स्त्री—सृजक और पालनहार। संस्कारों और मूल्यों का परचम जिसके जिम्मे है, हर पीढ़ी में परिवर्तन का सामना करने का हौंसला भरना जिसका काम है, वह स्त्री खुद को दूसरों की निगाह से देखकर खुश करती है । संदेहों से वह प्रभावित नहीं होती क्योंकि अपनी क्षमताओं से वह भली—भाँति परिचित है । एक नन्हीं सी बालिका अपने कमर पर शिशु को संभाले देखती जा सकती है । कोई उसे नहीं कहता—‘बिटिया जरा ख्याल रखना’ क्योंकि जानते हैं, ख्याल रखने का गुण ईश्वर ने उसके अस्तित्व के साथ ही बुना है । उसकी नन्हीं रसोई होती है, जिस पर छुटकी सी रोटियाँ बनती है और बड़ों का पेट संतोष से भर जाता है । जानते हैं, अन्नपूर्णा तो वही है । जिसके बिना दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती, संसार की वह रचयिता दंभ की मारी नहीं है । उसका आत्मविश्वास किसी को चुनौती नहीं देता । अगर हाथ उठाए तो आसमान सकुचाकर परे हो जाए, पर वह तो सिर्फ नमन करती है । अपनी क्षमताओं को चुनौती देने वाले को ललकारे, तो पाताल थर्रा जाए, पर वह सिर्फ मौन की भाषा बोलती है । निर्जीव में प्राण फूकती है, जीवन का प्रवाह उसी से है । ……..वह स्त्री है, सृजक है, पालनहार है, अन्नपूर्णा है, माँ है । स्त्री को, अस्तित्व के स्रोत को, श्रद्धा, आस्था, समर्पण से नमन है ……वंदन है ……! स्त्री उत्सव दिवस पर मेरा सभी को कोटिशः वंदन …….अभिनंदन है ।