जग के जीवों के शरणागत, मिथ्यात्व तिमिर हरने वाले।
तुम कर्मदली तुम महाबली, शिवरमणी को वरने वाले।।
हे पार्श्वनाथ! तेरी महिमा, सारे ही जग से न्यारी है।
तब ही तो पद्मावति माता, तव चरणों में बलिहारी है।।
ऐसी माता का आह्वानन, स्थापन करने आये हैं।
पुष्पों को अंजलि में भरकर पुष्पांजलि करने आये हैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवि! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवि! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवि! अत्र मम-सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।।
अष्टक
तर्ज—देखा एक ख्वाब तो ये……..
रत्नों की झारि में मैं नीर भर के लाई माँ।
अपनी तृषा बुझाने तेरे पास आई माँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं जलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
धन धान्यसुत की चाह से तृप्ति हुई नहीं।
चंदन चरण में चर्चते ही तृप्ति हो गयी।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं चंदनं गृहाण गृहाण स्वाहा।
तंदुल धवल के पुंज तव चरण में चढ़ाऊँ।
सौभाग्य हो अखण्ड यही भावना भाऊँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं अक्षतं गृहाण गृहाण स्वाहा।
चंपा चमेली केतकी पुष्पों को मंगाऊँ।
हर्षितमना होकर तेरे चरणों में चढ़ाऊँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा।
नैवेद्य सब तरह के बना करके मैं लाऊँ।
रत्नों के थाल में सजा-सजा के चढ़ाऊँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं नैवेद्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
दीपक जला के मैं तुम्हारी आरती करूँ।
दे दो सुज्ञान माँ यही मैं याचना करूँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं दीपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
चंदन अगरु कपूर युक्त धूप जलाऊँ।
सुरभित दशों दिशाएँ हो मन भावना भाऊँ।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन हैं खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
अंगूर आम्र आदि फल के थाल सजाके।
हो आश पूरी आए जो चरणों में आपके।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं फलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
जलगंध पुष्प फल चरुवर सबको मिलाके।
पूजा करे जो अघ्र्य से मनकंज खिला के।।
सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।
करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावति महादेवी! इदं अर्घं गृहाण गृहाण स्वाहा।
पद्मावती माता तुम्हारे गुण अनेक हैं।
पारसप्रभु की गाथा भी इसमें विशेष है।।
सुनिए प्रभु की गौरव गाथा अब हम सुनाते हैं।
पूजन करने के बाद अब जयमाला गाते हैं।।
तर्ज—करती हूँ तुम्हारी भक्ति………
वंदन पद्मावति माता तुम, स्वीकार करो ना।
हम दर पे तेरे आए, बेड़ा पार करो माँ।। पद्मावति माता……।।
इक दिन कुमारावस्था में पारस प्रभू चले।
लेकर सखागण साथ में थे घूमने निकले।।
गंगातट पर एक तापसी खोटे तप कर रहा।
जलती लकड़ी के अन्दर नागयुगल झुलस रहा।।
ऐसे मिथ्या आचरणों का, संहार करो माँ।
हम दर पे तेरे आए, बेड़ा पार करो माँ।।१।।
पारस प्रभू उसके निकट आये जब देखने।
अन्दर की बातें जानकर उससे लगे कहने।।
दुर्गति में जायेगा ऐसा मिथ्यातप करने से।
दिखलाया नागयुगल को जो मरणासन्न जलने से।।
ऐसे मरणासन्न प्राणी का, उद्धार करो माँ।
हम दर पे तेरे आए, बेड़ा पार करो माँ।।२।।
पारस प्रभू ने करुणाकर उपदेश जब दिया।
संन्यास धारकर मरने से उत्तमगति बंध किया।।
धरणेन्द्र और पद्मावती दोनों बन गये जाकर।
पारस प्रभु का वंदन किया तत्क्षण यहाँ आकर।।
महामंत्र राज का सुमिरन अब साकार करो माँ।
हम दर पे तेरे आए, बेड़ा पार करो माँ।।३।।
ऐसी माता पद्मावती की वंदना करूँ।
जल आदिक आठों द्रव्यों से मैं अर्चना करूँ।।
बहुतों पे माता आपने उपकार है किया।
अब हम पर भी हे माता! दिखला दो अपनी दया।।
सांसारिक दु:खों का मेरे, संहार करो माँ।
हम दर पे तेरे आए, बेड़ा पार करो माँ।।४।।
‘त्रिशला’ ने यह पूजा रची भक्ति मन में धरके।
उसका फल बस ये चाहती प्रभु भक्ति भरे मुझमें।।
वंदन पद्मावति माता……..।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्र्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्रीपद्मावति महादेव्यै पूर्णार्घं।
दोहा
हे माता मम हृदय में, पूर्णरूप से आप।
त्रुटि कहीं जो रह गयी, कर दो मुझ को माफ।।
।।इत्याशीर्वाद:।।