ज्ञानावरण –जो आत्मा के ज्ञान गुण को ढके-प्रकट न होने दे, जैसे-देवता के मुख पर पड़ा हुआ वस्त्र।
दर्शनावरण –जो आत्मा का दर्शन न होने दे, जैसे-राजा का पहरेदार।
वेदनीय – जो जीव को सुख-दु:ख का वेदन-अनुभव करावे, जैसे-शहद लपेटी तलवार की धार।
मोहनीय – जो आत्मा को मोहित-अचेतन करे, जैसे-मदिरापान।
आयु –जो जीव को उस-उस स्थान में-पर्याय में रोक रखे, जैसे-सांकल अथवा काठ का यंत्र।
नामकर्म –जो अनेक तरह के शरीर की रचना करे, जैसे-चित्रकार।
गोत्रकर्म –जो ऊँच-नीचपने को प्राप्त करावे, जैसे-कुम्भकार”
अन्तराय – जो दाता और पात्र मे अन्तर-व्यवधान करे, जैसे-भंडारी दूसरे के लिए दान देते समय राजा को रोक देता है।
आठ कर्मों के उत्तर भेद – ज्ञानावरण के ५, दर्शनावरण के ९, वेदनीय के २, मोहनीय के २८, आयु के ४, नाम के ९३, गोत्र के २ और अन्तराय के ५, ऐसे कुल ५+९+२+२८+४+९३+२+५=१४८ भेद होते हैं।