Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
कुण्डलपुर तीर्थ पूजा
August 3, 2020
पूजायें
jambudweep
कुण्डलपुर तीर्थ पूजा
रचयित्री-आर्यिका चन्दनामती
स्थापना
(चौबोल छन्द)
महावीर प्रभु जहां जन्म ले, सचमुच बने अजन्मा हैं।
जिस धरती पर त्रिशला मां ने, एक मात्र सुत जनमा है।।
उस बिहार की कुण्डलपुर, नगरी को वन्दन करना है।
वन्दन कर उस तीरथ का, हर कण चन्दन ही समझना है।।
दोहा
आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान।
अष्टद्रव्य का थाल ले, पूजा करूँ महान।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुुरतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुुरतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुुरतीर्थक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक
(शंभु छंद)
जिनवर ने कर्मों की ज्वाला, समता के जल से शांत किया।
भक्तों ने ले जल की धारा, जिनवर का पद प्रक्षाल किया।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
जहां प्रभु सन्मति को लखते ही, मुनियों की शंका दूर हुई।
जहां की चंदनसम माटी से, भव की बाधा निर्मूल हुई।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्पुडलर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय संसारताप-विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु ने अक्षय पद पाने का, जिस धरती पर संकल्प लिया।
अक्षत के पुंज चढ़ा मैंने, उन प्रभु अर्चन का यत्न किया।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
महलों का सुख वैभव तज कर, जहाँ वीर बने वैरागी थे।
कर कामदेव पर विजय चले, शिवपथ के वे अनुरागी थे।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
देवों द्वारा लाया भोजन, महावीर सदा ही खाते थे।
क्षुधरोग विनाशन हेतु तथापी, वे निज काय तपाते थे।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मतिश्रुत व अवधि त्रय ज्ञान सहित, तो वीर प्रभू थे जन्म से ही।
मनपर्ययज्ञान हुआ प्रगटित, प्रभुवर के दीक्षा लेते ही।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूं शत वन्दन मैं।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु शुक्ल ध्यान की अग्नी में, कर्मों की धूप जलाते थे।
उनकी सौरभ पाने हेतु, प्रभु पास भक्तगण आते थे।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-विध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
महावीर प्रभु ने तप करके, कैवल्य महाफल पाया है।
भक्तों ने इच्छा पूर्ति हेतु, फल प्रभु चरणों में चढ़ाया है।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
निजअष्टकर्म के नाशक प्रभु की, अष्टद्रव्य से पूजन है।
‘‘चन्दनामती’’ शिवपद हेतू, सन्मति से मेरा निवेदन है।।
महावीर प्रभु की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीर्थ का अर्चन है।
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु करूँ शत वन्दन मैं।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमिकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शेर छन्द
महावीर प्रभु की भक्ति की रसधार जो बही।
उससे मनुज व देवों में सुमति प्रगट हुई।।
निज शांति व शीतल सहज अनुभूति मैं करूँ।
जिनवर का ज्ञान अंश मैं भी निज हृदय भरूँ।।१।।
शांतये शांतिधारा……..
निज ज्ञान के पुष्पों को बिखेरा जो प्रभू ने।
उसकी सुगन्ध ग्रहण कर ली बहुत जनों ने।।
भगवान मुझे यदि तेरे, गुण पुष्प मिल सके।
तो मेरा मोक्षमार्ग बन्द, स्वयं खुल सके।।
दिव्य पुष्पांजलिः……….
प्रत्येक अर्घ्य
(शंभु छन्द)
कुण्डलपुर में सिद्धार्थ नृपति, निज राज्य का संचालन करते।
प्रियकारिणि त्रिशला रानी के संग, पुण्य का संपादन करते।।
आषाढ़ सुदी छठ तिथि में नंद्यावर्त, महल का भाग्य जगा।
जहाँ गर्भ कल्याणक हुआ वीर का, मैं पूजूँ वह धाम महा।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रगर्भकल्याणकपवित्रकुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सित चैत्र त्रयोदशि को महावीर, प्रभू जन्मे कुण्डलपुर में।
स्वर्गों में बाजे बाज उठे, सुरपति के स्वयं ही मुकुट नमे।।
सुरशैल शिखर पर जन्मोत्सव कर, कुण्डलपुर प्रभु को लाये।
उस जन्मभूमि का अर्चन कर, हम सब मन में अति हरषाये।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रजन्मकल्याणकपवित्रकुण्डलपुरतीर्थ-क्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
हुआ जातिस्मरण वीर प्रभु को, दीक्षा का भाव हृदय जागा।
दीक्षा लेते ही प्रगट हुए, चउ ज्ञान मोहप्रभु का भागा।।
वैराग्य भूमि कुण्डलपुर को, मैं जजूँ मुझे वैराग्य मिले।
नृप कूल ने प्रथम आहार दिया, मैं नमूँ पुण्य साम्राज्य मिले।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रदीक्षाकल्याणकपवित्रकुण्डलपुर-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कुण्डलपुर निकट जृंभिका में ऋजुकूला तट पर ज्ञान हुआ।
उसके ऊपर गगनांगण में, प्रभु समवसरण निर्माण हुआ।।
मैं केवलज्ञान कल्याणक की, भूमी का नित्य यजन कर लूँ।
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हेतु, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रकेवलज्ञानकल्याणकपवित्रजृंभिका-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पावापुरि नगरी का जलमंदिर मोक्षकल्याण से पावन है।
प्रभु चरणकमल से वह जलमंदिर भक्तों को मन भावन है।।
उस सिद्धक्षेत्र पावापुर को मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ।
निज आत्मा में परमात्मा को प्रगटाने का मैं यतन करूँ।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रमोक्षकल्याणकपवित्रपावापुरिसिद्धक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्णार्घ्य
जिस नगरी की रज महावीर के, कल्याणक से पावन है।
जहाँ इन्द्र इन्द्राणी की भक्ती का, सदा महकता सावन है।।
उस कुण्डलपुर में नंद्यावर्त, महल का सुन्दर परिसर है।
पूर्णार्घ्य चढ़ाकर नमूँ वहाँ, महावीर की प्रतिमा मनहर है।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीमहावीरजिनेन्द्र-गर्भजन्मदीक्षाकल्याणकपवित्र-कुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजिनेन्द्रत्रयकल्याणकपवित्रकुण्डलतीर्थक्षेत्राय नम:।
जयमाला
तर्ज-जरा सामने तो आओ………
जहाँ जन्मे वीर वर्धमान जी, जहाँ खेले कभी भगवान जी।
उस कुण्डलपुरी की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।टेक.।।
कुण्डलपुर में राजा सर्वारथ, के सुत सिद्धार्थ हुए।
जो वैशाली के नृप चेटक, की पुत्री के नाथ हुए।।
रानी त्रिशला की खुशियां अपार थी, सुन्दरता की वे सरताज थीं।
उस कुण्डलपुरी की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।१।।
राजहंस से मानसरोवर, जैसे शोभा पाता है।
वैसे ही प्रभु जन्म से जन्म, नगर पावन बन जाता है।।
जय जय होती है प्रभु पितु मात की, इन्द्र गाता है महिमा महान भी।
उस कुण्डलपुरी की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।२।।
प्रान्त बिहार में नालंदा के, निकट बसा कुण्डलपुर है।
छब्बिस सौंवे जन्मोत्सव में, गूंजा ज्ञानमती स्वर है।।
तभी आई घड़ी उत्थान की, होती दर्शन से जनता निहाल भी।
उस कुण्डलपुर की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।३।।
प्रभु तेरी उस जन्मभूमि का , कण-कण पावन लगता है।
छोटा सा भी उपवन तेरा, नन्दन वन सम लगता है।।
अर्घ्य का लाके इक लघु थाल जी, करूँ अर्पण झुका निज भाल भी।
उस कुण्डलपुरी की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।४।।
इस तीरथ के अर्चन से, आत्मा तीरथ बन सकती है।
इसकी कीरत के कीर्तन से, कीर्ति स्वयं की बढ़ती है।।
करूँ ‘‘चन्दनामती’’ प्रभु आरती, भरूँ मन में सुगुण की भारती।
उस कुण्डलपुरी की करूँ अर्चना, जय हो सिद्धार्थ त्रिशला के लाल की।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरजन्मभूमि-कुण्डलपुरतीर्थक्षेत्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
शान्तये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
शेर छंद
प्रभु वीर गर्भ जन्मतप कल्याणक जो तीर्थ है।
उनकी यशोगाथा से जो जीवन्त तीर्थ है।।
निज आत्म के कल्याण हेतु उनको मैं नमूँ।
फिर ‘‘चन्दनामती’’ पुन: भव वन में ना भ्रमूँ।।
।। इत्याशीर्वाद:।।
Tags:
Vrat's Puja
Previous post
कवलचान्द्रायण पूजा
Next post
गणधरवलय पूजा
Related Articles
भगवान श्री नेमिनाथ जिनपूजा
July 19, 2020
jambudweep
णमोकार महामंत्र पूजा
July 28, 2020
jambudweep
श्री सप्तऋषि पूजा
July 4, 2020
jambudweep
error:
Content is protected !!