जीवन को मनोनुकूल बनाएं
संसार में आपका नाना प्रकार के लोगों से पाला पड़ता है। एक कमरे में केवल एक सहयोगी के साथ बैठकर काम करना पड़े तो समस्याओं से निपटना आसान होता है, लेकिन सैकड़ों कर्मचारियों के साथ काम करने की स्थिति में आपको कई विचित्र अनुभव मिलेंगे। यदि आप चाहते हैं कि सभी कर्मचारी आपके मन के अनुसार काम करें तो निराशा ही हाथ लगेगी। यह स्थिति इसलिए पैदा नहीं हुई कि दूसरे लोग आपको समझ नहीं पाए, बल्कि इसलिए उत्पन्न हुई कि आप दूसरों को समझ नहीं पाए।
इसी प्रकार निकट संबंधियों से भी आपको निराशा मिली होगी। रिश्तों को कैसे निभाना है और हम उन्हें कैसे निभा रहे हैं, यह जानना आवश्यक है। चाहे कितना ही घनिष्ठ मित्र हो, हमने उसके और अपने बीच एक सीमा रेखा खींच रखी है। कोई भी उसे लांघे तो तुरंत विरोध का झंडा उठा देते हैं। कोई एक उदारतापूर्वक झुक जाए, तभी तो कड़वाहट दूर हो सकती है। यदि आप एक बात समझ लें कि हमारे चारों ओर के लोग बहुत अच्छे हैं, उनमें कोई अवगुण नहीं है, तो सारी समस्याएं समाप्त। संभव है, एकाध मौकों पर उनसे गलत व्यवहार हो गया हो, तो उन्हें तूल देना उचित नहीं है। चाहे रिश्तेदार हों, सहकर्मी हों, मित्र हों, उनके पास ऐसे गुण भी होंगे; जो आपको पसंद हों और ऐसे गुण भी होंगे, जो आपको नापसंद हों। दोनों तरह के गुणों को समान रूप से स्वीकार करने की परिपक्वता आ जाए, तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएं। इसके विपरीत जरूरत पड़ने पर लाड़ प्यार बरसाने और जरूरत खत्म होने पर उन्हें दुत्कारने का रवैया जब तक. रहेगा, अनबन का माहौल बना ही रहेगा।
आप क्यों प्रतीक्षा करते हैं कि लोग बदल जाएं? आप स्वयं बदलिए । घर के सभी लोग बदलकर यदि आप जैसे हो जाएं तो सोचिए कितनी एकरसता आ जाएगी। जीवन अपनी विभिन्नताओं के कारण ही सुंदर लगता है। प्रतीक्षा मत कीजिए कि प्रत्येक व्यक्ति आपकी इच्छानुसार अपने को ढाल लेगा, बल्कि सदैव प्रत्येक व्यक्ति को उसी रूप में अपनाइए, जैसा वह है। ऐसा करने पर चाहे दूसरे लोग आपके मन के अनुसार ‘ न बदलें, जीवन आपके मनोनुकूल बन जाएगा।