दिगम्बर जैन साधु अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हैं जिनमें से ‘आचेलक्य’ (वस्त्र त्याग) एक मूलगुण है।
अट्ठाईसमूल गुणों के नाम इस प्रकार हैं- पंच महाव्रत समिति पन, पंचेन्द्रिय का रोध। षट् आवश्यक साधुगुण सात शेष अवबोध । ५ महाव्रत, ५ समिति, ५ इन्द्रिय विजय, ६ आवश्यक और शेष ६ गुण ये साधु के २८ मूलगुण है।
हिंसा, झूङ्ग, चोरी , कुशील और परिग्रह इन पाँचो पापों का मन वचन काय से सर्वथा त्याग कर देना अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । ये पाँच महाव्रत कहलाते है। ईयासमिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति और प्रतिष्ठापना समिति ये पांच समिति है। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पाँचो इन्द्रियों को वश करना ये इन्द्रिय विजय नामक पांच मूलगुण है। छह आवश्यक- समता, वन्दना, स्तव, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, व्युत्सर्ग । स्नान का त्याग, भूमि पर शयन, वस्त्र त्याग, केशों का लोच, दिन में एक बार लघुभोजन दांतोन का त्याग और खड़े होकर आहार ग्रहण ये ७ शेष गुण है।