दिगम्बर मुनिधर्म की अविच्छिन्न धारा से सुशोभित, दक्षिण भारत के अन्तर्गत महाराष्ट्र प्रान्त में औरंगाबाद जिले के अड़गाँव ग्राम में श्रेष्ठी श्री नेमीचन्द्र जी रांवका के गृहांगन में माता दगड़ाबाई की कुक्षि से वि.सं. १९५८ में एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम हीरालाल रखा गया।
हीरालाल जी पूर्व जन्म के संस्कारवश बालब्रह्मचारी रहे। आचार्यश्री शांतिसागर महाराज से आपने २८ वर्ष की उम्र में द्वितीय प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए। वि.सं. २००० में आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और शिवसागर नाम प्राप्त किया। वि.सं. २००६ में नागौर (राज.) में आषाढ़ शु. ११ को मुनि दीक्षा प्राप्त कर मुनि श्री शिवसागर महाराज बन गए। ८ वर्ष तक गुरु के सान्निध्य में रहकर कठोर तपस्या की पुन: वि.सं. २०१४ (सन् १९५७) में आचार्यश्री वीरसागर महाराज का जयपुर खानियाँ में समाधिमरण हो गया तब चतुर्विध संघ ने आपको आचार्य पट्ट पर अभिषिक्त किया। ११ वर्षों तक संघ का कुशल संचालन करने के पश्चात् वि.सं. २०२५ (सन् १९६९) में अल्पकालीन ज्वर होने से फाल्गुन कृ. अमावस्या के दिन अकस्मात् आपका समाधिमरण हो गया । इस परम्परा के द्वितीय पट्टाचार्य श्री शिवसागर महाराज के चरणों में कृतिकर्मपूर्वक नमोऽस्तु।