जो क्षुधा तृषादि अट्ठारह दोषों से रहित ‘वीतराग’ ‘सर्वज्ञ’ और हितोपदेशी हैै वे ही सच्चे आप्त (देव)हैं । इन्हें अर्हंत तीर्थंकर, जिनेन्द्र भगवान ईश्वर नामो से जान जाता है। उन अट्ठारह दोषों के नाम क्षुधा, तृषा, रोग, शोक, जन्म, मरण, बुढ़ापा, भय, गर्व, राग, द्वेष, मोह चिन्ता, अरति, निद्रा, विस्मय, पसीना तथा खेद ये १८ दोष अरिहंत – सच्चे देव में नहीं होते है।शेष समस्त संसारी प्राणियों में अठारह दोष पाये जाते है।