जिनेन्द्रदेव की अष्टद्रव्य से पूज, जिनवाणी की पूजा, गुरूओं की पूजा करना आराधना है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्र व सम्यक तप इन चारों का यथा योग्य रीति से उद्योतन करना, उनमें परिणति करना, इनको दृढ़ता पूर्णक धारण करना उसके मंद पड़ जाने पुन: पुन: जागृत करना, उनका आमरण पालन करना जो (निश्चय) आराधना कहलाती है।
आराधना के चार भेद है- दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप अथवा जिनागम में संक्षेप से आराधना के दो भेद कहे है- सम्यक्तवाराधना, चारित्राराधना । आराधना नाम से एक पुस्तक गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी ने लिखी है।