प्रश्न १- ऊर्जयन्त पर्वत से कौन-२ मोक्ष गए?
उत्तर- ऊर्जयन्त पर्वत से भगवान नेमिनाथ, प्रद्युम्न, शंबुकुमार, अनिरूद्धकुमार आदि बहत्तर करोड़ सात सौ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है।
प्रश्न २- स्वयंभू स्तोत्र में ऊर्जयन्त पर्वत की क्या विशेषता लिखी है?
उत्तर- स्वयंभू स्तोत्र में लिखा है- हे ऊर्जयन्त! तू इस पृथ्वीतल के मध्य में ककुद के समान ऊँचा है, विद्याधर दंपती तेरे ऊपर विचरण करते रहते हैं तू शिखरों से सुशोभित है, मेघ पटल तेरे तटभाग को ही छू पाते हैं तथा स्वयं इन्द्र ने तेरे पवित्र अंग पर वज्र से नेमिनाथ भगवान के चिन्ह अंकित किए थे।
प्रश्न ३- ऊर्जयन्त पर्वत पर द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ कूट पर किन-२ मुनिराज के चरण चिन्ह बने हुए है?
उत्तर- ऊर्जयन्त पर्वत पर द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ कूट पर क्रमश: मुनिराज अनिरूद्ध के, शंबु के और प्रद्युम्न के चरण बने हुए है।
प्रश्न ४- ऊजर्यन्त पर्वत की पांचवी टोंक पर किसके चरण है?
उत्तर- ऊजर्यन्त पर्वत की पांचवी टोंक पर भगवान नेमिनाथ के चरण है।
प्रश्न ५- भगवान नेमिनाथ के समवसरण में कितने गणधर थे?
उत्तर- भगवान नेमिनाथ के समवसरण में वरदत्त आदि ग्यारह गणधर थे।
प्रश्न ६- भगवान नेमिनाथ के समवसरण में कुल कितनी आर्यिकाएँ थी। प्रधान आर्यिका का नाम बताओ?
उत्तर- भगवान नेमिनाथ के समवसरण में कुल चालीस हजार आर्यिकाएँ थी। इनमें राजीमती आर्यिका प्रधान गणिनी थी।
प्रश्न ७- ऊर्ध्वगति किसे कहते है?
उत्तर- ऊपर अर्थात् सिद्ध शिला पर जान ऊध्र्व गति है।
प्रश्न ८- आठवीं पृथ्वी का नाम बताओ?
उत्तर- ईषत् प्राग्भार नाम की आठवी पृथ्वी है।
प्रश्न ९- तत्त्वार्थसूत्र में मुक्त जीव के ऊर्ध्वगमन में कितने और कौन से कारण बताएं है?
उत्तर- तत्त्वार्थसूत्र में मुक्त जीव के ऊर्ध्वगमन में ४ कारण बताए है-
(१) पूर्व प्रयोग से (२) संग रहित होने से (३) बन्ध का नाश होने से (४) गति परिणाम अर्थात् ऊर्ध्व गमन स्वभाव होने से मुक्त जीव ऊपर को ही जाता हैं।
प्रश्न १०- मुक्त जीव के ऊर्ध्वगमन में ४ दृष्टान्त कौन से है?
उत्तर- १ कुम्हार द्वारा घुमाए गए चाक की तरह पूर्व प्रयोग से
२ लेप दूर हो चुका है जिसका ऐसे तूम्बे की तरह संग रहित होने से
३ एरण्ड के बीज की तरह बंधन रहित होने से
४ अग्नि की शिखा(लौ) की तरह ऊर्ध्वगमन स्वभाव से ऊपर को गमन करता है।
प्रश्न ११- मुक्त जीव का गमन अलोकाकाश में हैं या नही?
उत्तर- मुक्त जीव अलोकाकाश में धर्मद्रव्य के न होने से गमन नहीं कर सकता। अत: मुक्त जीव लोकाकाश तक ही जाता है।
प्रश्न १२- लोकाकाश का प्रमाण कितना है?
उत्तर- लोकाकाश का प्रमाण ३४३ राजु प्रमाण पुरूषाकार है।
प्रश्न १३- लोकाकाश कौन से द्रव्यों से व्याप्त है?
उत्तर- लोकाकाश जीव, पुद्गल धर्म, अधर्म, और काल इन पाँच द्रव्यों से व्याप्त है।
प्रश्न १४- लोक के ३ भेद कौन से है?
उत्तर- (१) अधोलोक (२) मध्यलोक (३) ऊर्ध्वलोक
प्रश्न १५- सम्पूर्णलोक की ऊँचाई एवं मोटाई कितनी है?
उत्तर- सम्पूर्णलोक की ऊँचाई १४ राजु और मोटाई ६ राजु है।
प्रश्न १६- एक राजु कितने योजन का होता है?
उत्तर- असंख्यातों योजनों का एक राजु होता है।
प्रश्न १७- अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक कितने-२ राजु में है?
उत्तर- ६ राजु में अधोलोक एवं ६ राजु में स्वर्गादि है। इन दोनों के मध्य में ८८ हजार ४० योजन ऊचाँ मध्यलोक है जो कि ऊर्ध्वलोक का कुछ भाग है वह राजु में नहीं के बराबर हैं।
प्रश्न १८- ऊर्ध्व लोक में क्या-२ है?
उत्तर- ऊर्ध्व लोक में सोलह स्वर्ग, नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर है। उसके ऊपर सिद्ध शिला हैं।
प्रश्न १९- सोलह स्वर्गों के नाम बताओ?
उत्तर- (१) सौधर्म (२) ईशान (३) सानत्कुमार (४) माहेन्द्र (५) ब्रहम (६) ब्रह्मोत्तर (७) लांतव (८) कापिष्ठ (९) भुक्र (१०) महाशुक्र (११) शतार (१२) सहस्रार (१३) आनत (१४) प्राणत (१५) आरण (१६) अच्युत
प्रश्न २०- सोलह स्वर्गों के कितने इन्द्र हैं और इनकी क्या संज्ञा है?
उत्तर- सौधर्म ईशान युगल के २ इन्द्र, सनत्कुमार-माहेन्द्र युगल के २ इन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर शतार- सहस्रार युगल का १ इन्द्र, आनत-प्राणत युगल के २ इन्द्र और आरण- अच्युत युगल के २ इन्द्र ऐसे १२ इन्द्र होते है। इनके स्थानों की कल्प संज्ञा होने से १२ कल्प कहलाते है।
प्रश्न २१- कल्पातीत किनकी संज्ञा है?
उत्तर- सोलह स्वर्ग के ऊपर ८ ग्रैवेयक, ८ अनुदिश और ५ अनुत्तर विमान है । इनमें इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि भेद न होने से ये कल्पातीत कहलाते है।
प्रश्न २२- नौ ग्रैवेयक के नाम बताओ?
उत्तर- (१) सुदर्शन (२) अमोघ (३) सुप्रवुद्ध (४) यशोधर (५) सुभद्र (६) सुविशाल (७) सुमनस (८) सौमनस (९) प्रीतिकर ।
प्रश्न २३- नौ अनुदिश के नाम बताओ?
उत्तर- (१) अर्चि, अर्चिमालिनी (३) वैर (४) वैरोचन (५) सोम (६) सोमरूप (७) अंक (८) स्फटिक (९) आदित्य
प्रश्न २४- पाँच अनुत्तर के नाम बताओ?
उत्तर- (१) विजय (२) वैजायन्त (३) जयंत (४) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्धि ।
प्रश्न २५- सिद्धों का निवास कहांँ है?
उत्तर- आठवी पृथ्वी ‘ईषत्प्राग्भार’ के ऊपर सात हजार पचास धनुष जाकर सिद्धों का आवास है।
प्रश्न २६- सिद्धों की उत्कृष्ट व जघन्य अवगाहना कितनी है?
उत्तर- सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ पच्चीस धनुष और जघन्य साढ़े तीन हाथ है।