‘‘दिव्यशक्ति गणिनी माता की तपस्या के प्रति नतमस्तक हुआ सम्पूर्ण विश्व’’
१०८ भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का भव्य उद्घाटन-
कड़ी मेहनत, कठिन साधना और मुश्किलों को आसान बनाते हुए २० साल के उपरांत जब १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का निर्माण पूर्ण हुआ, तब सम्पूर्ण विश्व की दिगम्बर जैन समाज के साथ ही शासन-प्रशासन के व्यक्तियों में भी हर्ष की लहर कायम हो गई और प्रत्येक व्यक्ति का रोम-रोम पुलकित हो गया था, जिसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। सर्वप्रथम दिनाँक २४ जनवरी २०१६ को प्रतिमा के नेत्र खुलते ही प्रतिमा की पूर्णता घोषित की गई। पश्चात् ११ फरवरी से १०८ फुट भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव का ऐतिहासिक शुभारंभ हुआ।
१२५ पिच्छीधारी साधु-साध्वियों के महत्वपूर्ण सान्निध्य में एवं विशेषरूप से आचार्य श्री शांतिसागर परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज के प्रमुख सान्निध्य और परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ससंघ के सान्निध्य में इस विशाल प्रतिमा का पंचकल्याणक शतकगुणित अतिशय को प्राप्त करके विश्व शिखर पर अपनी प्रभावना के गुण गा रहा था।
अनेकानेक विशिष्ट उपलब्धियों और कीर्तिमान के साथ भगवान ऋषभदेव का अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव औपचारिक घोषणा के अनुसार लगातार ६ मार्च तक मनाया गया। पश्चात् यह आयोजन सतत महामस्तकाभिषेक जून २०१६ तक मनाने के प्रारूप में कमेटी द्वारा उद्घोषित किया गया। महोत्सव में ११ फरवरी से १७ फरवरी तक भगवान की अतिशयकारी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न की गई। पुन: १८ फरवरी को भगवान का ऐतिहासिक प्रथम महामस्तकाभिषेक आयोजित किया गया, जिसमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय कलश एवं पंचामृत सामग्री के द्वारा विशेष सौभाग्यशाली भक्तों ने भगवान का अभिषेक करके समूचे विश्व में सप्तरंगी महामस्तकाभिषेक की गूंज फैलाई।
इसी के साथ हजारों नहीं लाखों की संख्या में सम्पूर्ण देश ही नहीं विदेश से भी भक्तों ने ऋषभगिरि, मांगीतुंगी पधारकर भगवान के महामस्तकाभिषेक में भाग लिया और ६ मार्च तक लगभग १५ लाख श्रद्धालुओं ने अतिशयकारी भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का अवलोकन, पूजा-अनुष्ठान व महामस्तकाभिषेक करके अपने जीवन को धन्य-धन्य किया। महोत्सव की ऐसी आशातीत सफलता को देखकर हर किसी ने ‘‘न भूतो न भविष्यति’’ कहकर नि:शब्द हो जाना ही उचित समझा। इस महोत्सव की चमक-दमक तथा शब्दातीत योजना का प्रारूप हर किसी आने वाले भक्त के दिल, दिमाग और नयनों को अतितृप्त करके संतोष के महासागर में सतत स्नान कराता रहा।
आइये कतिपय शब्दों में गूंथे हुए इस महोत्सव के एक संक्षिप्त इतिहास से आपको परिचित कराते हैं-
माघ शुक्ला तृतीया, दिनाँक ११ फरवरी, गुरुवार का दिन इतिहास का सर्वश्रेष्ठ दिन था, जब १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा के अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक हेतु झण्डारोहण का मुहूर्त प्राप्त हुआ। २० साल की कड़ी मेहनत के उपरांत प्राप्त हुए जिनबिम्ब के लिए जब महापंचकल्याणक की शुभांरभ तिथि आई, तो इस तिथि को हर व्यक्ति ने अपने जीवन में खूब सराहा और महान अतिशयकारी तथा शुभ मानकर भक्तों ने ११ फरवरी का दिन अपने जीवन के लिए भी मंगलकारी प्रतीत किया।
इस महोत्सव का झण्डारोहण भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की प्रथम महिला-अध्यक्ष सौ. सरिता एम.के. जैन-चेन्नई के द्वारा किया गया। समस्त साधु-संतों की सन्निधी में प्रतिष्ठाचार्य पं.विजय कुमार जैन-जम्बूद्वीप, पं. नरेश कुमार जैन-जम्बूद्वीप, पं. दीपक उपाध्याय-सांगली, पं. प्रदीप जैन मधुर-मुम्बई, पं. वृषभसेन उपाध्याय-मालगांव, पं. सतेन्द्र जैन-तिवरी व पं. सम्मेद उपाध्याय-साजणी के द्वारा महोत्सव का झण्डारोहण विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न कराया गया।
विशेषरूप से इस दिन तुरही वादकों ने महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर तुरहीनाद का उद्घोष करके महोत्सव की अगुवानी की तथा समस्त साधु-संतों का स्वागत-अभिनंदन किया। इस प्रकार यह महोत्सव झण्डारोहणपूर्वक ठाट-बाट के साथ प्रारंभ हुआ।समारोह के शुभारंभ अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष माननीय श्री हरिभाऊ जी बागड़े का आगमन भी हुआ और उनके साथ नासिक जिले के जिलाधिकारी माननीय श्री दीपेन्द्र सिंह कुशवाहा जी और अनेक प्रशासनिक पदाधिकारियों ने भी इस अवसर पर उपस्थित रहकर समारोह का उद्घाटन किया।
शुभारंभ दिवस पर ही श्री श्रीपाल जैन गंगवाल-गेवराई परिवार द्वारा मण्डप उद्घाटन करके भगवान को पण्डाल की वेदी पर विराजमान किया गया तथा वेदी पर मंगल कलश की स्थापना वंâचनबाई विद्या प्रकाश, संजय, अजय दीवान परिवार-सूरत के द्वारा की गई। साथ में अखण्ड दीप प्रज्ज्वलन श्री अनिल कुमार जैन, प्रीतविहार-दिल्ली के हस्ते सम्पन्न हुआ। इस दिन मध्यान्हकाल में सकलीकरण विधि, अंकुरारोपण, जाप्यानुष्ठान संकल्प आदि सम्पन्न हुआ और रात्रि में प्रतिष्ठाचार्यों द्वारा भेरीताड़न विधि आदि करवाई गई।
इस दिन कार्यक्रम के शुभारंभ में प्रतिष्ठाचार्यों द्वारा मंगलाष्टकपूर्वक मंगलाचरण किया गया पुन: सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज सहित समस्त आचार्यों को एवं पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी, प्रज्ञाश्रमणी र्आियका श्री चंदनामती माताजी व पूज्य पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी सहित अन्य आर्यिकाओं को गुरुआज्ञा हेतु श्रीफल समर्पित किये गये। इस अवसर पर समस्त प्रतिष्ठाचार्यों को भी समिति द्वारा आचार्य निमंत्रण हेतु सम्मानित किया गया।
माघ शुक्ला चतुर्थी/पंचमी, दिनाँक १२ फरवरी, शुक्रवार के दिन महोत्सव की निर्विघ्न सफलता हेतु प्रतिष्ठाचार्यों द्वारा यागमण्डल विधान सम्पन्न कराया गया।
इस अवसर पर प्रमुख पात्रों में सौधर्म इन्द्र श्री जे.सी.जैन-सौ. सुनीता जैन-हरिद्वार, भगवान के माता-पिता डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल-सौ. कुमकुमदेवी पापड़ीवाल-पैठण, धनकुबेर श्री मनोज जैन-सौ. नवीता जैन-मेरठ, महायज्ञनायक श्री प्रमोद कुमार जैन-सौ. अनीमा जैन, मॉडल टाउन-दिल्ली, ईशान इन्द्र-श्री सुरेश संघवी-सौ. अंजना संघवी-बांसवाड़ा (राज.), महामडलीक राजा श्री महावीर प्रसाद जैन-सौ. कुसुमलता जैन, साउथ एक्स.-दिल्ली, श्री कमलचंद जैन-सौ. मैनासुन्दरी जैन, खारीबावली-दिल्ली,श्री अनिल कुमार जैन-सौ. अनीता जैन, प्रीतविहार-दिल्ली, सानत्कुमार इन्द्र श्री सुनील कुमार जैन सर्राफ-सौ. मीनाक्षी जैन-मेरठ, माहेन्द्र इन्द्र श्री दीपक जैन-सौ. सुभाषिनी जैन-वाराणसी (उ.प्र.) आदि मंच पर विराजमान प्रमुख पात्रों व इन्द्र-इन्द्राणियों ने भक्तिभाव के साथ मंडल पर श्रीफल आदि अघ्र्य समर्पित करते हुए यागमण्डल विधान सम्पन्न किया।
इससे पूर्व प्रतिदिन अनुसार सर्वप्रथम प्रात:काल २४ विभिन्न वेदियों पर २४ तीर्थंकर भगवन्तों का भव्य पंचामृत अभिषेक इन्द्र-इन्द्राणियों द्वारा सम्पन्न किया गया व सौभाग्यशाली भक्तों ने शांतिधारा का पुण्यार्जन किया।विशेष – इसी दिन से दशलक्षण पर्व एवं सोलहकारण पर्व का भी शुभारंभ हुआ तथा १२ फरवरी, माघ शुक्ला चतुर्थी/पंचमी को ही भगवान विमलनाथ का जन्म, तप कल्याणक भी मनाया गया।
माघ शुक्ला षष्ठ, दिनाँक १३ फरवरी, शनिवार को गर्भकल्याणक की पूजा सम्पन्न की गई और सायंकाल भगवान की माता सौ. कुमकुम देवी पापड़ीवाल की गोद भराई का आयोजन भव्यता के साथ किया गया।
पश्चात् सुधर्मा सभा का आयोजन हुआ। साथ ही भगवान की माता मरुदेवी बनी सौ. कुमकुमदेवी द्वारा १६ स्वप्नों का दिग्दर्शन और भगवान का माता के गर्भ में आने का मंचन अत्यन्त सुन्दररूप में मंच पर दिखाया गया। माता के गर्भ में भगवान के आगमन पर अष्टकुमारी देवियाँ उनकी सेवा में लग गई और भगवान की माता ने पिता नाभिराय बने डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल से अपने १६ स्वप्नों का अर्थ जानकर अत्यन्त हर्ष को प्राप्त किया।
महोत्सव में अष्टकुमारी देवियाँ बनने का सौभाग्य कु. नमिता कासलीवाल-औरंगाबाद, कु. अंकिता कासलीवाल-औरंगाबाद, कु. साक्षी जैन-खण्डवा, कु. ईशा पाटनी-औरंगाबाद, कु. हर्षिता पाटनी-लोनी, कु. मोक्षा जैन-सूरत, कु. शैफाली जैन-टिेकैतनगर एवं कु. गौरी जैन-सटाणा ने प्राप्त किया।
इस अवसर पर धनकुबेर बने श्री मनोज जैन-नविता जैन-मेरठ (उ.प्र.) ने तीर्थंकर बालक के गर्भ में आने एवं जन्म के उपलक्ष्य में रत्नवृष्टि करके पुण्यार्जन किया और भक्तों को रत्न तथा समवसरण का सुन्दर रजत मोमेन्टो भेंट किया।
माघ शुक्ला सप्तमी, दिनांक १४ फरवरी, रविवार को भगवान का जन्मकल्याणक का उत्सव भारी हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस दिन डेढ़लाख से ज्यादा श्रद्धालु भक्त जन्मकल्याणक मनाने के लिए ऋषभगिरि, मांगीतुंगी में उपस्थित हुए। प्रात:काल मंच पर पूज्य गणिनीप्रमुख र्आियका श्री ज्ञानमती माताजी के मुखारविंद से मंत्रोच्चारपूर्वक भगवान के जन्म की घोषणा की गई।
मध्य लोक में जब भगवान ऋषभदेव का अयोध्या नगरी में स्थित सर्वतोभद्र महल में जन्म हुआ, तब दूसरी ओर स्वर्ग के इन्द्रों में हड़कम्प मच गई और सौधर्म इन्द्र का आसन कम्पायमान होने लग गया, समस्त इन्द्रों के मुकुट झुक गये आदि दृश्य का मंचन अत्यन्त सुन्दर रूप में सभा के मध्य किया गया। इस अवसर पर सौधर्म इन्द्र बने श्री जे.सी. जैन एवं शचि इन्द्राणी सौ. सुनीता जैन-हरिद्वार ने अत्यन्त आकर्षक मनोभावों के साथ सभा के मध्य संवाद प्रस्तुत किया और हजारों इन्द्र-इन्द्राणियों के साथ ऐरावत हाथी पर सौधर्म इन्द्र का आगमन सर्वतोभद्र महल में हुआ। यहाँ भगवान के पिता की आज्ञा से सौधर्म इन्द्र ने सुमेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर भगवान के जन्माभिषेक की स्वीकृतिली और शचि इन्द्राणी ने तीर्थंकर बालक को लाकर सौधर्म इन्द्र के हाथों में सौंपा। इस प्रकार सौधर्म इन्द्र ने १००० नेत्र बनाकर तीर्थंकर प्रभु की मनोहारी मुद्रा को निहारा तथा ऐरावत हाथी पर लेकर जुलूस के साथ भगवान का जन्माभिषेक किया। भगवान का जन्माभिषेक पाण्डाल परिसर में बनी पाण्डुकशिला पर हुआ। जन्मकल्याणक जुलूस का दृश्य ऐतिहासिक था, जिसमें हजारों नर-नारियों ने रंग-बिरंगी और केशरिया ध्वज लेकर जुलूस का आनंद द्विगुणित किया। बाजे-गाजे और साधु-संतों के विशाल संघ समूह के साथ जुलूस का आनंद देखते ही बनता था।
इस प्रकार जन्मकल्याणक के अवसर पर हजारों नर-नारियों ने भगवान के जन्माभिषेक का पुण्य अर्जित किया। इस दिन जन्मकल्याणक की पूजा भी सम्पन्न हुई तथा सायंकाल में भगवान का पालना व बालक्रीड़ा सम्पन्न कराई गई। इस दिन मध्यान्ह में आकारशुद्धि आदि क्रियाएँ सम्पन्न की गई।
माघ शुक्ला अष्टमी, दिनाँक १५ फरवरी, सोमवार के दिन भगवान का दीक्षाकल्याणक जोर-शोर के साथ मनाया गया। भगवान ऋषभदेव ने समस्त राजपाट को छोड़कर जब वैराग्य को धारण किया, तो उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती बने श्री अभय कुमार जैन डोटिया-मुम्बई का राज्याभिषेक किया गया और भगवान का समस्त राजपाट उन्हें प्रदान किया गया। अपने राजमहल में नीलांजना का नृत्य देखते हुए जब नर्तकी की आयु समाप्त हुई, तो तीर्थंकर ऋषभदेव को वैराग्य हो गया और उनके वैराग्य की घोषणा होते ही लौकान्तिक देवों ने आकर भगवान की अनुमोदना की। इस दिन नीलांजना नृत्य करने का सौभाग्य कु. वीनस जैन-मुम्बई को प्राप्त हुआ तथा लौकान्तिक देव बनने का सौभाग्य श्री पियूष पापड़ीवाल-पैठण, श्री स्नेहल काला-नांदगाव, श्री जिनेश पापड़ीवाल-पैठण, श्री अजय पापड़ीवाल-पैठण, श्री संयम लोहाड़िया-खण्डवा, श्री प्रशांत पापड़ीवाल-पैठण ने प्राप्त किया।
पश्चात् भगवान द्वारा पालकी में दीक्षा वन की ओर प्रस्थान हुआ और पंचमुष्टिकेशलोंचपूर्वक भगवान की दीक्षा का मंचन मंच पर सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर सर्वप्रथम मनुष्यों द्वारा पालकी उठायी गयी, जिसका सौभाग्य श्री राजेन्द्र कुमार जैन-आरा (बिहार), श्री त्रिलोकचंद सावला-रामगंज मण्डी (राज.), श्री भूपेन्द्र कुमार जैन-रामगंज मण्डी (राज.), श्री बसंतलाल केशवलाल-न्यूजर्सी (अमेरिका) एवं श्री संतोष सतीश सुनील सूरज पेंढारी-नागपुर (महा.) को प्राप्त हुआ। दीक्षा कल्याणक में सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज एवं अन्य साधु-संघों के साथ गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने मुखारविंद से मंत्रोच्चारपूर्वक भगवान की दीक्षा की समस्त विधि सम्पन्न कराई और विधिनायक प्रतिमा के समक्ष पिच्छी और कमण्डलु रखे गये।
इस अवसर पर पाण्डाल में मंच पर विधिनायक भगवान के समक्ष पिच्छी रखने का सौभाग्य श्री प्रमोद कुमार-अनीमा जैन, मॉडल टाउन, दिल्ली ने प्राप्त किया तथा कमण्डलु रखने का सौभाग्य श्री सुनील कुमार जैन-मीनाक्षी जैन सर्राफ-मेरठ (उ.प्र.) ने प्राप्त किया।
इसी प्रकार सम्पूर्ण दीक्षा विधि १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा के समक्ष भी सम्पन्न की गई, जिसमें पिच्छी रखने का सौभाग्य श्रीमती सुजाता जी शाह-पुणे ने एवं कमण्डलु भेंट करने का सौभाग्य श्री विनोद जैन-सिवान सपरिवार व पुत्री सौ. अर्पिता जैन, ब्र. अध्यात्म जैन ने प्राप्त किया। बड़े भगवान के समक्ष बड़े-बड़े पिच्छी-कमण्डलु भेंट किये गये, जिसमें २००८ मयूर पंखों वाली विशाल पिच्छिका और ३ फुट लम्बा व २.५ फुट चौड़ा विशाल कमण्डलु प्रतिमा के समक्ष रखा गया।
दीक्षा से पूर्व इस दिन प्रात:काल पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की विशेष प्रेरणा से मंच पर भगवान ऋषभदेव के द्वारा अपने पुत्रों को सिखाई गई ७२ कलाओं तथा पुत्रियों को सिखाई गई अंक लिपि और अक्षर लिपि का सुन्दर मंचन किया गया।
इस अवसर पर भगवान ऋषभदेव का रोल श्री सुरेश जैन-मुरादाबाद (कुलाधिपति-तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय) द्वारा किया गया और उन्होंने अपने पुत्र भरत-चक्रवर्ती बने श्री अभय कुमार डोटिया-मुम्बई (महा.) को तथा भगवान बाहुबली बने श्री राजकुमार सेठी-कलकत्ता (प. बंगाल) के साथ सभी पुत्रों को ७२ कलाओं का प्रशिक्षण दिया। साथ ही अपनी पुत्रियाँ ब्राह्मी बनी कु. मधुरिमा अजीत फडे-पंढरपुर (महा.) को एवं सुन्दरी बनी सानीका फडे-नासिक (महा.) को अपने दाएं और बाएं बैठाकर क्रमश: ब्राह्मी को सीधे हाथ से अक्षर लिपि लिखने का ज्ञान कराया और सुन्दरी को उल्टे हाथ से अंक लिपि का ज्ञान कराया।
इस प्रकार मंच पर भगवान द्वारा श्रावकों की आजीविका हेतु बताये गये षट्कर्मों में असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प का मंचन करके युग की आदि का स्मरण कराया गया, जब भोगभूमि का समापन और कर्मभूमि का सूत्रपात हुआ था और प्रजा को आजीविका का साधन प्राप्त नहीं था, ऐसी स्थिति में भगवान ऋषभदेव द्वारा बताये गये षट्कर्म का उपदेश भी नाटकीय मंचन के साथ मंच पर प्रस्तुत किया गया।
विशेष – इसी दिन सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज के करकमलों द्वारा क्षुल्लिका श्री प्रार्थनामती माताजी को आर्यिका दीक्षा प्रदान की गई तथा गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के संघस्थ ब्र. कोमलचंद जैन-कानपुर को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान करके क्षुल्लक उत्सवसागर जी महाराज नाम प्रदान किया गया।
माघ शुक्ला नवमी, दिनाँक १६ फरवरी, मंगलवार के दिन भगवान का केवलज्ञानकल्याणक मनाया गया। साधुओं एवं प्रतिष्ठाचार्यों द्वारा केवलज्ञानकल्याणक की समस्त क्रियाएं मध्यान्हकाल में सम्पन्न की गर्इं। लेकिन इससे पूर्व इस दिन प्रात:काल भगवान की आहार विधि अत्यन्त भक्तिभाव के साथ कराई गई। दीक्षा के उपरांत भगवान ऋषभदेव ने ६ मास का उपवास करके तपस्या की। पुन: नवधाभक्तिपूर्वक मुनियों को पड़गाहन एवं आहारदान की विधि जनता को नहीं ज्ञात होने से ६ माह ३९ दिन तक भ्रमण किया।
पश्चात् जब भगवान का आगमन हस्तिनापुर नगरी में हुआ, तो वहाँ के राजा श्रेयांस को जातिस्मरण हो जाने से नवधाभक्तिपूर्वक मुनियों को आहारदान देने की विधि ज्ञात हो गई और उन्होंने ‘हे स्वामी, नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु, अत्र, अत्र, अत्र………..’ आदि बोलकर भगवान ऋषभदेव का पड़गाहन किया और उन्हें इक्षुरस से आहारदान दिया।
उक्त समस्त घटनाक्रम का मंचन महोत्सव में सम्पन्न किया गया और प्रतिष्ठाचार्य पं. विजय कुमार जैन ने शुद्धिपूर्वक भगवान की प्रतिमा को लेकर आहार के लिए प्रस्थान और भ्रमण किया। हजारों श्रद्धालुओं द्वारा भगवान को अन्यथा विधि से आहार हेतु बुलाने पर भगवान का पडगाहन नहीं हो सका, लेकिन अंततोगत्वा राजा श्रेयांस बने श्री संजय जैन-सौ. रेखा जैन दीवान-सूरत परिवार ने जब भगवान को नवधाभक्तिपूर्वक पड़गाहन किया, तो उनके राजमहल में भगवान का आहार सम्पन्न हुआ। इस प्रकार संजय दीवान जी ने अपनी माँ वंâचनबाई, भाई विद्या प्रकाश, अजय जैन दीवान आदि के साथ भगवान को इक्षुरस का प्रथम आहार देकर पुण्य अर्जित किया।
राजा श्रेयांस के साथ उनके भाई राजा सोमप्रभ के रूप में श्री प्रद्युम्न कुमार जैन छोटी सा.-टिवैâतनगर परिवार ने भी भगवान को आहार देने का पुण्य अर्जित किया।
मध्यान्ह काल में अंकन्यास, नेत्रोन्मीलन, तिलकदान आदि विधि सम्पन्न हुई और भगवान का केवलज्ञानकल्याणक मनाया गया। भगवान को केवलज्ञान होते ही मंच पर सुन्दर समवसरण की रचना निर्मित की गई और सायंकाल में समस्त चतुर्विध संघ श्रावक-श्राविका आदि के मध्य भगवान की दिव्यदेशना के रूप में गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ने अपना शास्त्रीय उद्बोधन प्रदान करते हुए तीर्थंकर भगवान के केवलज्ञान का महत्व तथा समवसरण की महिमा का वर्णन किया। इसी अवसर पर सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज व उनके साथ अन्य साधुसंतों की भी मंगल वाणी सभा के मध्य प्रस्तुत हुई।
विशेष – १६ फरवरी के दिन मंच पर विराजमान ऐलाचार्य मुनि श्री निजानंदसागर जी महाराज का ३५वाँ दीक्षा दिवस समारोह भी समस्त मंचासीन साधुगणों द्वारा हर्ष के साथ मनाया गया और भक्तों व संघस्थ शिष्यों द्वारा ऐलाचार्य श्री का पादप्रक्षाल करके अघ्र्य समर्पण किया गया। इस अवसर पर उनके करकमलों में साधुओं ने नूतन पिच्छिका भी भेंट की और महाराज जी के रत्नत्रयपूर्ण दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की मंगल कामनाएं कीं।
माघ शुक्ला दशमी, दिनाँक १७ फरवरी, बुधवार को भगवान का मोक्षकल्याणक अत्यन्त भक्तिभाव के साथ सम्पन्न किया गया। इस दिन १०८ फुट भगवान ऋषभदेव प्रतिमा के समक्ष पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी एवं अन्य साधु-संतों के सान्निध्य में मंत्रोच्चारपूर्वक प्रमुख इन्द्र-इन्द्राणियों द्वारा मोक्षकल्याणक की क्रियाएँ सम्पन्न की गई। इसके साथ ही मंच पर विधिनायक प्रतिमा के मस्तक पर उक्त क्रियाएँ सम्पन्न हुई और भगवान ने मोक्ष प्राप्त करके सिद्धशिला में अवगाहन किया।
मोक्षकल्याणक के उपरांत अग्नि कुमार इन्द्रों द्वारा भगवान के नख, केश का संस्कार किया गया और सभी भक्तों ने भगवान के मोक्ष की खुशियाँ मनाकर भगवान ऋषभदेव पूजन के साथ निर्वाणकांड पढ़कर विशाल निर्वाणलाडू समर्पित किया।
इस प्रकार सायंकाल विशाल रथयात्रा जुलूस के साथ पंचकल्याणक महोत्सव सानंद सम्पन्न हुआ।
मोक्षकल्याणक के उपरांत १७ फरवरी २०१६ की सायंकाल में १०८फुट भगवान ऋषभदेव की प्रथम महाआरती कुछ ऐसे अंदाज में की गई कि गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के अधिकारियों ने इस महाआरती को अपने अद्वितीय इतिहास की श्रेणी में दर्ज कर लिया। इस दिन सायंकाल ७ बजे ५००१ दीपकों की व्यवस्था की गई और सभी भक्तों ने अपने हाथों में दीपक लेकर बाजे-गाजे, गीत-संगीत व नृत्य-गान के साथ भक्तिभावपूर्वक विश्व के सबसे ऊँचे भगवान ऋषभदेव की विराट महाआरती सम्पन्न की।
सायंकाल के समय में हजारों दीपकों के प्रकाश ने कार्यक्रम स्थल को अत्यन्त सुन्दरता के साथ जगमग कर दिया, जिसको देखकर किसी के नयन तृप्त नहीं हो रहे थे, अपितु भक्तजनों ने अपने वैâमरे, मोबाइल आदि के माध्यम से हजारों फोटो खींचकर इस दृश्य को सदैव के लिए अपने पास सुरक्षित करने का प्रयास किया।
ऐसी महाआरती के समय मुख्य अतिथि माननीय डॉ. डी. वीरेन्द्र हेग्गड़े व उनके साथ श्री सुरेन्द्र हेग्गड़े-धर्मस्थल (कर्नाटक) ने पधारकर इस समां की गरिमा को द्विगुणित किया तथा मुख्यरूप से नासिक के जिल्हाधिकारी माननीय श्री दीपेन्द्र जी कुशवाह ने अपनी धर्मपत्नी व परिवार के साथ पधारकर इस अवसर पर भगवान की आरती की और समिति द्वारा सम्मान भी स्वीकार किया।
विशेषरूप से इस दिन गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के अधिकारियों ने पधारकर इस महाआरती के प्रथम इतिहास को अपनी बुक में दर्ज किया और समिति के अध्यक्ष पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के करकमलों में इस रिकॉर्ड का प्रमाणपत्र प्रदान किया। इस समस्त आयोजन को श्री पारस लोहाड़े-नासिक ने अपनी विशेष भूमिका निभाकर सफल बनाया।
तिथि माघ शु. ग्यारस को भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का वह स्वर्णिम अवसर आया, जब पाषाण की प्रतिमा को भगवान बनने के उपरांत सर्वप्रथम भक्तों ने पंचामृत महामस्तकाभिषेक से सराबोर कर दिया।
१८ फरवरी का दिवस हजारों-लाखों वर्ष के इतिहास में अत्यन्त स्वर्णिम दिवस के रूप में जाना जायेगा, जिस दिन भगवान की प्रतिमा पर इतिहास का सर्वप्रथम सिद्धि कलश करने का सौभाग्य श्री कमल कुमार जैन-सौ. अनुपमा जैन व सुपुत्र कुशाग्र जैन, अमन जैन-आरा (बिहार) परिवार को प्राप्त हुआ। ऐसे महान सौभाग्यशाली युवा दम्पत्ति एवं उनके पुत्रों का जन्म-जन्मातरों का महान पुण्य उदय में आया और कलश अर्चन के साथ पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के करकमलों से उन्होंने विशाल रजत कलश प्राप्त करके १०८ फुट ऊँची भगवान ऋषभदेव प्रतिमा की ओर अपने कदम बढ़ाए। वह घड़ी ११ बजकर १५ मिनट की अत्यन्त शुभ घड़ी थी, जब भगवान के मस्तक पर इतिहास का प्रथम कलश ढोरा गया।
इसके साथ ही श्री सुरेश जैन कुलाधिपति-तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय-मुरादाबाद का परिवार भी महान सौभाग्यशाली रहा, जिन्होंने इस प्रतिमा पर अमृत कलश करने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपको भी पूज्य माताजी ने मंत्रोच्चारपूर्वक अपने हाथों से मंगल कलश प्रदान किया और आपके साथ प्रथम हीरक कलश करने के सौभाग्यशाली जम्बूद्वीप एवं ऋषभगिरि-मांगीतुंगी के पीठाधीश कर्मयोगी पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी को भी पूज्य माताजी ने कलश भेंट कर मंगल अभिषेक की बेला हेतु प्रस्थान कराया। इस अवसर पर विशेषरूप से विशिष्ट अतिथि के रूप में दिगम्बर जैन समाज के सिरमौर एवं राजा कहे जाने वाले डॉ. डी. वीरेन्द्र हेग्गड़े परिवार-धर्मस्थल का भी सान्निध्य प्राप्त हुआ और उनके साथ लघु भ्राता श्री सुरेन्द्र हेग्गड़े व अन्य परिवारजन भी उपस्थित हुए, जिन्होंने भगवान के प्रथम महामस्तकाभिषेक में भाग लेकर स्वयं अपने जीवन में महान पुण्य अर्जित किया और महोत्सव की गरिमा को वृद्धिंगत किया।
साथ ही भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की प्रथम महिला- अध्यक्ष तथा अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति, ऋषभगिरि-मांगीतुंगी की उपाध्यक्ष सौ. सरिता एम.के. जैन-चेन्नई ने भी इस अवसर पर भगवान के मस्तकाभिषेक का पुण्य अर्जित किया।
इस प्रकार भगवान के प्रथम कलश के उपरांत क्रमश: पंचकल्याणक महोत्सव के प्रमुख पात्रों द्वारा भगवान का अभिषेक किया गया और प्रतिमा निर्माण के विशिष्ट दातारों तथा विदेश से पधारे सैकड़ों एन.आर.आई. भक्तों द्वारा भगवान का अभिषेक किया गया।
इस दिन भगवान का भव्य पंचामृत महामस्तकाभिषेक भी हुआ, जिसमें विशेषरूप से दूध से अभिषेक करने का सौभाग्य श्री अनिल कुमार जैन-सौ. अनीता जैन, कमल मंदिर, प्रीतविहार-दिल्ली परिवार ने प्राप्त किया। इसी क्रम में हरिद्रा से अभिषेक का सौभाग्य श्री महावीर प्रसाद जैन-कुसुमलता जैन, बंगाली स्वीट्स, दिल्ली परिवार ने तथा लालचंदन व केसर से अभिषेक श्री कमलचंद जैन-मैना सुन्दरी जैन, खारीबावली-दिल्ली परिवार ने व सफेद चंदन से अभिषेक का सौभाग्य श्री दीपक जैन-सुभाषिनी जैन, वाराणसी ने प्राप्त किया। पंचामृत अभिषेक के क्रम में इस दिन भगवान के मस्तक पर शांतिधारा करने का सौभाग्य श्री नीलेश अजमेरा-सौ. सोनाली अजमेरा परिवार-मुम्बई ने प्राप्त किया। सभी भक्तों में भगवान के पंचामृत अभिषेक को देखने का आकर्षण विशेष था, जिसके लिए हजारों नर-नारीजन ऊपर पर्वत पर एवं नीचे एल.ई.डी. स्क्रीन पर भगवान की मनोहारी प्रतिमा को निहार रहे थे।
१२५ पिच्छीधारी साधु-संतों के विशाल संघ समूह के मध्य जब भगवान के मस्तक पर दूध, लालचंदन, सपेâद चंदन, हरिद्रा, सर्वोषधि, केसर, पुष्पवृष्टि आदि सामग्री से अभिषेक किया गया, तब शिख से नख तक कल-कल बहती दूध व पंचामृत की धाराओं ने हजारों भक्तों के मनोमालिन्य को दूर करके आत्म शांति की प्राप्ति कराई। हर भक्त भगवान के अभिषेक को देखकर और करके अत्यन्त संतुष्ट और हर्षपूर्वक नजर आ रहा था। ऐसी महान प्रतिमा पर भगवान के अभिषेक से लाखों श्रद्धालु भक्तों ने अपने अंतरंग की पवित्री को प्राप्त किया और सुख का अनुभव किया। साधु-संतों के मन में भी हर्ष की लहर और भगवान की प्रतिमा के प्रति सौम्य आदर प्रस्तुत हो रहा था, जब उन्होंने इस प्रतिमा का भव्य महामस्तकाभिषेक अपने स्वत: नयनों से देखकर पुण्यार्जन किया।
इन सबके साथ हर व्यक्ति के मन में सर्र्वोच्च जैन साध्वी, दिव्यशक्ति, महासाधिका, गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति भी अनंत उपकार की भावनाएँ जन्म ले रही थीं, जिनकी प्रेरणा से दिगम्बर जैन धर्म के ऐसे महाजिनबिम्ब का निर्माण हुआ है, जिसके द्वारा इस विश्वलोक में लाखों-लाख वर्षों तक जैनधर्म में बताये गये दिगम्बरत्व तथा अहिंसा परमो धर्म की परिभाषा गुंजायमान होती रहेगी। यह प्रतिमा इस संसार में जैनधर्म को शाश्वत बनाये रखने के लिए एक बहुमूल्य रत्न के समान समाज को प्राप्त हुई है, जिसके लिए पूज्य माताजी के प्रति यह समाज लाखों वर्ष तक कभी उनके उपकार चुका नहीं पायेगी। ऐसी भावनाओं के साथ ओतप्रोत होते हुए ऋषभगिरि, मांगीतुंगी में आये हजारों-लाखों दिगम्बर जैन श्रद्धालुओं ने भगवान के महामस्तकाभिषेक का पुण्य अर्जित किया।
१९ फरवरी से १०८ फुट विशाल भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक सम्पूर्ण भारत देश के दिगम्बर जैन भक्त परिवारों द्वारा लगातार ६ मार्च तक चलता रहा। इस क्रम में १९ व २० फरवरी को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भाग लेने वाले प्रथम व द्वितीय श्रेणी के इन्द्र-इन्द्राणियों द्वारा एवं विभिन्न स्थानों के रत्न कलश, स्वर्ण कलश व रजत कलश के पुण्यशाली भक्तों द्वारा भगवान का महामस्तकाभिषेक किया गया। इसके पश्चात् प्रतिदिन भारत देश के विभिन्न प्रान्तों की निर्धारित तिथियों के आधार पर अलग-अलग प्रदेश से आकर भक्तों ने भगवान के अभिषेक का पुण्य अर्जित किया।
इस क्रम में २१ फरवरी को सूरत महानगर एवं गुजरात प्रदेश के कलश आरक्षण वाले भक्तों द्वारा महाभिषेक हुआ। विशेषरूप से २१ फरवरी को प्रथम कलश करने का सौभाग्य दीवान परिवार के श्रीमती वंâचन देवी जैन व उनके सुपुत्र श्री विद्या प्रकाश जैन, श्री संजय जैन, श्री अजय जैन दीवान (सीकर वाले), सूरत (गुजरात) ने प्राप्त किया।
२२ फरवरी को राजधानी दिल्ली, मुम्बई महानगर, पंजाब एवं हिमाचल के भक्तों द्वारा, २३ फरवरी को महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के भक्तों द्वारा, २४ फरवरी को पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, आसाम आदि पूर्वांचल प्रदेशों के भक्तों द्वारा, २५ फरवरी को राजस्थान प्रदेश के भक्तों द्वारा, २६ फरवरी को हरियाणा, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, पाण्डीचेरी आदि विभिन्न प्रान्तों के भक्तों द्वारा,
२७ फरवरी को अहमदाबाद, गुजरात, दमनदीव के भक्तों द्वारा, २८ फरवरी को प्रमुख रूप से इन्दौर एवं सम्पूर्ण मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के भक्तों द्वारा, २९ फरवरी को विशेषरूप से महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के सांगली, कोल्हापुर, बेलगांव आदि जिले के भक्तों द्वारा एवं १ मार्च को दक्षिण उपाध्याय मण्डल, विद्वत् गण एवं ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों के द्वारा भगवान का अभिषेक सम्पन्न हुआ। इसके उपरांत लगातार विभिन्न स्थानों के भक्तों ने ६ मार्च तक भगवान का अभिषेक किया।
समिति द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव निर्धारित तिथियों के आधार पर ११ फरवरी से ६ मार्च तक अत्यन्त धूमधाम के साथ ठाट-बाटपूर्वक मनाया गया। लेकिन हजारों भक्तों के प्रतिदिन आवागमन की सूचना को देखते हुए तथा बच्चों की परीक्षाओं के कारण आने में असमर्थ परिवारों की सुविधा हेतु समिति द्वारा ७ मार्च से पुन: महामस्तकाभिषेक नियमित घोषित किया गया, जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्तजन ने आकर भगवान का अभिषेक किया और भक्तों का तांता इतना अधिक रहा कि एक वर्ष होने के उपरांत भी महामस्तकाभिषेक का क्रम कमेटी द्वारा रोकना पड़ा। अत: यह महामस्तकाभिषेक महोत्सव माघ शुक्ला ग्यारस, १८ फरवरी २०१६ से लेकर माघ शुक्ला दशमी, ६ फरवरी २०१७ तक लगातार किया गया। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के समापन पर, मांगीतुंगी में विकसित किये जा रहे ऋषभदेवपुरम् तीर्थ पर नवग्रहशांति जिनमंदिर का भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न किया गया, जिसमें कमलासन सहित सवा ४ फुट ऊँची नवग्रहों के अरिष्ट को निवारण करने वाली ९ तीर्थंकरों की ९ प्रतिमाएं विराजमान की गर्इं।