दक्षिण भारत जैन सभा के दावणगिरि अधिवेशन में २६ जनवरी, १९७९ के दिन गुरुदेव समन्तभद्रजी के शुभाशीष और प्रेरणा से वीर सेवा दल की स्थापना हुई। डॉ. धनंजय गुंडेजी प्रस्तावित एवं स्व. डॉ. डॉ. एन. जे. पाटील अनुमोदित यह युवा संगठन समाज का भूषण है। इस दल के संगठन को मजबूती प्रदान करने में बाल ब्रह्मचारी श्री बाबा साहब कुचनुरेजी (एडवोकेट) ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। ३२ वर्ष की युवावस्था में उनका देहावसान हो गया। आत्मविश्वास, धर्मसंस्कार, सेवाकार्य, राष्ट्रीय विचारधारा, व्यक्तित्व विकास, व्यसनमुक्त समाज का निर्माण, पर्यावरण संरक्षण, शाकाहार प्रचार, व्यवसाय मार्गदर्शन आदि के लिए यह दल सेवाभावी युवा संगठन के रूप में लगभग ३० साल से महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रांत में कार्यरत है। वीर सेवा दल की १८० गाँव में शाखाएँ एवं लगभग १०,००० स्वयं सेवक कार्यरत हैं। धार्मिक एवं सामाजिक कार्य करते हुए सेवादल के लगभग १८ युवकों ने मुनि दीक्षा धारण कर आत्मकल्याण के श्रेष्ठ पथ को अपनाया, यह समाज के लिए अत्यन्त ही गौरव की बात है। इसके साथ ही अनेक कार्यकर्ता ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर आत्मकल्याण एवं समाज सेवा में जुटे हुए हैं। बाल संस्कार एवं आदर्श श्रावक निर्माण के उद्देश्य से लगभग १८१ गाँव में जैन पाठशालायें, लौकिक शिक्षा क्षेत्र में ४ शिक्षण संस्थाएँ एवं अर्थ सहकार क्षेत्र में ३ पत संस्थाएँ / क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटीज सेवा दल द्वारा संचालित संस्थाएँ हैं। समाज के आमंत्रण पर लगभग १००० से अधिक प्रतिष्ठा आदि धार्मिक कार्यक्रमों में सेवादल द्वारा सेवाएँ प्रदान की जा चुकी हैं एवं आगे भी की जाती रहेंगी।