चिंतनीय
माता-1 -पिता की डांट फटकार से नाराज कोई बच्चा यदि थाने पहुंचता है तो इसे बाल अधिकारों के प्रति उसकी जागरुकता से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन लखनऊ में एक किशोरी शिकायत लेकर जिस वजह से थाने पहुंच गई वह कई चिंताजनक सवाल खड़े करता है। किशोरी के पिता ने उसकी जिद पर यह सोचकर स्मार्ट फोन दिला दिया कि उसे पढ़ाई में सहायता होगी। जब उन्होंने देखा कि बेटी पढ़ाई के बजाय अक्सर किसी अजनबी युवक से बात करती रहती है तो टोका। यह बात किशोरी को इतनी अखरी कि वह शिकायत लेकर बुधवार को थाने पहुंच गई । उसका तर्क था कि माता-पिता मेरी जिंदगी में क्यों दखल दे रहे हैं। पता चला कि एक युवक इंस्टाग्राम पर उसकी दोस्ती हुई है। उसके बारे में अधिक जानकारी न तो माता-पिता को है और न ही उस किशोरी को । से बच्चे के सकारात्मक विकास
किशोर-किशोरियों में अपने माता-पिता के प्रति इस तरह के भाव – विचार क्यों पैदा हो रहे हैं? बच्चों व अभिभावकों के बीच फासला क्यों बढ़ रहा है? अभिभावक के बजाय बच्चे किसी अजनबी के इतना करीब क्यों चले गए कि शिकायत लेकर थाने पहुंच रहे? जवाब हर परिस्थिति में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन समग्रता का सार यह है कि हम भौतिक हास हो रहा है। परिवर्तनों और प्रगति के जिन सोपानों से के लिए परिवार, पड़ोस और विद्यालय में जो संस्कार मिलने चाहिए उनके प्रति आग्रह तो कम हुआ ही है, विकारों के प्रति चेतना का भी गुजर रहे हैं उसके विपरीत सामाजिक प्रभावों के प्रति उतने सजग नहीं हैं जितना बदलावों की आंधी के दौर में होना चाहिए। किसी बच्चे के सकारात्मक विकास के लिए परिवार, पड़ोस और विद्यालय में जो संस्कार मिलने चाहिए उनके प्रति आग्रह तो कम हुआ ही है, विकारों के प्रति चेतना का भी ह्रास हो रहा है। इसी मामले में थाने पहुंची किशोरी को समझाकर उसे पिता के सिपुर्द तो कर दिया गया, लेकिन पुलिस ने उस युवक की पड़ताल करने की नहीं सोची जो एक अवयस्क किशोरी से बात करता है। इसी तरह की त्रुटियां परिवार, पड़ोस और विद्यालय भी कर रहे हैं। इस पर
सभी को सोचने और भावी पीढ़ी को गढ़ने में सतर्कता की आवश्यकता है।