-डॉ. अनुपम जैन, इंदौर
भगवान ऋषभदेव १०८ फीट विशालकाय मूर्ति पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव (११-१७ फरवरी २०१६) तथा महामस्तकाभिषेक (१८ फरवरी २०१६ से प्रांरभ) के अवसर पर महोत्सव समिति द्वारा तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के नेतृत्त्व में अ. भा. जैन विद्वत् सम्मेलन का आयोजन १-३ मार्च २०१६ के मध्य परमपूज्य सप्तम् पट्टाचार्य आचार्य श्री अनेकान्तसागरजी महाराज (ससंघ), एलाचार्य श्री निजानन्दसागरजी महाराज, गणिनीप्रमुख आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी, प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी एवं समस्त आर्यिका संघ, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाओं सहित भट्टारक लक्ष्मीसेन स्वामीजी कोल्हापुर मठ, भट्टारक भानुकीर्ति स्वामीजी सौंदामठ की पावन उपस्थिति में सम्पन्न हुआ । इसमें ११८ विद्वान एवं पत्रकार सम्मिलित हुए। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के ८० से अधिक उपाध्ये (उपाध्याय) बन्धुओं की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही । महासंघ के मंत्री पं. सुरेश जैन ‘मारौरा’ इन्दौर ने अपनी टीम सहित आवास व्यवस्था का दायित्व सम्हाला । २०० से अधिक विद्वानों की उपस्थिति वाला यह सम्मेलन अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक रहा ।
१ मार्च की प्रात: ९ बजे समस्त समागत विद्वानों /पत्रकारों एवं उपाध्याय बन्धुओं ने अपने भाग्य की सराहना करते हुए पंक्तिबद्ध हो पूज्य एलाचार्य श्री निजानन्दसागरजी महाराज एवं स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी की शुभ उपस्थिति में भगवान ऋषभदेव की विश्व की विशालतम मूर्ति का जलाभिषेक किया । तदुपरान्त अनेक विद्वानों ने सपरिवार दूध, दही, घी, शर्वâरा, हरिद्रा, लाल चन्दन, सर्वोषधि आदि से पंचामृत अभिषेक किया । सरस्वती पुत्रों द्वारा सामूहिक रूप से अभिषेक का यह अनूठा आयोजन था ।
महोत्सव समिति द्वारा समस्त विद्वानों/पत्रकारों/उपाध्याय बन्धुओं को अभिषेक हेतु नवीन केशरिया वस्त्र एवं स्मृति स्वरूप कलश भी प्रदान किये गये जो समिति का सरस्वती पुत्रों के प्रति बुहमान व्यक्त करता है । विद्वानों ने भी पूज्य पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के प्रति आभार व्यक्त किया ।
१८ फरवरी से श्रेष्ठियों, श्रावक-श्राविकाओं द्वारा सतत् अभिषेक करने के बाद आज जब सरस्वती पुत्र एवं अनेक व्रती भाई बहनों द्वारा अभिषेक किया गया तो मानों इन्द्र देवता भी प्रसन्न हो गये एवं अपरान्ह १.०० बजे से लगभग १.३० घंटे तक झमाझम बारिश हुई एवं मानों मेघकुमार देवों ने भगवान ऋषभदेव का प्रथम महामस्तकाभिषेक विद्वानों की साक्षी में किया । इस वर्षा ने सम्पूर्ण अंचल में आबाल-वृद्ध स्त्री पुरुषों के मन प्रपुâल्लित कर दिये । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों प्रतिष्ठा महोत्सव में मंत्रोच्चार पूर्वक किया गया देवों का आह्वान सार्थक हो रहा है ।
प्रसन्नता के इन क्षणों में महासंघ के अध्यक्ष पीठीधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी एवं महामंत्री डॉ. अनुपम जैन ने मुख्य पांडाल के निरीक्षण के उपरान्त त्वरित निर्णय लेते हुए सुविधा की दृष्टि से सम्मेलन स्थल मुख्य पांडाल के स्थान पर पीठाधीश भवन में बने सभा मण्डप में स्थानान्तरित कर दिया ।
सान्निध्य – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी
अध्यक्षता – स्वस्तिश्री पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी
मंगलाचरण – डॉ. शोभा जैन, प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष – संस्कृत, भेरूलाल पाटीदार शास.
स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महू (इन्दौर)
स्वागत उद्बोधन – श्री जे.के. जैन, पूर्व सांसद एवं स्वागताध्यक्ष – महोत्सव समिति
संचालन – डॉ. अनुपम जैन, महामंत्री, इन्दौर
मंगलाचरण के उपरान्त विद्वानों के स्व-परिचय से सभा का शुभारम्भ हुआ । परिचयोपरान्त महोत्सव की मार्गदर्शिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी ने कहा कि ‘‘ऋषभदेव की मूर्ति का निर्माण हो गया, जिन शासन का सबसे बड़ा काम हो गया।’’ मांगी पर्वत, तुंगी पर्वत जहाँ से करोड़ों मुनि मोक्ष गए हैं, इन दो पर्वतों के साथ ऋषभगिरि का निर्माण त्रिवेणी है ।
माताजी ने कहा कि ४०० से अधिक ग्रंथों को लिखकर ज्ञानमती माताजी ने भगवान महावीर के शासन को बढ़ाने का कार्य किया है यह उनकी तपस्या का ही फल है कि यह महान स्वप्न साकार हुआ है। सबसे बड़ी प्रतिमा में आज सबसे अधिक विद्वान अपनी अपार श्रद्धा लेकर आए हैं । मंगलाचरण के रूप में महासंघ के उपाध्यक्ष डॉ. भागचंद जैन ‘भागेन्दु’ (दमोह) ने संस्कृत भाषा में माताजी के सम्मान में सुमधुर काव्य पाठ किया ।
आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी ने आगे कहा कि १०८ फीट की प्रतिमा का निर्माण चमत्कार से कम नहीं है । ये (बड़ी माताजी) दिव्य शक्ति हैं जिन्होंने भारतीय श्रमण संस्कृति के मस्तक को गौरवान्ति किया है । माताजी हमेशा आर्ष परम्परा के संरक्षण में लगी हैं । आप सब विद्वानों का कर्तव्य है कि आर्ष परम्परा का संरक्षण करें एवं मैत्री का संदेश दें। सब एक पंथ के अनुयायी हैं, ऊपर से नहीं अन्दर से अनुमोदना करें।
आज पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी ने विद्वानों के प्रति अपने असीम वात्सल्य का परिचय दिया । अस्वस्थता के बावजूद उन्होंने आज लगभग ४५ मिनट विद्वानों को संबोधित किया, अपने दीर्घकालीन अध्ययन से समाज में चल रही विकृतियों व गड़बड़ियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए आपने अत्यन्त प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान किया ।
प्रस्तुत है पूज्य माताजी के मार्गदर्शन के कतिपय प्रमुख बिन्दु :-
– हम वीर शासन जयंती सामूहिक रूप से मनाए साथ ही भगवान ऋषभदेव जी की जन्म जयंती व उनके केवल ज्ञानकल्याणक को ऋषभदेव शासन पर्व के रूप में मनाए ।
– गौतम स्वामी के मुख से महत्वपूर्ण रचनाएँ निकली हैं जिनमें तीन प्रतिक्रमण पाठ भी हैं ।
– किसी की रचना में किसी को भी रंचमात्र परिवर्तन का अधिकार नहीं है ।
– मंत्र में व्याकरण के आधार से कोई परिवर्तन न करें ।
– णमोकार मंत्र का चत्तारि मंगल पाठ अनादि काल से है, चत्तारि मंगल पाठ बिना विभक्ति के पढ़ा जाना चाहिये । विभक्ति वाला पाठ सम्भवतः सन् १९७४ के बाद श्वेताम्बर परम्परा से आया है ।
– परिवर्तन करने में जब प्रभाचन्द्राचार्य जी ने अपनी बुद्धि नहीं लगाई तो हम कौन होते हैं ।
– गौतम स्वामी महा-महा विद्वान थे ।
– मूर्ति पूजा ब्राह्मणों से नहीं आगम की परम्परा से निर्बाध चलने वाली परम्परा है ।
– द्वादशांग अब लिपिबद्ध नहीं हो सकता है उसका कुछ अंश ही हमें दिखाई देता है । जब गौतम स्वामी केवल कुछ भाग हस्तांतरित कर सके एवं परिवर्ती आचार्य कुछ शताब्दियों तक भी सुरक्षित नहीं रख सके तो हम और आप वैâसे द्वादशांगी लिखेंगे ।
– एक विद्वान एक लाख व्यक्तियों के बराबर है । हजारों की सभा में सम्बोधन प्रदान करता है । अतः आप विद्वानों में समाज को बदलने की शक्ति है ।
– विद्वान यहाँ से संकल्प करें कि आगम में एवं परम्पराचार्य प्रणीत ग्रंथों में परिवर्तन परिवद्र्धन कुछ नहीं करेंगे, ज्यों का त्यों ही रखेंगे ।
– किसी रचना के लेखन का नाम जो अन्त में लिखा होता हैं जैसे ‘पंकज’ व्याकुल भया, इसकी जगह ‘सेवक’ व्याकुल भया जैसा लिखना गलता है ।
– हम विद्वानों की सलाह मानते भी हैं मनवाते भी हैं ।
– बोलने के समय में अतिक्रमण न करें यदि किसी को ५ मिनिट बोलने को कहा जाए तो साढ़े ४ मिनिट में ही अपनी बात समाप्त कर दें ।
– जनता के मन में आचार्यों के प्रति श्रद्धा टपके ऐसा कार्य करें विद्वान ।
– जहाँ बीसपंथ है वहां तेरहपंथ करना, शासन देवी-देवताओं को हटाना गलत है । जहाँ जो पूजा पद्धति चली आ रही है वहाँ उसे ही चलने दें, परिवर्तन न करें ।
– हम संगठित होकर धर्म प्रभावना करें, पूजा पद्धति हमारा घरेलू मसला है ।
– हमने अनेक तेरहपंथी मंदिरों में कार्यक्रम कराये हैं यदि उस मंदिर की परम्परा तेरहपंथी थी तो उसी अनुरूप कार्य कराये हैं । दिल्ली में हमने बड़े-बड़े विधान तेरहपंथ पद्धति से ही कराये हैं ।
– विद्वान एकीकरण का कार्य करें बाँटने का नहीं ।
– हम अल्पसंख्यक समाज है, एकता बनाकर रखें, एकता से जैन शासन वृद्धिंगत होगा ।
– आज तो मेघकुमार के मन में भी अभिनंदन की इच्छा हुई है जो आज बरस गए हैं ।
माताजी के मांगलिक मार्गदर्शी उद्बोधन के उपरान्त महामंत्री डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर ने विद्वत् महासंघ की ओर से निम्नांकित तीन प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये जो सर्वानुमति से पारित किये गये ।
तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की यह सभा जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के पूज्य पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी को ऋषभगिरि, मांगी-तुंगी का प्रथम पीठाधीश मनोनीत किये जाने का अनुमोदन करती है । यह सभा उनको इच्छामि निवेदित करते हुए उनके स्वस्थ, सुदीर्घ एवं यशस्वी जीवन की कामना करती है ।
अनुमोदनकर्ता
१. पं. सुरेश जैन ‘मारौरा’, इन्दौर प्रस्तावक
२. पं. सुरेश कुमार जैन, भगवाँ पं. लालचंद जैन ‘राकेश’, भोपाल
तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की यह सभा ऋषभगिरि, मांगी-तुंगी की १०८ फीट विशाल मूर्ति निर्माण की प्रेरिका गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जी द्वारा ऋषभगिरि में प्रत्येक ६ वर्ष के अन्तराल से महामस्तकाभिषेक आयोजित किये जाने की प्रेरणा का स्वागत करती है एवं २०२२ में होने वाले द्वितीय महामस्तकाभिषेक में भी पूर्ण सहयोग का विश्वास दिलाती है ।
अनुमोदनकर्ता
१. पं. खेमचंद जैन, जबलपुर प्रस्तावक
२. पं. शीतलचंद जैन, ललितपुर डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर
तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की यह सभा प्राचीन आचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रंथों, कृतियों में व्याकरण, भाषा या विषय के आधार पर किसी भी प्रकार के संशोधन, परिवर्तन परिवद्र्धन का विरोध करती है । वर्तमान लेखकों की कृतियों में भी बिना उनकी सहमति के संशोधन करने अथवा उसको किसी अन्य नाम से प्रकाशित करने की निन्दा करती है ।
महासंघ का स्पष्ट चिन्तन है कि मूल की सैदव रक्षा की जानी चाहिये ।
अनुमोदनकर्ता प्रस्तावक
श्रीमती उषा पाटनी, इन्दौर पं. सुरेश जैन ‘मारौरा’, इन्दौर
भट्टारक लक्ष्मीसेन ‘भट्टारक रत्न’ की उपाधि से सम्मानित
महासंघ के अध्यक्ष पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने समागत विद्वानों की ओर से कोल्हापुर मठ के श्री लक्ष्मीसेन महास्वामी जी को सबसे वरिष्ठ भट्टारक के रूप में सम्मानित करते हुए उन्हें ‘भट्टारक-रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया। प्रशस्ति वाचन श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने किया, बताया कि देश के भट्टारकों में सबसे वरिष्ठ भट्टारक अर्थात् सबसे पुराने दीक्षित श्री लक्ष्मीसेन महास्वामी जी हैं । आपकी भट्टारक दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । समस्त उपस्थित जनों ने अनुमोदना करते हुए भट्टारक जी को शुभकामनाएँ दी ।
द्वितीय सत्र, १.३.२०१६, रात्रि ८.३० से १०.००, मुक्ताकाश, मांगीतुंगी
सान्निध्य : परमपूज्य, आचार्य श्री अनेकान्तसागरजी महाराज
पूज्य एलाचार्य श्री निजानन्दसागरजी महाराज
पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी
पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी
अध्यक्ष : स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी
मुख्य अतिथि : डॉ. डी.सी. जैन, पूर्व विशेष महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवायें, भारत सरकार, दिल्ली
सारस्वत अतिथि : डॉ. हम्पा नागराजैय्या, एमेरिटस प्रोपेâसर, बैंगलोर
विशिष्ट अतिथि : प्रो. वी. के. जैन, पूर्व प्राचार्य, फिरोजाबाद
मंगलाचरण : ज्ञानचक्षु कु. कुसुमा जैन, बैंगलोर
सुमधुर मंगलाचरण के उपरान्त विद्वत् महासंघ के कार्याध्यक्ष पं. खेमचंद जैन, जबलपुर ने अपना स्वागत उद्बोधन दिया । अपने उद्बोधन में पं. जी ने महासंघ का परिचय देने के साथ पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी के अवदानों को ओजस्वी स्वरों में प्रस्तुत किया एवं उन्हें आर्ष परम्परा की महान साध्वी बताया । तदुपरान्त तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ ने आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें एक विशाल प्रशस्ति-पत्र समर्पित किया जिसका वाचन डॉ. अनुुपम जैन ने किया । महासंघ की ओर से माताजी को ‘अभिनव ब्राह्मी माता’ की उपाधि समर्पित की गई। इस अवसर पर विद्वत् महासंघ की कार्यकारिणी के पीठाधीश रवीन्द्रकार्ति स्वामी जी, पं. खेमचंद जैन (जबलपुर), पं. भागचन्द जैन ‘भागेन्दु’ (दमोह), प्रो. टीकमचंद जैन (दिल्ली), पं. पदमचंद जैन, ‘प्रतिष्ठाचार्य’ (झांसी), पं.सुरेश जैन मारोरा (इंदौर), श्री चन्द्रप्रकाश जैन चन्दर (ग्वालियर), पं. शीतलचंद जैन (ललितपुर), डॉ. प्रेमचंद रांवका (जयपुर), डॉ. सुशील जैन (मैनपुरी), ब्र. जीवन प्रकाश जैन (हस्तिनापुर), पं. शिखरचंद जैन (सागर), पं. विजयकुमार जैन (मुम्बई), डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन (भगवाँ) आदि उपस्थित रहे ।
दक्षिण भारत उपाध्याय समिति इचलकरंजी से आए ८० उपाध्यायगणों ने पूज्य माता जी को ‘‘आर्ष परम्परा संरक्षिका’’ की उपाधि से सम्मानित किया । प्रशस्ति का वाचन उपाध्याय समिति के अध्यक्ष पं. दीपक उपाध्ये ने किया।
उपाध्याय समिति ने पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी को ‘सर्वोत्तम व्यवस्थापन गुरु’ की उपाधि से सम्मानित किया । श्रीमती वैशाली उपाध्याय ने आर्यिकाद्वय को वस्त्र समर्पित किये ।
इस अवसर पर महोत्सव समिति के सर्वश्री जे.के. जैन, पूर्व सांसद (दिल्ली), डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल- महामंत्री, श्री संजय पापड़ीवाल-मंत्री, ब्र. जीवनप्रकाश जैन – मंत्री, श्री श्रीपाल गंगवाल, अध्यक्ष- त्यागी आश्रम आदि पदाधिकारी उपस्थित थे ।
अ.भा. दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् (भास्कर ग्रुप) द्वारा भी पूज्य माताजी के करकमलों में काव्यमय प्रशस्ति समर्पित की गई। इसका वाचन परिषद् के महामंत्री डॉ. महेन्द्र कुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर ने किया । जैन जनवाणी के सम्पादक श्री दिनेश दगड़ा ने जैन जनवाणी के विशेषांक का विमोचन आचार्यश्री अनेकांतसागरजी महाराज व पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी से कराकर माताजी के करकमलों में भेंट किया । सन्मति वाणी, जिनेन्द्र वाणी आदि पत्रिकाओं के अंक भी माताजी को समर्पित किये गये ।
डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर द्वारा सम्पादित एवं अनेक वर्षों से सतत प्रकाशित होने वाली सम्पर्क -२०१६ शीर्षक निर्देशिका का विमोचन अतिथियों ने किया । उक्त कृति में देशभर के विद्वान, पत्र पत्रिकाओं, शोध संस्थानों, प्रकाशकों एवं तीर्थों के पते आदि महत्वपूर्ण जानकारियों का संकलन किया गया है ।
मुख्य अतिथि डॉ. डी.सी. जैन (दिल्ली) ने Statue Of Ahimsa को महान उपलब्धि बताते हुए माताजी को तेजस्वी, ओजस्वी, प्रखर वक्ता कहा व शाकाहार के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी विद्वानों को प्रदान की । डॉ. जैन ने बताया कि माताजी के आशीर्वाद से अनेक कार्य सम्पादित हुए हैं जिसमें मेंढ़क की चीर फाड़ मेडिकल के लिए बंद करने का कार्य हुआ है । अब मेडिकल की पढ़ाई में किसी भी जीवित प्राणी की चीर-फाड़ नहीं होती है। आप सभी अपने बच्चों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए भेज सकते हैं ।
डॉ. जैन ने कहा कि विश्व से चेचक, पोलियो जैसी बीमारियाँ समाप्त हो गई हैं । दि. जैन मुनि कठोर तपस्या करते हैं उससे शरीर वङ्का के समान कठोर हो जाता है । वे अनेक परेशानियों को सहते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है । सर्वोषधि अभिषेक से आरोग्य की वृद्धि होती है वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण है । दुग्धाभिषेक से धरती उपजाऊ होती है रोग-शोक से मुक्ति मिलती है ।
उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में सांड़ों को लड़ाया जाता था, आज खेल के नाम पर हिंसा बंद कर दी गई है । आपने आह्वान करते हुए कहा कि सौन्दर्य प्रसाधनों में हिंसा होती है इसलिए हर्बल उत्पाद उपयोग करें । फुड में हिंसा होती है, हमारे जैन दर्शन ने इस हेतु हमें मर्यादा के खाद्य पदार्थ (जैसे आटे, मसाले, घी) के सेवन की अनुमति दी है । सभी वस्तुओं की मर्यादा तय की है । प्रासुक जल पीने से पेट संबंधी रोग नहीं होते हैं ।
डॉ. जैन ने बताया कि विश्व में शाकाहार का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है । अमेरिका में ४०-६० प्रतिशत मांस की खपत कम हो गई है । ढाई करोड़ लोग शाकाहारी हो गये हैं ।
२ अक्टूबर को विश्व अिंहसा दिवस के साथ ४ अक्टूबर को विश्व प्राणी रक्षा दिवस भी मनाना चाहिये । जिससे समस्त जीव-जन्तु जीवित रहें यह संदेश प्रसारित हो । स्टेच्यू ऑफ अहिंसा से भगवान ऋषभदेव जी की कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में फैलेगी व अहिंसा के सन्देश का प्रसार होगा ।
इस अवसर पर पधारे नांदेड़ विधायक श्री ओमप्रकाश जी पोखरना का स्वागत किया गया । समस्त अतिथियों एवं सभी उपाध्याय बन्धुओं को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।
०२.०३.२०१६ का कलशाभिषेक
जिन विद्वानों ने ०१.०३.२०१६ को प्रातः उपस्थित न हो सकने के कारण अभिषेक नहीं किया था उन सब विद्वानों एवं पत्रकारों को आज अभिषेक करने का अवसर मिला ।
१ मार्च २०१६ के समान ही आज भी विद्वानों एवं पत्रकारों के अभिषेक हेतु ससम्मान व्यवस्था थी जिसका लाभ अनेक विद्वानों ने लिया ।
आज पुनः भारी वर्षा के कारण कार्यक्रम स्थल में परिवर्तन कर पीठाधीश भवन में सत्र रखा ।
सान्निध्य – परम पूज्य पट्टाचार्य श्री अनेकान्तसागरजी महाराज
पूज्य एलाचार्य श्री निजानन्दसागरजी महाराज
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी
अध्यक्ष – स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी
सह अध्यक्ष – पं. खेमचन्दजी जैन, जबलपुर
मुख्य अतिथि – प्रो. हम्पा नागराजय्या, एमेरिटस प्रोपेâसर, बैंगलोर
मंगलाचरण – कु. कुसुमा जैन, बैंगलोर
संचालन – डॉ. अनुपम जैन, महामंत्री, इन्दौर
कु. कुसुमा जैन के मंगलाचरण से प्रारंभ इस सत्र में प्रो. बी.के. जैन, पूर्व प्राचार्य, फिरोजाबाद ने सरस्वती वन्दना एवं श्रीमती निशा जैन, इन्दौर ने गणिनी ज्ञानमती माताजी की वन्दना प्रस्तुत किया । यह सत्र महासंघ का खुला अधिवेशन था । फलतः अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये ।
महामंत्री डॉ. अनुपम जैन द्वारा प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया । इसकी छपी प्रति सभी विद्वानों को उपलब्ध कराई गई इसमें उन्होंने तीन प्रस्ताव रखें :-
(१) ऋषभगिरि-मांगीतुंगी में विराजमान Statue Of Ahimsa के पादमूल में अिंहसा के अध्ययन का केन्द्र बनाया जाना चाहिये । यहाँ अहिंसा पर राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध प्रकाशित साहित्य/ सी.डी./विडियो आदि का संकलन किया जाना चाहिये । यहां अहिंसा की आवश्यकता, उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं अपरिहार्यता पर सतत चिन्तन होना चाहिये ।
(२) प्रतिवर्ष १ दिन विद्वान यहां एकत्रित होकर अहिंसा के प्रचार एवं उसके विविध पहलुओं पर चिंतन करें । द्वारा २ अक्टूबर गाँधी जयन्ती को अहिंसा दिवस घोषित किया गया है अतः यह दिन उपयुक्त रहेगा । कोई अन्य तिथि भी रखी जा सकती है ।
(३) अहिंसा पर विभिन्न भाषाओं में १६ पृष्ठीय लघु पुस्तिका आकर्षक रूप में प्रकाशित कर यहां आने वाले प्रत्येक यात्री को निःशुल्क उपलब्ध कराई जानी चाहिये एवं अहिंसा पर शोध पूर्ण आलेखों को समाहित करने वाली एक प्रामाणिक पुस्तक का सृजन किया जाये तो यहां सशुल्क उपलब्ध रहे । तीनों प्रस्ताव सर्वानुमति से स्वीकार कर मूर्ति निर्माण कमेटी से क्रियान्वयन में सहयोग का अनुरोध किया गया । पं. जयसेन जैन सम्पादक – सन्मतिवाणी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि
(१) भगवान ऋषभदेव की मूर्ति के सम्मुख मूर्ति निर्माण की प्रेरिका पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की भी मूर्ति स्थापित की जानी चाहिये । इसके समर्थन में उन्होंने इन्दौर के कई उदाहरण भी प्रस्तुत किये ।
(२) भगवान ऋषभदेव की विशाल मूर्ति के निर्माण के कारण मांगी-तुंगी अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र बन गया है । यहाँ यात्रियों की संख्या सतत बढ़ेगी इस दृष्टि से इसे मनमाड़, नासिक आदि से रेलमार्ग से जोड़ने हेतु प्रयास किये जाने चाहिये ।
डॉ. सुशील जैन मैनपुरी ने इस प्रस्ताव के सन्दर्भ में चर्चा में सम्मिलित होते हुए कहा कि (१) प्रथम प्रस्ताव अच्छा है किन्तु समाज के प्रतिक्रियाओं को दृष्टिगत कर समयानुसार इसको क्रियान्वित करना चाहिए । (२) दूसरे प्रस्ताव में रेल लाइन की स्थापना में समय लगेगा अतः तात्कालिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए तत्काल समीपवर्ती प्रमुख शहरों, मुम्बई, इन्दौर, धूलिया, मालेगाँव, नासिक, सूरत, मनमाड़, सटाणा से नियमित बस सेवायें शुरु करनी चाहिये । एतदर्थ मांगीतुंगी में बस स्टैण्ड की तत्काल स्थापना की जाये ।
स्वागताध्यक्ष श्री जे.के. जैन ने पुराने संस्मरण सुनाते हुए रेललाइन के निर्माण कार्य की स्वीकृति हेतु आवश्यक शासकीय आवश्यकताओं की पूर्ति में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया तथा माताजी की मूर्ति की स्थापना के प्रस्ताव का पुरजोर समर्थन किया ।
सदन में करतल ध्वनि से दोनों प्रस्तावों को पारित किया। सदन के अनुरोध पर इन प्रस्तावों को उपयुक्त स्थान पर पहुँचाने का विश्वास दिलाया ।
इस अवसर पर सदन में उपस्थित सभी सभागत विद्वानों का महोत्सव समिति द्वारा अंगवस्त्र, तिलक एवं प्रतीक चिन्ह द्वारा सम्मान किया गया ।
महासंघ के उपाध्यक्ष प्रो. टीकमचंद जैन, दिल्ली ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में पूज्य माताजी के अवदानों की चर्चाएं की और कहा कि यह महोत्सव वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय है क्योंकि इसमें कनाड़ा, अमेरिका, सिंगापुर आदि अनेक देशों के प्रतिनिधि पधारे हैं । मूर्ति निर्माण का असंभव कार्य पूर्ण होना पूज्य माताजी की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं तपस्या का ही फल है ।
महासंघ के अध्यक्ष पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने सभी विद्वानों का आह्वान किया कि वे क्षेत्र से आत्मीयता से जुड़े तथा श्रमण संस्कृति के मूलस्वरूप की रक्षा का अपना दायित्व निभायें । आपने कहा कि इस तीर्थ पर मूर्ति निर्माण में हमने केवल एवं केवल दि. जैन समाज का पैसा लिया है । यह तीर्थ किसी एक व्यक्ति का नहीं अपितु सम्पूर्ण दि. जैन समाज का है । सरकार का सहयोग केवल यात्रियों के लिये सड़क, पानी, बिजली की व्यवस्था तक सीमित है । यात्रियों के लिए आवास एवं भोजन की व्यवस्था भी हमने दिगम्बर जैन समाज के पैसे से ही की है । अत: यह क्षेत्र पूर्णत: दि. जैन समाज का है ।
आपने विश्व की इस सबसे बड़ी दिगम्बर जैन मूर्ति के प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर आयोजित विद्वत् सम्मेलन में विद्वानों की सबसे बड़ी उपस्थिति पर प्रसन्नता एवं सभी के सहयोग से महोत्सव की ऐतिहासिक उपलब्धियों पर खुशी व्यक्त की ।
पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने आशीर्वचन में निम्न बिन्दुओं पर जोर दिया :-
(१) प्रतिवर्ष वीर शासन जयन्ती पर्व, श्रावक कृष्ण प्रतिपदा (एकम) को अवश्य मनायें। श्रावकों को भी एतदर्थ प्रेरणा दी ।
(२) फाल्गुन कृष्णा एकादशी को भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी । इसका प्रचार प्रसार करें। प्रयाग में वह वट वृक्ष आज भी सरकारी संरक्षण में सुरक्षित है जहां भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ था ।
(३) भगवान महावीर के समवसरण में साक्षात् उपस्थित प्रमुख गणधर गौतम स्वामी ने चैत्यभक्ति की रचना की थी । पं. लालाराम जैन ने दशभक्त्यादि संग्रह में लिखा है कि मूर्ति पूजा ब्राह्माणों से नहीं आई है यह तो महावीर के केवलज्ञान के समय से चल रही है । तीनों प्रतिक्रमण पाठ गौतम स्वामी की रचनायें हैं । विद्वान इनमें संशोधन, परिवर्तन या मिक्सिंग न करें । विद्वान एतद् विषयक प्रस्ताव पारित करें । (यह प्रस्ताव एक दिन पूर्व पारित हो चुका है)
(४) विद्वानों को अपनी बात निर्धारित समय सीमा में प्रस्तुत करने का गुण विकसित करना चाहिए ।
(५) १३ या २० पंथ के विवाद में विद्वानों को नहीं पड़ना चाहिये । दोनों में सामंजस्य बना कर रखें । जहां जो पंथ चल रहा है उसे स्वीकार करना चाहिये । पंथवाद से समाज न टूटे इस बात का ध्यान रखना एवं प्रचार करना विद्वानों का कत्र्तव्य है । विघटन को रोके संगठन बनावें ।
पूज्य आचार्य श्री अनेकान्त सागरजी ने सभी विद्वानों को अपना आशीर्वाद दिया । वर्षा के कारण रात्रिकालीन सत्र स्थगित किया गया ।
विद्वान सामूहिक रूप में माताजी के पास पहुंचे एवं उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया । पूज्य माताजी ने विद्वानों को साहित्य भेंट कर आशीर्वाद दिया । विदाई के यह क्षण बहुत गरिमामय रहे । सम्मेलन अत्यन्त सफल एवं स्मरणीय रहा ।
-डॉ. अनुपम जैन, सुरेश जैन ‘मारोरा’ एवं राजेन्द्र जैन ‘महावीर’ द्वारा संकलित