तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुरी का, कण-कण सचमुच पावन है।
तीन-तीन तीर्थंकर के, कल्याणक से मनभावन है।।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने, जहाँ प्रथम आहार लिया।
मुनियों की आहारविधी, बतला शिवपथ साकार किया।।१।।
उस पावन तीरथ को मेरा, वंदन है अभिनंदन है।
तीर्थधाम हस्तिनापुरी का, इतिहासों में वर्णन है।।
कौरव-पाण्डव के निमित्त से, हुआ महाभारत भी यहीं।
न्याय हुआ विजयी एवं, अन्याय पराजित हुआ यहीं।।२।।
युगों-युगों के इतिहासों से, बनी ऐतिहासिक नगरी।
महावीर युग में प्रसिद्ध, हो गई आज हस्तिनापुरी।।
वीरप्रभू का पच्चिस सौवां, निर्वाणोत्सव जब आया।
इस तीरथ ने गणिनी माता, ज्ञानमती जी को पाया।।३।।
एक अचेतन तीरथ पर, चैतन्य तीर्थ जब उदित हुआ।
शान्ति कुंथु–अरनाथ प्रभू का, चमत्कार तब प्रगट हुआ।।
चार-चार कल्याणक उनके, इसी भूमि पर हुए कभी।
तीर्थंकर चक्री-कामदेव, पदधारक त्रयतीर्थंकर ही।।४।।
यही पुण्य परमाणु ज्ञानमती माता ने स्पर्श किये।
तभी तीर्थ पर जम्बूद्वीप, बनाने के शुभ भाव हुए।।
रचना भी बन गई और, तीरथ का पूर्ण विकास हुआ।
ज्ञानज्योति रथ के निमित्त से, जन-जन को यह ज्ञात हुआ।।५।।
सन् उन्निस सौ पिच्चासी में, लाखों जनता ने देखा।
जम्बूद्वीप की रचना में, भूगोल जैन सबने देखा।
इस धरती पर सदियों के पश्चात् बहारें आई थीं।
शासन और प्रशासन ने भी, मिलकर खुशी मनाई थी।।६।।
धरती पर मानों स्वर्ग देख, सबके हर्षाश्रू छलक पड़े।
पर्वत सुमेरु के ऊपर तक, अभिषेक हेतु जब इन्द्र चढ़े।।
इक सौ इक फुट ऊँचे सुमेरु के, ऊपर भीड़ लगी रहती।
ऊपर से नीचे पूरे जम्बूद्वीप की है रचना दिखती।।७।।
इस रचना में अकृत्रिम जिनवर-मंदिर सभी अठत्तर हैं।
तथा देवभवनों के मिल दो, शतक सात जिन मंदिर हैं।।
इस गोलाकार बनी रचना में, सुन्दर बाग-बगीचे हैं।।
चौदह महानदी और क्षेत्र-पर्वत के दृश्य अनोखे हैं।।८।।
हे आयुष्मन भव्यात्माओं! इन जिनभवनों को नमन करो।
इक सौ छत्तिस सीढ़ी चढ़ कर, गिरिवर सुमेरु वंदन कर लो।।
इस जम्बूद्वीप को घेर के चारों, ओर है लवणसमुद्र बना।
उसमें करके नौका विहार, सब प्रतिमा को भी नमन करना।।९।।
पैदल प्रदक्षिणा भी करके, आत्मिक शारीरिक स्वास्थ्य लहो।
प्राकृतिक सुरभि जलवायू से, बिन औषधि के भी स्वस्थ रहो।।
कितने रोगी इस तीरथ के, दर्शन से स्वस्थ हुआ करते।
कितने योगी इस जम्बूद्वीप के, ध्यान में मग्न हुआ करते।।१०।।
जब नग्न दिगम्बर मुनिवर इस, मेरू गिरि का वंदन करते।
लगता है सचमुच चारण ऋद्धी-धारी मुनि पर्वत चढ़ते।।
तीर्थंकर के जन्माभिषेक में, चारण ऋषिवर आते हैं।
जिनशास्त्रों में है वर्णन वे, अभिषेक देख हरषाते हैं।।११।।
इसलिए आज भी साधु-सन्त, जन्माभिषेक देखा करते।
अभिषेक वंदना क्रिया आदि से, निज को धन्य किया करते।।
जब पाण्डुक आदि शिलाओं पर, अभिषेक का अवसर प्राप्त करो।
तब खुद तीर्थंकर बनने का, निज शुद्ध हृदय में भाव भरो।।१२।।
यह पुण्य आज इस कलियुग में, इसलिए सभी को प्राप्त हुआ।
क्योंकि माता श्री ज्ञानमती के, ज्ञान का शुभ्र प्रकाश हुआ।।
जाने-अनजाने में भी जो इन, प्रतिमाओं को नमन करें।
वे मिष्ट मधुर फल को पाकर, अपनी आत्मा को चमन करें।।१३।।
यह जम्बूद्वीप की महिमा मैंने, अतिसंक्षिप्त बताई है।
जिस नाम से ही हस्तिनापुरी ने, नूतन ख्याती पाई है।।
इस रचना के अतिरिक्त तीर्थ, परिसर में मंदिर कई बने।
सबमें भगवान विराजित हैं, जिनभक्त भक्ति से उन्हें नमें।।१४।।
इस जम्बूद्वीप के मुख्यद्वार पर, कल्पवृक्ष है बना हुआ।
श्री णमोकार का महामंत्र भी, इसी द्वार पर लिखा हुआ।।
इस द्वार से अंदर जाकर सारा, परिसर स्वर्ग सदृश लगता।
है इतना स्वच्छ सुरम्य तीर्थ, जहाँ रहने का ही मन करता।।१५।।
सुन्दर है श्वेत कमल मंदिर, जहाँ कल्पवृक्ष भगवान खड़े।
मनवांछित फल की प्राप्ति हेतु, वहाँ छत्र चढ़ाते भक्त बड़े।।
पुल से जाकर इस मंदिर में, महावीर प्रभू को नमन करो।
अतिशययुत अवगाहन प्रमाण, प्रतिमा से सब सुख वरण करो।।१६।।
इक तीन मूर्ति मंदिर विशाल, इस तीर्थ का मुख्य जिनालय है।
वृषभेश भरत बाहूबलि की, प्रतिमाएँ जहाँ सुखालय हैं।।
आजू-बाजू की वेदी में, तीर्थंकर नेमि व पारस हैं।
इनमें से कालसर्प का योग, विनाश करें प्रभु पारस हैं।।१७।।
इन सब जिनवर को वन्दन करके, अन्य मंदिरों में भी चलो।
प्रभु शांतिनाथ अरु वासुपूज्य-मंदिर व ॐ मंदिर को नमो।।
फिर मंदिर एक सहस्रकूट, व बीस तीर्थंकर मंदिर है।
श्री ऋषभदेव मंदिर एवं नवग्रह मंदिर भी सुन्दर है।।१८।।
इन सातों मंदिर के हि निकट इक तेरहद्वीप जिनालय है।
जहाँ तेरहद्वीप के चार शतक, अट्ठावन शुभ चैत्यालय हैं।।
ढ़ाई द्वीपों में पाँच मेरु, इक सौ सत्तर हैं समवसरण।
देवों के भवन आदि सबमें, दो सहस्र मूर्तियों को प्रणमन।।१९।।
सन् उन्निस सौ पैंसठ में गणिनी ज्ञानमती माताजी ने।
पिण्डस्थ ध्यान करते-करते, यह रचना पाई थी उनने।।
देखा पुनश्च करणानुयोग, ग्रंथों में वह सारी रचना।
वह जम्बूद्वीप व तेरहद्वीप की, बनी तभी अद्भुत रचना।।२०।।
इस रचना के दर्शन करके, कीर्तिस्तंभ के प्रभुवर को नमो।
फिर सुन्दर उपवन फुलों को लख, अष्टापद मंदिर को चलो।।
त्रैकालिक चौबिस तीर्थंकर युत, गिरि कैलाश सुशोभित है।
इस मंदिर के सम्मुख पूरब में, ध्यान का मंदिर स्थित है।।२१।।
चौबिस तीर्थंकर से संयुत, इक हीं की प्रतिमा बनी यहाँ।
भक्तों को ध्यान लीन होने पर, मिलती अनुपम शांति जहाँ।।
बाहर से हरितकाय संयुत, यह मंदिर अतिशय प्यारा है।
ऐसे तीरथ का दर्शन कर, समझो सौभाग्य हमारा है।।२२।।
इन सब मंदिर के साथ, मनोरंजन के भी कुछ स्थल हैं।
ऐरावत हाथी पर चढ़ करते, परिक्रमा सब सुखपद्र हैं।।
यात्री सारी सुविधाओं को, पाकर लाभान्वित होते हैं।
ऐसा आनंद न मिला कहीं, ऐसा कहकर खुश होते हैं।।२३।।
जयशील रहे यह तीर्थ हस्तिनापुर का यश फैले जग में।
जयशील रहे यह जम्बूद्वीप, व मेरु सुदर्शन भी युग में।।
जयशील ज्ञानमति माता हो, जिनकी यह कर्मभूमि सच में।
उनकी शिष्या ‘‘चन्दनामती’’ की, अभिलाषा यह प्रभु पद में।।२४।।
तीर्थंकर अरु तीर्थ को, नमन करूँ शत बार।
हो तीरथ की वंदना, जीवन में साकार।।
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