उत्तरदेवकुरूसुं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईसंडो।।२६००।।
धादइतरूण ताणं परिवारदुमा भवंति एदिंस्स। दीवम्मि पंचलक्खा सट्ठिसहस्साणि चउसयासीदी।।२६०१।। ५६०४८० ।
पियदंसणो पभासो अहिवइदेवा वसंति तेसु दुवे। सम्मत्तरयणजुत्ता वरभूसणभूसिदायारा।।२६०२।।
आदरअणादराणं परिवारादो भवंति एदाणं। दुगुणा परिवारसुरा पुव्वोदिदवण्णणेहिं जुदा।।२६०३।।
धातकीखण्डद्वीप के भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों में धातकीवृक्ष स्थित हैं, इसी कारण इस द्वीप का ‘‘धातकीखण्ड’’ यह सार्थक नाम है।।२६००।। इस द्वीप में उन धातकी वृक्षों के परिवारवृक्ष पाँच लाख साठ हजार चार सौ अस्सी हैं।।२६०१।। ५६०४८०। उन वृक्षों पर सम्यक्त्वरूपी रत्न से संयुक्त और उत्तम भूषणों से भूषित आकृति को धारण करने वाले प्रियदर्शन और प्रभास नामक दो अधिपति देव निवास करते हैं।।२६०२।। इन दोनों देवों के परिवारदेव आदर और अनादर देवों के परिवार देवों की अपेक्षा दुगुणे हैं, जो पूर्वोक्त वर्णन से संयुक्त हैं।।२६०३।। विशेष-इससे यह सिद्ध होता है कि धातकीखण्ड में पद्मसरोवर में श्री देवी के परिवार कमलों की संख्या जम्बूद्वीप से दूनी है। आगे निषध तक दूनी-दूनी हैं ऐसे ही पुष्करार्ध द्वीप में भी हिमवान के पद्मसरोवर में श्री देवी के परिवार कमलों की संख्या धातकीखण्ड से दूनी है, आगे महापद्म व तिगिंछ सरोवर के कमलों की दूनी-दूनी है।