ये सब ही गणधर अष्ट ऋद्धियों से सहित होते है पांच महाव्रतो के धारक तीन गुप्तियो से रक्षित पाँच समितियों से युक्त आङ्ग मदों से रहित सात भयो से मुक्त, बीज, कोष्ठ पदानुसारी व संभिन्नश्रोतृत्व बुद्धियों से उपलक्षित प्रत्यक्ष भूत, उत्कृष्ट अवधिज्ञान से युक्त, तप्र तप ऋद्धि के प्रभाव से मल मूत्र रहित, दीप्त तपलब्धि के बल से सर्वकाल उपवास युक्त होकर भी शरीर के तेज से दशों दिशाओं को प्रकाशित करने वाले सर्वोषधि लब्धि के निर्मित से समस्त औषधियों स्वरूप, अनन्त बल युक्त होने से हाथ की कनिष्ठ अंगुली द्वारा तीनो लोको को चलायमान करने में समर्थ, अमृत-आस्त्रवादि ऋद्धियों के बल से हस्तपुर में गिरे हुए सर्व आहारों को अमृतस्वरूप से परिणामों में समर्थ, महातप गुण से कल्पवृक्ष के समान अक्षीण महानस लब्धि के बल से अपने हाथ में गिरे आहार की अक्षयता के उत्पादक अधोरतप ऋद्धि के माहात्म्य से जीवों के मन, वच, एवं कायगत समस्त कष्टों को दूर करने वाले, संपूर्ण विद्याओं के द्वारा सेवित चरण मूल से संयुक्त, आकाश चारण गुण से सब जीव की रक्षा करने वाले वचन और मन से समस्त पदार्थों के सम्पादन करने में समर्थ, अणिमादिक आठ गुणों के द्वारा सब देवसमूह को जीतने वाले, तीनों लोको के जनो में श्रेष्ठ परोपदेश के बिना अक्षर व अनक्षर रूप से भाषाओं में कुशल, समवसरण में स्थित जनमात्र के रूप के धारी होने से हमारी भाषाओं से हम हमको ही कहते है। इस प्रकार सबको विश्वास कराने वाले, तथा समवसरणस्थ जनों के कर्ण इन्द्रियों में अपने मुंह से निकली हुई अनेक भाषाओं के सम्मिश्रित प्रवेश के निवारक ऐसे गणधर देव ग्रंथकर्ता है क्योंकि ऐसे स्वरूप के बिना ग्रंथ की प्रामाणिकता का विरोध होने से धर्म रसायन द्वारा समवसरण के जनों का पोषण बन नहीं सकता। ऋषभदेव के सर्व (८४) गणधर सातों ऋद्धियों से सहिते थे और सर्वज्ञदेव के अनुरूप थे।