माघ मास का हमारे शास्त्रों में विशेष रूप से धार्मिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व वर्णित है | इसी मास की पंचमी तिथि बसंतपंचमी तथा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की आराधना एवं आविर्भूत दिवस के रूप में मनाई जाती है | बसंत के आने से सम्पूर्ण प्रकृति में मधुरता , उल्लास तथा दिव्य स्फूर्ति का समावेश हो जाता है | ठीक इसी प्रकार संत भी अपने चिंतन, मनन तथा दिव्य प्रेरणा के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को आनंद से परिपूर्ण करते हैं | बसंत प्रकृति को उसकी नींद से जगाता है और उसे फिर से सक्रिय बनाता है , जिससे धरा पर चारों ओर उत्कृष्ट सौंदर्य का संचार होता है |
सावन की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमंत और शिशिर में जब वृद्धा के समान हो जाती है तब बसंत उसका सौंदर्य पुनः लौटाता है | इसी प्रकार मनुष्य के मानसिक पटल पर जब जड़ता . स्थिरता और तामसिकता आदि हावी हो जाती हैं जिससे उसकी आत्मिक उन्नति पूर्ण बाधित हो जाती है तब ऐसी स्थिति में संतों – मनीषियों का विराट व्यक्तित्व मनुष्य के अंतःकरण में सात्विक प्रवृत्तियों को सृजित करके उसकी आत्मिक उन्नति के मार्ग को पुनः प्रशस्त करता है |
इस पावन अवसर पर परम चेतना सरस्वती का आराधन मनुष्य को आत्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करता है | सरस्वती हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका ईश्वरीय शक्ति हैं | बसंत के सुरम्य वातावरण में सरस्वती का वंदन मनुष्य को विवेक शक्ति से सुसज्जित करता है तथा निरंतर उसे आध्यात्मिक ग्रंथों के चिंतन -मनन को आत्मसात करते हुए ज्ञानार्जन की प्रेरणा देता है | प्रकृति के परम सौंदर्य में सरस्वती वंदन मानव के अंतर्मन में प्रतिपल बसंत ऋतु जैसा आनंदमय वातावरण सृजित करता है | बसंत का यह मधुमास जहां प्रकृति को नई ऊर्जा से ओतप्रोत करता है , वहीं संत भी हमारी चेतना में समाई हुई तामसिक वृत्तियों को दूर करके दिव्य वृत्तियों से युक्त करते हैं |