‘‘साधना को सत्य का
शृंगार मिल गया,
भावना को पुरुषार्थ का
आकार मिल गया।
अब आज इनकी अर्चना
फल लेके आई है,
जब पाषाण को इक
मूर्ति का आकार।।’’
अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की गरिमा में निश्चित ही विभिन्न साधु-संघों के समागम से चार-चांद लग गये और महोत्सव की गरिमा कई गुना अधिक वृद्धि को प्राप्त हुई। महोत्सव में एक-दो नहीं, वरन ११ आचार्यों का सान्निध्य प्राप्त हुआ और कुल १२५ पिच्छीधारी साधुओं के तपश्चरण से तथा उनकी उत्कृष्ट भक्तिपूर्ण भावनाओं से महोत्सव की सफलता गगनचुम्बी पताका की तरह सारे विश्व में फहराई।
समिति के निवेदन पर महोत्सव में प्रमुखरूप से चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज की प्रमुख गौरवमयी उपस्थिति प्राप्त हुई।
साथ ही देश के विभिन्न आचार्य संघों व मुनि-आर्यिकाओं के संघ को समिति द्वारा अभिवंदनापूर्वक महोत्सव में पधारने हेतु निवेदन किया गया, जिसके फलस्वरूप आचार्यश्री पद्मनंदि जी महाराज, आचार्यश्री देवनंदी जी महाराज, आचार्यश्री गुप्तिनंदी जी महाराज, आचार्यश्री धर्मानंद जी महाराज, आचार्यश्री देवसेन जी महाराज, आचार्यश्री तीर्थनंदी जी महाराज, आचार्यश्री सूर्यसागर जी महाराज, आचार्यश्री वङ्कासेन जी महाराज, एलाचार्य श्री निजानंदसागर जी महाराज, बालाचार्यश्री जिनसेन जी महाराज तथा मुनियों में मुनि श्री गिरनारसागर जी महाराज, मुनि श्री रविनंदी जी महाराज, मुनि श्री पुण्यनंदी जी महाराज, मुनि श्री दयासागर जी महाराज, मुनि श्री प्रणामसागर जी महाराज व आर्यिकाओं में आर्यिका श्री सुभूषणमती माताजी आदि सभी आर्यिकाओं व चतुर्विध संघ का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
अत: सभी आचार्यों, मुनिवृदों एवं आर्यिकाओं के प्रति गदगदमना भक्तिभावों के साथ महोत्सव समिति द्वारा उनके गौरवमयी सान्निध्य के उपलक्ष्य में दिनाँक १७ फरवरी को मध्यान्हकाल में आचार्यों, मुनियों व आर्यिकाओं की पादपूजा का आयोजन हुआ और पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की संघस्थ शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी सहित समस्त संघस्थ आर्यिका व ब्र्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणी भाई-बहनों ने पादप्रक्षाल के उपरांत अघ्र्य समर्पण करके सभी गुरुओं को स्मृतिस्वरूप साहित्य व उपहार भी भेंट किए।