Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

सार्वभौमिक प्रार्थना: मेरी भावना!

March 19, 2017जैनधर्म की गौरव गाथाjambudweep

सार्वभौमिक प्रार्थना: मेरी भावना


मेरी भावना के रचयिता जैन इतिहास के सूक्ष्म अन्वेषक, सुप्रसिद्ध लेखक कवि पं. जुगलकिशोर मुख्तार हैं। आपकी यह रचना जन—जन का कण्ठहार बन गयी है। इसकी अभी तक करोड़ों प्रतियाँ छप चुकी हैं। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कन्नड़ आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। अनेक विद्यालयों, अस्पतालों, कारखानों, बंदीगृहों इत्यादि स्थानों में प्रतिदिन इसका पाठ होता है।

जिसने रागद्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया।
सब जीवों को मोक्षमार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया।।

बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो।
भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।।१।।

मेरी भावना में हमारा अपना जीवन्त जीवनशास्त्र है। जीवन की आचारसंहिता है। इसमें केवल जैनदर्शन का सार नहीं है, अपितु दुनियाँ के सभी धर्मों का नवनीत समाहित है। यह रचना भाईचारे और साम्प्रदायिक सहिष्णुता का पैगाम है। राष्ट्रीय चरित्र का शिलालेख है। मेरी भावना देश के विकास की इकाई के रूप में गाया गया एक मंगलगान है। मेरी भावना सभी धर्मों के पुराणों के प्रथम पृष्ठ पर लिखा जाने वाला मंगलाचरण है। यह जाति/धर्म/देश/समाज और भाषा की सीमा से उन्मुक्त, मनुष्य की मनुष्यता का गौरवगान है। हिन्दुस्तान टाइम्स के सम्पादक गाँधीजी के सुपुत्र देवदासजी गाँधी द्वारा इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध विचारशील लेखक जार्ज बर्नाडशा से पूछा गया

प्रश्न—आपको सबसे प्रिय धर्म कौन—सा प्रतीत होता है।

उत्तर—जैन/धर्म में आत्मा की पूर्ण उन्नति तथा पूर्ण विकास की प्रक्रिया बतायी गयी है, इस कारण मुझे जैनधर्म सबसे प्रिय है। पुन:

प्रश्न—इसका क्या कारण है ?

उत्तर—जैनधर्म।

Previous post आदर्श मुख्यमंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल! Next post जैन लॉ के प्रणेता : बैरिस्टर चम्पतराय जैन!
Privacy Policy