( मैना से ज्ञानमती )
इक रात को इक माता पुत्री का आपस में संवाद चला।
तुम राग विराग कथाएं सुनकर बोलो किसका स्वाद भला।।टेक.।।
मां ‘मोहिनी’ थी बेटी ‘मैना’ दोनों ममता की मूरत थीं।
ममकार नहीं था दोनों में केवल मकार की सूरत थीं।।
‘मैना’ संज्ञा सार्थक करने हेतू मैना का स्वर बदला।।तुम.।।१।।
माता की ममता पिघल पिघल कर आँसू बनकर निकल रही।
बेटी का दृढ़ निश्चय सुनकर मोहिनी और भी विकल हुई।।
मां बोली कच्ची कली मेरी तू क्या जाने परिणाम भला।।तुम.।।२।।
पुत्री बोली कच्ची कलियों ने भी यह त्याग निभाया है।
देखो चन्दनबाला ब्राह्मी मां ने इतिहास बनाया है।।
मैं भी वह पथ अपनाऊंगी दो आज्ञा माँ! इक बार भला।।तुम.।।३।।
जैसे जम्बूस्वामी ने अपनी चार पत्नियों के संग में।
वैराग्य कथा जारी रक्खी नहिं रमें रानियों के रंग में।।
फिर प्रात: महल तजा उनने दीक्षा लेकर जीवन बदला।।तुम.।।४।।
वैसे ही मैना ने अपनी माता को कथा सुनाई थी।
श्री पद्मनन्दि आचार्य रचित दुर्लभ पंक्तियां सुनाई थीं।।
मां कबसे हम सबका चारों गतियों में परिवर्तन न टला।।तुम.।।५।।
कभी इन्द्र का पद पाया मैंने कभी नरक निगोदों में भटका।
तिर्यंच मनुज पर्यायों में बस यूँ ही पड़ा रहा अटका।।
बहु पुण्ययोग से श्रावक कुल में सच्चे ज्ञान का दीप जला।।तुम.।।६।।
मां बोली ये सब शास्त्रों की बातें तुमने अपना ली हैं।
पर सदी बीसवीं में बोलो किस कन्या ने दीक्षा ली है।।
तुम जैसी सुकुमारी कन्या के बस की नहीं विराग कला।।तुम.।।७।।
फिर एक चुनौती प्यार भरी दे मैना मां से बोल पड़ी।
यदि तुम मेरी सच्ची मां हो तो दे दो स्वीकृति इसी घड़ी।।
हे मां! अब तक तो ममता दी अब समता की नव ज्योति जला।।तुम.।।८।।
विश्वास मात को था मेरी बेटी दृढ़ नियम निभाएगी।।
पर सोच रही मेरी बच्ची कैसे यह सब सह पाएगी।
इतिहास अगर यह रच देगी तो बालाओं का मार्ग खुला।।तुम.।।९।।
सच्ची मां का कर्तव्य सोच माता ने स्वीकृति दे डाली।
अवरुद्ध कंठ से बोल पड़ीं बेटी मैं बड़ी भाग्यशाली।।
हो गई विजय वैराग्य पक्ष की राग मोह तब हार चला।।तुम.।।१०।।
वैराग्य के ये अंकुर मैना ने बचपन से ही उगाए थे।
उनको पुष्पित करने मानो इक मुनिवर अवध में आए थे।।
बाराबंकी में देशभूषणाचार्य गुरू का संग मिला।।तुम.।।११।।
सन् बावन की आश्विन शुक्ला चौदश रात्री की यह घटना।
तब शरदपूर्णिमा को प्रात: मैना ने पूर्ण किया सपना।।
निज जन्मदिवस ही ब्रह्मचर्यव्रत पा मानो शिवद्वार खुला।।तुम.।।१२।।
मां बेटी की ये चर्चाएं जग को आदर्श सिखाती हैं।
कर सको न यदि तुम त्याग तो पर को मत रोको समझाती हूँ।।
‘‘चन्दनामती’’ उस माँ ने पुन: अपने जीवन को भी बदला।।तुम.।।१३।।