सर्वज्ञ वीतराग देव द्वारा प्रणीत जीवादिक तत्त्वों में रूचि होने को आस्तिक्य कहते है। स्वत: सिद्ध नव तत्त्वों के सद्भाव में तथा धर्म में धर्म के हेतु में और धर्म के फल में जो निश्यच रखना है वह जीवादि पदार्थों में अस्तित्व बुद्धि रखने वाला आस्तिक्य गुण है।