== कर्म निर्जरा के लिए किया गया तपश्चरण ‘तप’ कहलाता है। तप के दो भेद हैं-बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप के छह भेद हैं-अनशन-उपवास करना, अवमौदर्य-भूख से कम खाना, व्रत्तपरिसंख्यान-घर, गली अथवा अन्य पदार्थों का नियम करके आहार ग्रहण करना, रसपरित्याग-घी, दूध आदि रसों में एक, दो या सभी रसों का त्याग करना। विविक्त शय्यासन – एकान्त स्थान में या गुरु के सानिध्य में शयन आसन करना। कायक्लेश – कुक्कुट आसन, पद्मासन, खड्गासन, प्रतिमायोग आदि से ध्यान करना। अभ्यन्तर तप के छह भेद हैं- प्रायश्चित्त – व्रत आदि में दोष लग जाने से गुरु से उसका दण्ड लेना। विनय-रत्नत्रयधारकों की विनय करना, वैयावृत्य-आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि व्रतीजनों की सेवा करना, स्वाध्याय – शास्त्रों का पठन-पाठन आदि करना, व्युत्सर्ग-पापों के कारणरूप उपधि-परिग्र्रह का त्याग करना, ध्यान-पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, रूपातीत आदि प्रकार से ध्यान करना। इन बारह प्रकार के तपों का एकदेशरूप से शक्ति के अनुसार श्रावकों को भी अनुष्ठान करना चाहिए। मुख्यतया इसका अनुष्ठान मुनियों में ही होता है।