कमलासिनी श्रुतधारिणी माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।
है द्वादशांग रूप से निर्मित तेरी काया।
सम्यक्त्व तिलक माथे पे चारित्र की छाया।।
विद्वानों से भी पूज्य तुम माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।१।।
जिनवर की मूर्ति तेरे मस्तक पे राजती।
वन्दन करें जो उनकी ज्ञान शक्ति जागती।।
हे श्वेतवस्त्र धारिणी माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।२।।
हे शारदा तू ज्ञान की गंगा बहाती है।
वागीश्वरी तू ब्रह्मचारिणी कहाती है।।
कर में है वीणा पुस्तक माला सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।३।।
जो भी तेरी आराधना में लीन होता है।
मिथ्यात्वतिमिर हटा ज्ञान लीन होता है।।
है ‘‘चन्दना’’ तुम पद में नत माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।४।।