जमवंमेघगिरीदो पंचसया जोयणाणि गंतूणं।
पंचदहा पत्तेक्वं सहस्सदलजोयणंतरिदा१।।२०८९।।
उत्तरदक्खिणदीहा सहस्समेक्वं हवंति पत्तेक्वं।
पंचसयजोयणाइं रुंदा दसजोयणवगाढा।।२०९०।।
णिसहकुरुसूरसुलसा बिज्जूणामेह होंति ते पंच।
पंचाणं बहुमज्झे सीदोदा सा गदा सरिया।।२०९१।।
होंति दहाणं मज्झे अंबुजकुसुमाण दिव्वभवणेसुं।
णियणियदहणामाणं णागकुमाराण वासा वि।।२०९२।।
अवसेसवण्णणाओ जाओ पउमद्दहम्मि भणिदाओ।
ताओ च्चिय एदेसुं णादव्वाओ वरदहेसुं।।२०९३।।
एक्केक्कस्स दहस्स य पुव्वदिसाए य अवरदिब्भाए।
दह दह कंचणसेला जोयणसयमेत्तउच्छेहा।।२०९४।।
पुव्वस्सिं चित्तणगो पच्छिमभाए विचित्तकूडो य।
जमकंमेघगिरि व्व सव्वं चिय वण्णणं तणं।।२१२४।।
जमकगिरिंदाहिंतो पंचसया जोयणाणि गंतूणं।
पंच दहा पत्तेक्वं सहस्सदलजोयणंतरिदा।।२१२५।।
णीलकुरुइंदुएरावदा य णामेहिं मालवंतो य।
ते दिव्वदहा णिसहद्दहादिवरवण्णणेहिं जुदा।।२१२६।।
दुसहस्सा बाणउदी जोयण दोभाग ऊणवीसहिदा।
चरिमदहादो दक्खिणभागे गंतूण होदि वरवेदी।।२१२७।।
चरियट्टालयपउरा सा वेदी विविहधयवडेहि जुदा।
दारोवरिमठिदेहिं जिणिंदभवणेहिं रमणिज्जा।।२१२९।।
मेरुगिरिपुव्वदक्खिणपच्छिमए उत्तरम्मि पत्तेक्वं।
सीदासीदोदाए पंच दहा केइ इच्छंति।।२१३६।।
ताणं उवदेसेण य एक्केक्कदहस्स दोसु तीरेसुं।
पण पण कंचणसेला पत्तेक्वं होंति णियमेणं।।२१३७।।
यमक और मेघगिरि से आगे पाँच सौ योजन जाकर पाँच द्रह हैं, जिनमें प्रत्येक के बीच अर्ध सहस्र अर्थात् पाँच सौ योजन का अन्तराल है।।२०८९।।
प्रत्येक द्रह एक हजार योजन प्रमाण उत्तर-दक्षिण लंबे, पाँच सौ योजन चौड़े और दस योजन गहरे हैं।।२०९०।।
निषध, कुरु (देवकुरु), सूर, सुलस और विद्युत्, ये उन पाँच द्रहों के नाम हैं। इन पाँचों द्रहों के बहुमध्य भाग में से सीतोदा नदी गई है।।२०९१।।
द्रहों के मध्य में कमल पुष्पों के दिव्य भवनों में अपने-अपने द्रह के नाम वाले नागकुमार देवों के निवास हैं।।२०९२।।
अवशेष वर्णनाएँ जो पद्मद्रह के विषयम कही गई हैं, वे ही इन उत्तम द्रहों के विषय में भी जानना चाहिए।।२०९३।।
प्रत्येक द्रह के पूर्व और पश्चिम दिग्भाग में एक सौ योजन ऊँचे दश-दश कांचन- शैल हैं।।२०९४।।१००।
सीता के पूर्व में चित्रनग और पश्चिम भाग में विचित्रकूट है। इनका सब वर्णन यमक और मेघगिरि के सदृश ही समझना चाहिए।।२१२४।।
यमक पर्वतों के आगे पाँच सौ योजन जाकर पाँच द्रह हैं, जिनमें से प्रत्येक अर्ध सहस्र अर्थात् पाँच सौ योजन प्रमाण दूरी पर हैं।।२१२५।।५००।
नील, कुरु (उत्तरकुरु), चन्द्र, ऐरावत और माल्यवन्त, ये उन दिव्य द्रहों के नाम हैं। ये दिव्य द्रह निषधद्रहादिक के उत्तम वर्णनों से युक्त हैं।।२१२६।।
अन्तिम द्रह से दो हजार बानबै योजन और उन्नीस से भाजित दो भाग प्रमाण जाकर दक्षिण भाग में उत्तम वेदी है।।२१२७।।
वह वेदी पूर्व-पश्चिम भागों में गजदन्तपर्वतों से संलग्न, एक योजन ऊँची और योजन के आठवें भाग प्रमाण विस्तार से सहित है।।२१२८।।
प्रचुर मार्ग व अट्टालिकाओं से सहित और नाना प्रकार की ध्वजा-पताकाओं से संयुक्त वह वेदी द्वारों के उपरिम भागों मे स्थित जिनेन्द्र भवनों से रमणीय है।।२१२९।।
कितने ही आचार्य मेरुपर्वत के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर, इनमें से प्रत्येक दिशा में सीता तथा सीतोदा नदी के पाँच द्रहों को स्वीकार करते हैं।।२१३६।।
उनके उपदेश से एक-एक द्रह के दोनों किनारों में से प्रत्येक किनारे पर नियम से पाँच-पाँच काँचन शैल हैं।।२१३७।।