पूर्व शरीर का त्याग कर नवीन शरीर को धारण करना जन्म है। जरायुज अण्उज व पोतज जीवों का गर्भ जन्म होता है। स्त्री के उदर में शुक्र और शोणित के परस्पर गरण अर्थात् मिश्रण को गर्भ कहते है। अथवा माता के द्वारा उपभुक्त आहार के गरण होने को गर्भ कहते है। माता का रूधिर और पिता वीर्यरूप पुद्गल का शरीररूप ग्रहणकरि जीव का उपजना सो गर्भ जन्म है। जन्म के तीन भेद है।
सम्मूच्र्छन जन्म, गर्भ और उपपाद के भेद से तीन प्रकार का है।
सम्मूच्र्छन जन्म- अपने शरीर के योगय पुद्गल औदारिक परिमाणुओं के द्वारा माता पिता के रज ओर वीर्य के बिना ही शरीर की रचना होना सो सम्मूच्र्छन जन्म है।
गर्भजन्म – स्त्री के उदर में रज और वीर्य के मेल से जो जन्म होता है उसे गर्भ जन्म कहते है।
उपपाद जन्म- माता पिता के रज और वीर्य के बिना लघु अन्तमुर्हूर्त में ही सम्पूर्ण शरीर सहित देवों का संपुर शैय्या में और नारकियों का उष्ट्र (ऊंट) मुख आदि आकार के स्थान विशेष में उत्पन्न होना उत्पाद जन्म है। यह उत्पाद जन्म वाला शरीर वैक्रियिक रज कणों का बनता है।