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शांतिसागर – Shantisaagar.
Name of the first Digambar Jain Acharya of 20th century , the disciple of Muni Shri Devendrakirti Maharaj.
बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य-आप दक्षिण देश के भोज ग्राम ( कर्नाटक ) के रहने वाले क्षत्रिय वंशी भीमगौड़ा-सत्यवती के पुत्र थे “आपका जन्म आषाढ़ कृ.6, वि. सं. 1929 ( सन् 1872 ) में हुआ एवं 9 वर्ष की आयु में विवाह हो गया परन्तु 6 माह पश्चात् ही आपकी पत्नी का देहांत हो गया ”
पुनः आपने विवाह नहीं किया और वि. सं. 1972 में देवेन्द्रकीर्ति मुनि से क्षुल्लक एवं वि.सं. 1976 में उन्ही से 47 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा ली ” वि. सं. 1984 में जब आप सम्मेदशिखर जी पधारे तब आपने संघ में सात मुनि एवं क्षुल्लक व ब्रह्मचारी आदि थे ” इस कलिकाल में भी आपने आदर्श रूप से 12 वर्ष की समाधि धारण की एवं वि. सं. 2000 (ई. 1943) में भक्तप्रत्याख्यान व्रत धारण करके 14 अगस्त सन् 1955 में कुथलगिरि क्षेत्र पर इंगिनी मरण व्रत धारण किया एवं 18 सितम्बर सन् 1955, रविवार, प्रातः 7 बजकर 10 मिनट पर आप इस नश्वर देह को त्याग कर स्वर्ग सिधार गये ” आपने 24 अगस्त सन् 1955 को ही अपने सुयोग्य शिष्य वीरसागारजी महाराज को आचार्य पद सौंप दिया था ” वर्तमान में चल रही चतुर्विध संघ परम्परा आपके ही कृपा प्रसाद का फल है ” वर्तमान में आपकी अक्षुण्ण परम्परा की सातवीं पीढ़ी में सप्तम पट्टाचार्य आचार्य श्री अनेकान्त सागर जी महाराज चतुर्विध संघ का संचालन कर रहे हैं “