ॐ जय श्री मेरू जिनं, स्वामी जय श्री मेरू जिनं।
सोलह चैत्यालय से, शोभित गिरि अनुपम।।ॐ जय.।।टेक.।।
भद्रशाल वन भू पर, वन उपवन सोहे।स्वामी……….
चउ दिशि चार जिनालय, जिन प्रतिमा शोभे।।ॐ जय.।।१।।
पांच शतक योजन पर, नंदनवन आता।।स्वामी…….
साढ़े बासठ सहस सुयोजन, सुमनस मन भाता।।ॐ जय.।।२।।
चंपक तरू आदिक से, मंडित चैत्यालय।स्वामी……..
कांचन मणिमय शुभ रत्नों से, सुंदर जिन आलय।।ॐ जय.।।३।।
सहस छत्तीस सुयोजन, पांडुक सौख्य भरे।स्वामी……
तीर्थंकर अभिषेक जहां पर, सुर नर द्वन्द करें।।ॐ जय.।।४।।
बिम्ब अचेतन होकर, चेतन फल देवें।स्वामी………
भाव ‘‘ चंदना’’ जग में, खुशियां भर देवें।।ॐ जय.।।५।।