१- प्रात: उठकर णमोकार मंत्र पढ़कर पंचपरमेष्ठी का स्मरण करें।
२- तत्पश्चात् माता—पिता के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
३- प्रतिदिन दिनचर्या करके शुद्ध वस्त्र पहनकर चांवल लेकर मन्दिर जी में जिन प्रतिमा के दर्शन करने जायें।
४- मंदिरजी में प्रवेश के पूर्व पैर धोयें एवं मुँह साफ करें।
५- प्रतिदिन किसी भी धर्मशास्त्र या पुराण का १० मिनिट स्वाध्याय अवश्य करें।
६- चमड़े की वस्तुओं का उपयोग न करें।
७- शिष्टाचार रूप में साधर्मियों से मिलने पर ‘जय जिनेन्द्र’ कहकर अभिवादन करें।
८- हित—मित—प्रिय वचनों का व्यवहार करें।
९- सबकी भावनाओं का ध्यान रखें।
१०- हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पाँच पापों से भयभीत रहें।
११- गरीबों की यथाशक्ति मदद करें।
१२- विपत्ति आने पर भी सत्य का साथ न छोड़े ।
१३- क्रोध शत्रु है, इससे मित्रता नष्ट होती है।
१४- कुसंस्कार या बुरे आचरण करने वालों से दूर रहें।
१५- दूसरों की निंदा / चुगली से बचें।
१६- कक्षा में निश्चित स्थान से उठकर नहीं जायें।
१७- बिना अनुमति कक्षा से उठकर नहीं जायें
१८- दूसरों के अवगुण गिनाकर नीचे दिखाने का प्रयास करना महापाप है।
१९- हमेशा अपने से बड़ों को आप कहकर सम्बोधित करें।
२०- सहपाठियों के साथ विवाद करने से बचें।