1-जैन दर्शन के प्रखर तत्त्ववेत्ता क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी द्वारा पाँच भागों में लिखित—संकलित जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश की रचना की गई।
2-शब्दकोश एवं विश्व कोशों की परम्परा में एक अपूर्व एवं विशिष्ट कृति है।
3-इसमें जैन तत्त्व का ज्ञान, आचारशास्त्र, कर्मसिद्धान्त, खगोल—भूगोल, पौराणिक चारित्र, ऐतिहासिक व्यक्ति, राजपुरुष, आगम, शास्त्र व शास्त्रकार, धार्मिक एवं दार्शनिक सम्प्रदाय आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित छह हजार से अधिक शब्दों का सांगोपांग वर्णन, आचार्यों द्वारा रचित मूल ग्रंथों के संदर्भों, उद्धरणों तथा उनके हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया गया है।
4-इस कोश की एक विलक्षण विशेषता यह भी है कि विषय के भेद—प्रभेदों, करणानुयोग के विभिन्न विषयों तथा भूगोल से सम्बन्धित विषयों की रेखाचित्रों और सारणियों द्वारा सरलतम रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5-जैन शास्त्रों में प्रयुक्त किसी भी पारिभाषिक शब्द का अर्थ एवं विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए हम इसका प्रयोग कर सकते हैं।
6-शब्दों के अनुक्रमानुसार ही इन्हें चार भागों में विभक्त किया गया है। पाँचवाँ भाग शब्दानुक्रमणिका (इण्डेक्स) के रूप में संकलित है। अकारादि क्रम से अन्वेषणीय शब्द चारों भागों में निम्नानुसार व्यवस्थित हैं।
भाग — १ — अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:।
भाग — २ — क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ण, त, थ, द, ध, न।
भाग — ३ — प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व।
भाग — ४ — श, स, ष, ह।