक्षिणा देने से १ हजार उपवास का, जिनप्रतिमा के अवलोकन से १ लाख उपवास का तथा भक्ति—स्तुति करने से अनंत उपवास का फल मिलता है।
(पद्मपुराण, भाग—२, सर्ग—३२, श्लोक १७८)
यदि मंदिर दूर लगे तो समझना नरक पास है।