वर्तमान काल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का नाम भगवान आदिनाथ है। आदिनाथ भगवान को आदिब्रह्मा, पुरूदेव, वृषभदेव, ऋषभदेव, युगादि पुरूष, विधाता आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
जब तृतीय काल में चौरासी लाख वर्ष पूर्व, तीन वर्ष साढ़े आठ मास प्रमाण काल शेष रह गया था तब अन्तिम कुलकर महाराजा नाभिराय की महारानी मरूदेवी ने शाश्वंत तीर्थ अयोध्या से प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को जन्म दिया। जब वृषभदेव युवावस्था को प्राप्त हो गए तब उनके पिता ने इन्द्र की अनुमति से वृषभदेव का विवाह यशस्वती और सुनन्दा नाम की कन्याओं के साथ कर दिया । भगवान् वृषभदेव के भरत, बाहुबली आदि एक सौ एक पुत्र और ब्राह्मी सुन्दरी नाम से दो कन्याएं हुई । भगवान ने सर्वप्रथम ब्राह्मी को ‘अ आ’ आदि लिपि (ब्राह्मी लिपि) और सुन्दरी को इकाई दहाई आदि गणित विद्या सिखाई । अनंतर सभी पुत्रों को भी सम्पूर्ण विद्याओं में, शास्त्रों में और शस्त्र कलाओं में निष्णात कर दिया।
प्रजा को असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प और कला इन छह आजीविका के उपाय बतलाने से भगवान प्रजापति कहलाए। क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र नाम से तीन वर्णों की स्थापना की।
विवाह विधि आदि प्रचलित की। अकम्पन आदि चार महापुरूषों को राज्य व्यवस्था बताकर ‘महाराज’ पद पर उन्हें नियुक्त किया। अनंतर मोक्ष मार्ग की स्थिति प्रगट करने के लिए दिगम्बर मुनि हो गए। अंत मे भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया ।