In democracy the boat of the nation remains in the hands of those sailors who have not the compass
for the purpose.
अकसर स्वतन्त्र लोकतन्त्र में, राष्ट्र की नाव उन नाविकों के हाथों में होती है, जिनके पास लक्ष्य की कुतुबनुमा का अभाव होता है।