बारह प्रकार के तप के अंतर्गत अभ्यन्तर तप के छह भेदों में अंतिम भेद ध्यान है। इस ध्यान के बल से ही मुनि कर्मों का नाश करते हैं। कहा भी है- ‘सभी सारों में भी सारभूत वस्तु क्या है? हे गौतम! वह सार ध्यान ही है, ऐसा सर्वदर्शियों ने कहा है। ध्यान का लक्षण-एक विषय में चित्तवृत्ति को रोकना ध्यान है। यह उत्तम संहनन वाले को एक अन्तर्मुहूर्त तक हो सकता है। ध्यान के चार भेद हैं-आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल। इनमें से आर्त, रौद्रध्यान संसार के हेतु हैं और धर्म, शुक्लध्यान मोक्ष के हेतु हैं।