१- बैरिस्टर चम्पतरायजी राष्ट्रीय चेतना के जागरण एवं उत्थान के प्रतीक थे।
२- आपने इंग्लैण्ड में जाकर १८९७ में बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की।
३- मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव के कारण आप शीघ्र ही कानूनी जगत् व सामान्य व्यक्तियों के बीच भी लोकप्रिय हो गए।
४- विदेशों में जैनधर्म के प्रचार करने में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
५- सम्मेदशिखरजी तीर्थराज की रक्षा के लिए आपने लंदन जाकर पैरवी की। लंदन में ही ऋषभ जैन लायब्रेरी तथा जैन सेंटर की स्थापना की।
६- आपने जैन लॉ का निर्माण कर जैन मुनियों के विहार पर प्रतिबंध हटवाया था।
७- आपके द्वारा की गई सेवाओं के कारण बाबू कामताप्रसादजी आपको ‘ग्रेट मैन ऑफ लैटर्स’ कहा करते थे।
८- बैरिस्टर साहब वस्तुत: जैन पुरातत्त्ववेत्ता थे। तुलनात्मक धर्म और विज्ञान को अधिक महत्त्व प्रदान करते थे। आपकी प्रमुख की आफ नॉलेज आदि १३ विशिष्ट और भी अनेक कृतियाँ हैं। आपने मूलत: अपनी रचनाओं में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जैनधर्म प्राचीन एवं विश्वधर्म हैं।
९- ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के आदर्श को अपनाने वाले बैरिस्टर साहब को ‘वि़द्यावारिधि’ ‘जैनधर्म दिवाकर’ जैसी उपाधियों से सम्मानित किया गया था, किन्तु आपकी सादगी ने भविष्य में कोई उपाधि न स्वीकार करने की प्रतिज्ञा कर ली।
१०- बैरिस्टर साहब केवल धर्मतत्त्व के दार्शनिक वेत्ता या श्रद्धालु नहीं थे, वरन् उन्होंने धर्म को अपने जीवन में यथासम्भव मूर्तिमान बनाने का उद्यम किया पञ्चाणुव्रतों का पालन करने वाले बैरिस्टर साहब ने विलायत में रहते हुए भी संयमी जीवन व्यतीत किया एवं सदा दिगम्बर साधु बनने की भावना रखते थे।