Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
अकम्पनाचार्यादि सात सौ मुनियों की पूजन
August 1, 2020
पूजायें
jambudweep
अकम्पनाचार्यादि सात सौ मुनियों की पूजन
तर्ज – धीरे-धीरे बोल कोई सुन ना ले.
स्थापना
सात शतक मुनिवरों की अर्चना करूँ, अर्चना करूँ इनकी वंदना करूँ।
ये अकम्पनाचार्यादि थे, उपसर्गजयी मुनिराज थे।।सात शतक.।।टेक.।।
हस्तिनागपुर नगरी के उद्यान में, एक बार इन मुनि के चातुर्मास थे।
अग्नी का उपसर्ग किया बलि आदि ने, दूर किया उपसर्ग विष्णु मुनिराज ने।।
वे सब मुनी, ध्यानस्थ थे, निज आत्म में, अनुरक्त थे।
उनके पद में वन्दन करूँ, उन मुनियों का अर्चन करूँ।।सात.।।१।।
रक्षाबंधन पर्व तभी से चल गया, यति रक्षा का भाव हृदय में भर गया।
उनकी पूजन हेतू स्थापना किया, पुण्य हाथ में लेकर आह्वानन किया।।
वे सब मुनी, ध्यानस्थ थे, निज आत्म में, अनुरक्त थे।
उनके पद में वंदन करूँ, उन मुनियों का अर्चन करूँ।।सात.।।२।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतकमुनिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतकमुनिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतकमुनिसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक
सात शतक मुनिवरों की अर्चना करूँ, अर्चना करूँ इनकी वंदना करूँ।
ये अकम्पनाचार्यादि थे, उपसर्गजयी मुनिराज थे।।सात शतक.।।टेक.।।
हस्तिनापुर में गंगा नदी है बह रही, उस जल से गुरुपद में जल धारा करी।
जन्म जरा मृत्यू मेरा भी नाश हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।१।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन सा शीतल स्वभाव मुनि का कहा, चन्दन ले गुरुचरणों में चर्चन किया।
मेरा भव आताप शीघ्र ही नाश हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।२।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: संसारताप-विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षय पद प्राप्ति में मुनिवर रत रहें, इसीलिए अक्षत से गुरु पूजन करें।
शीघ्र मुझे भी अक्षय पद की प्राप्ति हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।३।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
फूलों सी मृदुता मुनिवर मन की कही, फूलों को ले गुरुपद की पूजा करी।
काम व्यथा मेरी भी शीघ्र विनाश हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।४।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि क्षुधरोग विनाशन पथ पर चल रहे, उनकी पूजन अत: करूँ नैवेद्य से।
क्षुधारोग मेरा भी शीघ्र विनाश हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।५।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मोहनाश की युक्ति मुनीजन कर रहे, इसीलिए उन पूजन में दीपक जले।
मोह तिमिर मेरा भी शीघ्र विनाश हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।६।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्मनाश की युक्ति मुनीजन कर रहे, इसीलिए पूजन में धूप दहन करें।
मेरे आठों कर्म शीघ्र ही नाश हों, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।७।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तम फल की आश में यतिगण लग रहे, मैंने उन पूजन में फल अर्पण किये।
मुझे शीघ्र ही मोक्ष महाफल प्राप्त हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।८।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
पद अनघ्र्य का यत्न मुनीजन कर रहे, अर्घ्य थाल में अष्टद्रव्य मैंने लिए।
मुझे ‘चंदनामती’ अनघ पद प्राप्त हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।
अर्चन करूँ, वन्दन करूँ, रक्षाबंधन सुमिरन करूँ, गुरुचरणों में प्रणमन करूँ।।सात शतक.।।९।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादिसप्तशतक मुनीन्द्रेभ्य: अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर्ण कलश में शुद्ध नीर भर कर लिया, शांतीधारा सप्त शतक मुनि पद किया।
मुझ मन में आत्यंतिक शांती प्राप्त हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
हस्तिनापुर के उपवन में जो फूल हैं, उनसे पुष्पांजलि करना अनुकूल है।
पुष्प सदृश सुरभी मुझ मन को प्राप्त हो, ऐसी शक्ति मिले निज ज्ञान विकास हो।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जयमाला
तर्ज-सपने में………
यह सात शतक मुनि पूजन की जयमाला है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।टेक.।।
इक कथा सुनी है पुरानी, हस्तिनापुरी की निशानी।
नृप पद्म की थी रजधानी, रोमांचक जिनकी कहानी।।
उनके मंत्रियों के छल का राज बताना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।१।।
इक बार सात सौ मुनिवर, आए थे हस्तिनापुरिवर।
उद्यान में ठहरा था संघ, गये दर्शन को राजा तब।।
गुरु दर्शन से निज मन को शान्त बनाना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।२।।
बलि आदि राजमंत्री वे, जिनधर्म के विद्वेषी थे।
अपमान किया था मुनि का, उसका फल उन्हें मिला था।।
अब फिर मुनि से बदला लेने को ठाना है।
गुरु भक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।३।।
वरदान धरोहर में था, नृप से मांगा उनने था।
बस सात दिवस तक हमको, निज राज्य हस्तिनापुर दो।।
मंत्री को राज्य दे नृप को वचन निभाना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।४।।
राजा से राज्य को पाकर, उपसर्ग किया मुनियों पर।
चहुँ ओर अग्नि जलवाई, देकर के यज्ञ दुहाई।।
मुनियों ने सोचा आतम ध्यान लगाना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।५।।
मचा हाहाकार धरा पर, तब आए विष्णु मुनीश्वर।
निज वामन वेष बनाकर, विक्रिया ऋद्धि फैलाकर।।
उपसर्ग दूर कर दिया जगत ने जाना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।६।।
चला रक्षाबंधन तब से, श्रावणी पूर्णिमा तिथि से।
वात्सल्यपर्व कहलाया, सबने इसको अपनाया।।
बलि आदि मंत्रियों ने गुरुमहिमा जाना है।
गुरु भक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।७।।
उपसर्ग समाप्त हुुआ जब, मुनि का आहार हुआ तब।
चौके में खीर बनी थी, हर मन में भक्ति घनी थी।।
वह क्षण सुमिरन कर सबको हर्ष मनाना है।
गुरुभक्ति सहित चरणों में अर्घ्यं चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।८।।
करूँ भक्ति सात सौ मुनि की, अरु विष्णु महामुनिवर की।
उपसर्गविजय भूमी की, हस्तिनापुरी नगरी की।।
‘‘चन्दनामती’’ सबको पूर्णार्घ्य चढ़ाना है।
गुरु भक्ति सहित चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।यह सात शतक.।।९।।
ॐ ह्रीं उपसर्गविजयि-अकम्पनाचार्यादि-सप्तशतकमुनीन्द्रेभ्य: जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
सात शतक मुनि अर्चना, देवे धैर्य व शक्ति।
रक्षाबंधन के दिवस, करो सदा गुरुभक्ति।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।
Tags:
Vrat's Puja
Previous post
कल्याणमंदिर पूजा
Next post
कवलचान्द्रायण पूजा
Related Articles
चौबीस तीर्थंकर गणिनी पूजा
August 12, 2020
jambudweep
जिनसहस्रनाम पूजा
August 19, 2020
jambudweep
श्री शीतलनाथ पूजा
July 23, 2020
jambudweep
error:
Content is protected !!