रजत रथ का निर्माण वाराणसी में सन् 1930 में किया गया था। जिसकी लागत २००००रुपये थी।
यह रजत रथ विश्व में अद्वितीय एवं जैन समाज की समान की बहुमूल्य धरोहर है।
रथ पेट्रोल मोटर के ऊपर निर्मित है रथ को खींचने हेतु दो रजत अश्व जुते हुए हैं।अश्व हुबहू घोड़ों के माप के बने हुए है।रथ का संचालक सारथी अश्वों की लगाम अपने हाथों में थामता है। पीछे श्री जी को विराजमान करने के लिए काष्ठ का सिंहासन बना हुआ है, जिसमें स्वर्ण एवं रजत का पत्ता चढ़ा हुआ है।
रथ के ऊपर जिन मंदिर के भाँति आकर्षक शिखर बने हुए हैं एवं नीचे वेदी का आकार बना हुआ है।इसी वेदी में सिंहासन पर के त्रिछत्र विश्व के नीचे श्री जी विराजमान होते हैं।
श्रीजी के दोनों और रथ पर भक्त खड़े होते हैं, जो चंवर ढुराकर श्रीजी के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं|
रथ के दोनों ओर दो सुन्दर द्वारपालों की रजतपत्र से निर्मित अत्यन्त आकर्षक प्रतिमायें बनी हुई हैं।
रथ के नीचे चारों ओर छोटे छोटे घुंघरू लगे हुए हैं। रथ के चलने पर इनसे सुन्दर कर्ण प्रिय ध्वनि चारो ओर गुंजायमान होती है।