1. स्वयंभुवे नमस्तुभ्य, मुत्पाद्यात्मानमात्मनि ।
स्वात्मनैव तथोद्भूत, वृत्तयेऽचिन्त्य वृत्तये ॥ 1 ॥
Svayambhuve Namastubhya, Mutpādyātmāna Mātmāni
Svātmanaiva Tathodbhuta Vrattaye (a) chintya Vrattaye || 1 ||
अर्थ : हे जिनेंद्र! आपने अपने आत्मा के द्वारा अपने आत्मा में अपने स्वरूप को प्रकट किया है। अतः आप स्वयंभू हैं और आपको आत्मा में ही लीन होने चारित्र की तथा अचिन्त्य माहात्म्य की प्राप्ति हुई है। इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
Hey Jinendra! You have realised your ownself by yourself for your self, And by you self. Hence youself are existent. You have attained the conduct akin to the nature of self and you have attained inconceivable grandeur. So I bow to you.
2. नमस्ते जगतां पत्ये, लक्ष्मी भर्त्रे नमोस्तु ते ।
विदाम्वर नमस्तुभ्यं, नमस्ते वदताम्वर ॥2 ॥
Namaste Jagatam Patye, Laxmi Bhartre Namostu Te |
Vidamvara Namastubhyam, Namaste Vadatamvara || 2 ||
अर्थ : हे जिनेंद्र! आप तीनों लोकों के नाथ अंतरंग ज्ञानादि तथा बहिरंग समवशरण रूप लक्ष्मी के स्वामी, विद्वानों में श्रेष्ठ और वक्ताओं के नायक है। आपको नमस्कार हो।
Hey Jinendra! You are the lord of three world. The owner of internal knowledge etc and goddess of wealth in the form of external auditorium of Tirthankara. You are supreme among the learneds and the leader of orator. I bow to you .
3. कर्मशत्रु हणं देव, मामनन्ति मनीषिणः ।
त्वामानमत् सुरेण्मीलि भामालाऽभ्यर्पित क्रमम् ॥3॥
Karma Shatru Hanam Deva, Mimananti Manishinah
Tvamanamat Surenmaull Bhimilata)bhiyarchita Kramami
अर्थ : हे जिनेंद्र ज्ञानीजन आपको कर्मरूप शत्रु का संहारकर्ता मानते हैं तथा यह भी मानते हैं कि इंद्र वृन्द अपने मुन्टों की कांति परंपरा से आपके चरणों की पूजा करते हैं।
Hey Jinendra! Sagacious, acknowledge, you to be the destroyer of karma-enemy and this also accepted that the assembly of lord of devas adored your holy feet with the their customary brightness of their crowns.
4. ध्यान दुर्घण निर्मित्र, पन घाति महातरूः ।
अनन्तभव संतान, जया दासी रनन्तजित् ॥4॥
Dhyana Durghana Nirbhinna Ghana Ghati Mahitaruh |
Ananta Bhava Santina, Jayi Disi Rananta-Jit 4 ||
अर्थ- हे जिनेंद्र! आपने अपने शुक्ल ध्यान रूप कुठार के प्रहार से अपने सघन घातिया कर्म रूप महावृक्ष को छिन्न-भिन्न कर दिया है तथा अपनी अनंत संसार की परंपरा का क्षय करने से आप ‘अनंतजित’ कहे जाते हैं।
Hey Jinendral You have cut off and dispersed away the huge dence tree of thick destructive karmas by the adze’s stroke of your pure meditation, and for destroying the tradition. of infinite universe. You are called Anantajit (अनंतजित्) the victor of infinite world.
5. मृत्युराज विजित्यासी जिन मृत्युभान् ॥5॥
Tralokya Nirjaya Vipta, Durdarpa Mati Durjayar
Mratyurajam Vijityasi, Jina Mratyulijay Bhavan 5 ||
अर्थ- हे जिनेंद्र तीनों लोकों को अपने वश में कर लेने से महाभिमानी था अतिदुर्जय मृत्युराज को भी आपने पराजित किया है जिससे आप “मृत्यु कहलाते हैं।
Hey Jinendra! You have overpowered the three world by yourself You also defeated the highly proud and very impregnable lord of death. Where by you are called the victor of death ‘Mratyunjaya)
6. छविता संसार बन्धनव्ययाः त्रिपुरारित्वमीशाऽसि जन्ममृत्युजरात कृत ॥
Vidhata Shesha Sansira, Bandhanobhavya
Bandhavah Tripurana Tama arma Meatyu Jaana Krita
अर्थ- हे जिनेा आपने अपने तथा यों के समस्त धन नष्ट कर दिया है। इससे तथा जन्म जरा मृत्यु के नाशक होने से आप ही ‘त्रिपुरारि ।
Hey Jinendra! You have ended all bonds of your own and of other potential souls. So you are the majestic kinsfolk and by being the destroyer of birth, oldage and death. Only you are Tripurari’ (निपुरार)
7. त्रिकालविशेष केवलानेोऽरिर स्वामीशितः ॥7॥
Trikala Vishayajajihesha Tattva Bhedat Tridhotthitam
Kevalikhyam Dadhachchakshus Trinetro(a)si Tvami shitahs
हे जिनेद्रा आपने’ कहे जाते है क्योकि आपके ज्ञान नेत्र का सद्भाव है जिसमें त्रिकालगोचर समस्त अपनी उत्पाद व्यप्रय रूप अवस्थाओं सहित प्रकाशमान होते है।
Hey Jinendra! You are called the possessor of three eyes, Because these exists the eye of prefect knowledge in you in which all elements visible in three eras shine in the states of productivity, corrosion and eternity.
8. यामामा प्राहु, महान्यासुर मर्दनात्।
अर्द्ध से मारो यस्माद, नारीश्वरोऽस्थतः ॥8 ॥
Tvamandhaka(a)ntakamPrahur Mohindnisura Mardanit
Arddham Te Nirayo Yasmadardha Ninhvaro(a)syatahes
अर्थ- हे जिनेद्रा आपने मोहरूप अधासुर का नाश किया है। इससे आप ‘क’ कहलाते है तथा आपके आठ कर्मों में अर्थ अर्थात् वार धानिया कर्म नहीं है। इससे आप अर्धनारीश्वर’ (अर्थ+नअरि+ईश्वर कहे जाते हैं।)
Hey Jinendral You have destructed the blind demon of attachment So you are called Andhakantaka’ (atrasferas) (destroyer of demonly blindness) and among your eight karmas, viz you do not possess of four destructive karmas. Hence you are called Ardhanarsihvara (अर्धनारीश्वर) The lord having not half enemies
9. शिव शिव पदाध्यासाद, दुरितारि हरो हरः ।
शकृत लोके भवत्वं भवन्मुखे ॥9॥
Shivah Shiva Padidhyassd, Duritari Haro Harah
Shakarah Kratham Loke, Shambhavastvam Bhavan sukhe
अर्थ- हे जिनेंद्र! आप मुक्ति-स्थल में निवास करने से “शिव” पाप रूप शत्रुओं के नाशक होने से “हर” जगत् को आनंददायक होने से ‘शंकर’ तथा आनंद सुख में होने से ‘संभव’ कहे जाते हैं।
Hey Jinendra! Because you lived in liberation place. So. you are called ‘Shiva’ (fat), As you are the destroyer of sins. the enemies. So you are called ‘Hara’ (हर), You are delightful for world. So you are called ‘Shankara’ (शहर) and you are called ‘Shambhava’ (भव) As you are engrossed in infinite. blina
10. वृषभोऽसि जगज्ज्येष्ठः पुरुष पुरुगुणोदयैः। नामेयो नामि सम्भूते, रिश्वाकु कुलनंदनः ॥10॥
Vrashabho (a)si Jagajiyeshthah, Puruh Purgunodaya
Nibheyo Nibhi Sambhute, Rekshviku Kulanandanah
अर्थ- हे जिनेंद्र! आप जगत में सर्वश्रेष्ठ होने से ‘वृषभ’ महान गुणों को उत्पन्न करने से पुरु महाराज के पुत्र अपन होने से ‘नामेय’ तया उत्पन्न होने से ‘इक्ष्वाकु कुलनंदन’ कहलाते हो।
Hey Jinendral You are supreme in the world, So you are [called Vrashabha’ (वृषभ) Because of produced of eminent virtues you are called ‘Puru’ (पुरु), For becoming the son of Maharaja Nabhiraya You are called Nabneya’ (नाव) Because of tom in the Ikshviku dynasty you are called “teshavākukulanandana ( कुलनंदन).
11. त्वमेकः पुरुषा लोकस्य लोचने विधा बुद्ध समास त्रिधार
Tvamekah Punishaskandnas, Tvam Ove Lokasya Lochane
Tam Tridha Buddha Sanmirgas Trigyastngyinadhirakaha
अर्थ- हे निंद्रा सभी पुरुषों में श्रेष्ठ होने से एक आप ही पुरुषस्कन्ध (पुरुषोत्तम), जनता के मार्गदर्शक होने से जगत् के दो नेत्र स्वरूप (द्विलोम), सम्यग्दर्शन प्राप्त चरित्र रूप मोक्षमार्ग के ज्ञाता होने से ‘ज्ञ’ तथा त्रिलोक त्रिकाल के ज्ञानधारक होने से ‘विज्ञानधारक’ कहे जाते हैं।
Hey Jinendral You alone are the greatest among all persons. So you are called ‘Punushaskandha’ (yea), The greatest spirit (Purushottama पुरुषोत्तम). You are guide for public like two eyes of the world, So you are called Dvilochane (द्विलोचने) Because of you are knower of right taith, knowledge, conductful the way of liberation, So you are called Trigyal (चिह्न) and you are retentive of knowledge of the three world and the three eras. So you are called. Trigyanadharaka’ (विज्ञान)
12. चतुः शरणमाल्य मूर्तिस्त्वं चतुस्यधीः।
पंचदेव पावन त्वं पुनीहिमाम् ॥12॥
Chatoh Sharana Mangalya, Martistvam Chaturasrachi
Paicha Brahmamayo Deva, Rivanas Tvom Puninimnim
अर्थ- हे जिने आप ही अरित सिद्ध साधु केवलिणीत धर्म शरणचतुष्टया मंगल चतुष्की मूर्ति है। आप ही द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव रूप से समस्त पदार्थों के आता होने से ‘चतुरची’ कहे जाते हैं। आप ही पञ्च परमेष्ठी स्वरूप तथा परम पवित्र है आप मुझे भी पत्र कीजिए।
Hey Jinendra! You are idol of Arihanta Siddha, Sadhu and by the omniscient as propounded religion, Shelter Quarternion, auspicious quarternion. Only you are the knower of all matters substances, place, time, feelings. So you are called ‘Chaturasradhi (चतुरस्रपी) Only you are the form of Pancha Parameshth and supreme purity. So. Hey Deva! You purify me too.
13. स्वर्गावतरणे तुभ्यं राघो जातात्मने नमः।
जन्माभिषेक वागाय, वामदेव नमोस्तुते ॥13 ॥
Svrgi(ajvatarine Tubhyam Sadyo Jatatmane Namah |
Janmabhisheka Vimiya, Vamadeva Namostu] Te || 13 |
अर्थ है जिनेद्रा आप स्वर्ग से अवतरण के समय ही पुनः भय नहीं धारण करने वाले होने से ‘सद्योजातात्मा’ कहलाते हो तथा जन्माभिषेक के समय आप बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ते थे इसलिए आप ‘बामदेव लाते है। आपको मेरा प्रणाम है।
Hey Jinendra! You become non retentive of rebirth since the time of descent from heaven. So you are called ‘Sadyo(a) jatatma (retson) You looked very handsome at time of birth] [unction. Hence you are called Vamadeva’ (वामदेव) । bow to you.
14. सन्निधौरा पर ज्ञानसंसिद्धा दीशानाय नमोस्तु ते ॥14॥
Sannishkräntäva Ghoraya, Param Praihama Miyushe
Kevalagyana Sansiddhi, Vishiniya Namostu Te 14
अर्थ – है जिनेद्रा आप परम उपशात काय भाव को प्राप्त, अतः दीक्षा दान के समय पर मुद्रा के धारक तथा केवलज्ञानी उपलब्ध होने पर सर्वशान ईश्वर कहे जाने वाले है। मेरा नमस्कार है।
Hey Jinendra! You have obtained the supreme subsided delusion of nature. So having retentive of unrivalled gesture of calmness of time of initiation and only at the achievement of perfect knowledge, you are about to called Almighty god I bow to you.
15. पुरस्ततपुरुषत्वेन विमुक्ति पद भाषि
नमस्तत्पुरुषावस्था, भाविनीयते ॥15॥
Purastatpurushatvena, Vimukhi Pada Bhijine
Namastipurush(a)vastham Bhavinim Terajdya Vibrate 15
अर्थ – है जिनद्रा आप भविष्य में शुद्ध आत्म स्वरूप के द्वारा सिद्धावस्था के पात्र होगे। जिससे आगामी सिद्ध के आपको मेरा नमस्कार है।
Hey Jinendra! You will be a recipient of the supreme state of pure god-hood from the purity of soul in future. Therefore ratentive of the coming supreme state of god-hood. I bow to you.
16 ज्ञानावरण निहतान् नमस्तेअनन्त हुये। दर्शनाच्छेद नमस्ते विश्वदृश्यते ॥16 ॥
Gyanivarana Nirasan, Namaste ananta Chakshushe
Darshanavarnochchhedin, Namaste Vichvadraihvanew
अर्थ है जिनेंद्र आप ज्ञानावरण कर्म के क्षय से अनन्त वधु (अनंतज्ञानी) तथा दर्शनावरण कर्म के रूप से विश्वदृश्वा (समस्त विश्व के दृष्टा) कहे जाते है। अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are called infinite eyed (infinite wise) due to destruction of knowledge obscuring karmas, and Due to ruined of perception obscuring karmas. You are called ‘Vishivadrathiva’ (विस्पदृश्य) (Visitor of all world). So I bow to you.
17. नमो दर्शन मोह लिये नमश्चारित्र मोहजे, विरागाय महौजसे ॥17॥
Namo Darshana Mohaghne. Kshiyikaramala Drashtaye
Namachchantra Mohaghne, Virigiya Mahaujase
अर्थ- हे जिनेदा आप दर्शनमोहनीय कर्म के नाशक, निर्मल साथि सम्यग्दर्शन सहित पारित्रमोहनीय कर्म के नाशक, वीतराग तथा अतिशय है। अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendral You are the destroyer of faith deluding karmas, with pure annihilating serene vision, you are the destroyer of conduct-deluding karmas and you are passionless and excessive splendent. So I bow to you.
18 नमस्ते नमोऽमन्त सुखात्मने। नमस्तेऽनन्त लोकाय, लोकालोकावलोकिने ।। 18 ।।
Namaste(ananta Viryiya, Namo (ananta Sukhatmane |
Namaste(a)nanta Lokaya, Lokalokivalokine 18
अर्थ है जिनेंद्र आप अनन्त शक्ति के धारक, अनन्तसुख स्वरूप अनन्त दर्शन सहित तथा लोकालोक के ज्ञाता है। अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are retentive of infinite strength Form of infinite bliss. Ful of infinite faith and knower of universe- non-universe. So I bow to you.
19. नमस्तेनन्त दानाय नमस्तेऽनालये।
नमस्तेऽनन्त भोगाय नमोऽनन्तोपमोगिने ॥19॥
Namaste(a)nanta Diniya, Namaste(ajnanta Labdhaye
Namaste(a)nanta Bhogiya, Namo(a)nantopathogine
अर्थ- हे जिनेद्रा आप अनन्तदान गुण पुरु, अनन्नासन्धि सहित अनन्तभोगाविभावक तथा अनन्तउपभोग युक्त है अतः आपको मेरा नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are filled with the virtue of infinito charity with infinite attainment, infinite enjoyment, Annihilating) nature and with infinite consumption. So bow to you.
20 नमः परम योगाय नमस्तुभ्य मयोनये
नमः परन पूताय नमस्ते परमये ॥20॥
Namah Parma Yogiya, Namastubhya Mayonaye
Namah Parama Potiya, Namaste Paramarshaye120॥
अर्थ- हे जिनेंद्र! आप परमध्यानी चौरासी लाख योनियों से रहित होने अयोनि’ परम पवित्र तथा परमर्षि रूप है अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are supreme meditator. For being without eighty four lac wombs. You are womblessness. Greatly chaste and supremly sageous. So I bow to you
21 नमः परम विद्याय नमः परमतच्छि
नमः परम तत्वाय नमस्ते परमात्मने ॥21॥
Namah Parama Vidyiya Namah Paramatachchhide
Namah Parama Tattviya, Namaste Paramitmane
अर्थ- हे जिनेद्रा आप केवलज्ञान विद्या के धारक होने से ‘परमविद्य एक छेद होने से ‘परमतच्छिन्द्’ पत्न आत्मतत्व रूप होने परमत’ तथा ‘परमात्मा’ है अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra You are the possessor of perfect knowledge. So you are called Paramavidya (परमविद्य) Since you are annihilative of other one sided methods. So you are called ‘Paramnatachchhida (परमतच्छिद) Owing to supreme solf elementness You are called Paramratattiava’ (परमतत्व) and (transcendental soul) ‘Paramatma’ (परमात्मा) 50 bow to you
22 नमः परमाय नमः परमतेजसे। नमः परमाय नमस्ते परमेष्ठिने॥22॥
Namah Paramna Rupaya Namah Parama Tejate
Namah Parama Mirgiya, Namaste Parameshthine
अर्थ- हे जिने आप अति सुंदर, विशाल तेजस्वी, मोक्ष स्वरूप और परमेष्ठी है। अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are excessively handsome, Highly radiant. Form of path to liberation and the enjoyer of the highest status. So bow to you.
25 परम धाम्ने परम ज्योतिषे नमः। नपातः प्राप्त धाम पर ॥23॥
Paramardhushe Dhimne, Parama Jyotish Namah
Namah Paretaman Prapta Dhamne Parataraiaatmane
अर्थ- हे जिनेंद्र! आप सर्वोत्कृष्ट कदि युक्त, मोक्ष के अधिवासी, अति तिजरदी, परमज्योति स्वरूप, अज्ञान रूप अंधकार से मुक्त तेज पुज्न चा श्रेष्ठ आत्मस्वरूप है। इससे आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are with whole eminent spernatural power or prosponty resident of liberation. Very glorious. Full of supreme splendouress Heap of glory. Free from the darkness of ignorance and you are the supreme nature, soul, Therefore I bow to you.
देयरफोर इससे 24 नमः क्षीण नमोस्तुते। .
नमस्ते क्षीण मोहाय क्षीण दोषाय ते नमः ॥24॥
Namah Kshinakalakiya, Kahinabandha Namostu Te
Namaste Kshina Mohiya, Kahina Doshiya Te Namah
अर्थ- हे कर्मविहीन जिनेद्रा आप कर्म कलंक मुक्त, क्षी मोह और क्षीण दोष है। इससे आपको नमस्कार है।
Hey, deprived of karmas bondage. Jinendra! You are free from all blots. Delusionless and feeble of faultes. So I bow to you.
25 नमः सुगतये तुभ्यं, सोनी गति नीचे
नमस्तेऽतीन्द्रिय ज्ञान, सुखाया:निन्द्रियात्मने ॥25॥
Namah Sugataye Tubhyam, Shobhanim Gab
Miyushe Namastatindra Gana Sukhiyaanndhyatmane
अर्थ – है जिनेद्रा आप गुतिरूप गति को प्राप्त प्रशस्त सिद्धमति को प्राप्त अतीन्द्रिय ज्ञान और सुख के धारक तथा अतीन्द्रिय स्वरूप है इससे आपको नमस्कार है।
Hey Jinendral You have obtained blissful state of liberation.Obtained graceful state of liberation. You are retentive of super unsensuous knowledge and happiness and super unsensuous nature of soul. So I bow to you.
26 बंधन निर्माक्षाय नमोस्तुते नमस्तुभ्य योगा योगिनामधियोगिने ॥26॥
Kiya Bandhana Nirmoksha Dakiyaya Namostu
Te Namastubhiya Mayogaya Yoginimadhi Yogine 26
अर्थ- हे जिनेंद्र आप शरीर रूप बंधन से छूट जाने से अशरीर, मन, मन का रूप योगों से रहित योगियों के प्रमुख है। अब आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra You have liberated from bondage of body So you are incorporal, Volitionless by mind, speech and physique and leader of ascetices. So I bow to you.
27. अपेदाय नमस्तुभ्य ते नमः।
नमः परम योगीन्द्र, यन्दितासिया से 27 ||
Avediya Namastubhya, Makashayaya Te Namah
Namah Parama Yogindra, Vandidirghn Dvayiya Te 27
अर्थ – है जिनंद! आप वेद रहित होनेसे ‘वेद’ मायरहित होने से कहे जाते है तथा आपके घर महान योगीश्वरों के द्वारा वंदित ॥ अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are free from sex. So you are called ‘Berless’, ‘Aveda’ (अ) You are free from passion So you are called ‘Passionless Akashiya (अवपाय) and your feet: are adored by great lord of ascetices. So I bow to you.
28 नमः परम विज्ञान नमः परमः
नमः परम दृदृष्ट, परमार्याय तादिने ॥28॥
Namah Parama Vigylna, Namah Parama Sanyama
Namah Parama Dragdrashta, Paramarthayatäyine] [28] ॥
अर्थ- है जिने आप श्रेष्ठ विज्ञानवान श्रेष्ठ संयमी, परमार्थ के दृष्टा तथा परमार्थ के ज्ञाता है। अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendral You are the best scientist, the best temperate Beholder and Knower of ultimate view point Sol bow to you.
29 नमस्तुभ्यमलेाय शुक्ल लेख्यांक स्पृ
नमो भव्येतराज्यस्था, व्यतीताविमोक्षणे ॥29॥
Namastubhya Maleshylya, Shukia Leshyanthaka Sprache
Namo Bhavye Tars (ajhasthi, Vyatitiya Vimokshane
अर्थ – है जिनेंद्र आप लेश्याओं से रहित, शुभ लक्ष्या के अंशों से क्या संज्ञा से रहित तथा क्त रूप है। अतः आपको मेरा नमस्कार है।
Hey Jinendra! You are free from colourations. possessed with all particles of wholesome colouration without from potential soul and non-potential soul’s sensation and the liberated soul. So I bow to you.
30. संजय संज्ञियावस्था व्यतिरिका मलारगने।
नमस्ते बीताय नमः क्षायिक दृष्टये ॥30॥
Sangyya Sangyi Dviyavasthi, Vyatrikt(a) malitmane
Namaste Vita Sangyiya, Namah Kshlyka Drashtaye
अर्थ- हे निद्रा आप न राजी है, न अजी है आपकी आत्मा निर्मल शुद्ध है आपके आहारादि धाराओं का अभाव है तथा आपक सष्ट है आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra You are neither intellectual not non- Intellectual being But your soul is neat and pure You have the lack of food Le four sensations and you are pure irrevocable believer. So I bow to you.
31. अनाहारा तृप्ताय नमः परमा
ताशेषदोष भवतः पार- गीषे ॥31॥
Anahiraya Traptaya Namah Parama Bhajushe Vyatiti
jihesha Doshasya Bhavabdhah Paramoushe
अर्थ – है जिनेंद्री आप आहाररहित होकर भी सदा तृपा, अतिशय कान्तियुक्त, अष्टदोष रहित और संसार सिन्धु के पारगामी है। अत आपको नमस्कार है।
Hey Jinendra! You have always complete satiate inspite of taking no food, Filled with excessive brightness, without eighteen faults and conversant of world ocean. So I bow to you
32. अजराय नमस्तुभ्यं नमस्ते स्तादजन्मने मृत्यनस्तु मचने ॥32॥
Ajaraya Namastubhyam, Namasta-Stidajanmane
Amratyave Namastubhya. Machalaya(akaharatmaneas
अर्थ – है जिनेंद्र! आप अजर, अजन्मा, अमर और अनिश्वर है अतः आपको नमस्कार है।
Hey Jinendral You are free from oldage, unbor immortal, immobile and undying. So 1 bow to you
Meaning शब्दार्थ free from oldage की फ्रॉम ओल्डे अजर, unborn अनवॉन अजन्मा, immortal इम्पोर्टल अमर mobile मोबाइल अचल, undying अनाविनश्वर
33. अलमास्ता गुणस्तोत्रम गुण
नाम स्मृतिमा पर्युपासिरियामहे ॥33॥
Alamism Gunastotra, Manantaativak Gunah
Tvam Nama Samrat Mitrena Paryupasi Sishimate
अर्थ – है जिनेंद्र! आपके गुणों का कथन है, क्योंकि आपके गुण अनंत है। अतः आपके नामों का स्मरण करके ही हम आपकी उपासना चाहते हैं।
Hey Jinendral Because you have infinite virtues. So your virtues impossible to describe Therefore only remembering of your name. We want worship to you.
34 एवं देवं भवत्या परमया सुधीः।
पनामा शान्तये ॥34॥
Evam Stutva Jinam Devam, Bhakty Paramaya
Sudhih PatheDashtottaram Namnam, Sahasram Papashintaye
अर्थ- उत्कृष्ट भक्ति से जिनेंद्र देव की पूर्व प्रहार स्तुतिकर मुद्धिमान मनुष्य पापों के हेतु इस ‘सहरनाम स्तवन’ का निरतर पाठ करे।
Having sung the praise of Jinendra Deva’ with deep devotion as narrated above, wise persons should do constant reading of Sahasranama Stavana’ (सहस्रनाम स्तवन) intending to destroy of sins.
Il Iti Shri Sahasranama Stotram Prastāvanā Samaptam II
(इतिश्री सहस्रनाम स्तोत्र प्रस्तावना समाप्तम्)