पद्म पुराण नामक प्राचीन आर्ष ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी के जीवनवृत्त के मध्य सप्त ऋषियों का बहुत रोमांचक वर्णन आया है जिनके शरीर से स्पर्शित हवा से मथुरा का दैवीय प्रकोप दूर हो गया था तभी से जिनमंदिरों में सप्त ऋषियों की प्रतिमा विराजमान कर रोग – शोकादि को दूर करने के लिए उनकी भक्ति – आराधना की जाती है | उन्हीं सप्तऋषि भगवान् के विधान की रचना पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने गुरुप्रेरणा से की सन २०१० में की पुनः लोगों की मांग आने पर उसे अत्यंत लघु रूप में प्रस्तुत कर पूज्य माताजी ने लोगों को रोग- शोक को दूर कर स्वस्थ जीवन प्राप्त करने का सुन्दर माध्यम प्रदान किया है |