अहंकार
अहंकार का अर्थ उस भाव से है जिसमें सदा यह मान कर चलते हैं कि हम ही सही हैं और हम कभी गलत नहीं हो सकते। चाहे युद्ध हो या फिर कोई अपराध ये सभी अहंकार से ही शुरू होते हैं। यदि हम यह स्वीकारने की स्थिति में आ जाएं कि हम गलत भी हो सकते हैं और अपनी गलतियों को स्वीकार करने लगें तो इससे हमारा जीवन तुलनात्मक दृष्टि से सुखी होता है। अहंकार के कारण ही हम अपनी गलती नहीं मानते। इसके कारण ही हम दूसरों के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं। फिर जब परिस्थितियां हमारे वश में नहीं रह जातीं या वे हमारे खिलाफ चली जाती हैं तो हम अपने को दुर्भाग्यशाली समझने लगते हैं। इसका दोष दूसरों पर थोप देते हैं, जबकि उन समस्याओं का मूल कारण हमारा अहंकार होता है।
अहंकार मनुष्य पर इस तरह हावी हो जाता है कि उसे अस्वीकार करने का साहस हर व्यक्ति नहीं जुटा पाता है। इसके पीछे कारण है कि हमने अपनी त्रुटियों को कभी स्वीकार करने का भाव अपने भीतर बनाया ही नहीं होता। जब हम अपनी गलतियों को स्वीकारने और प्रायश्चित करने के मार्ग पर बढ़ते हैं तो हमारा अहंकार यह नहीं करने देता। अहंकार एक ऐसी समस्या है जिसके कारण हमारे व्यक्तित्व का पतन होता है। अहंकार असुरक्षा, घृणा, भय और धारणा को पालता है। ये हमारे प्रगति पथ पर अंधेरा कर देते हैं।
यदि अहंकार दूर करना है तो उसकी शुरुआत सबसे पहले हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने से करें। हमें सदा अपनी कमियों की समीक्षा करते रहना चाहिए। उन्हें सुधारने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। अपने भीतर हमें विवेक पैदा करना चाहिए। विवेक का मतलब है उचित और अनुचित का स्पष्ट भेद। जब हम गलत और सही के बीच में सूक्ष्म भेद को जानकर अच्छा करने लगते हैं तो निश्चित ही अहंकार में कमी आने लगती है और कर्तापन का अभाव होने लगता है, क्योंकि हम प्रत्येक कार्य ईश्वर को समर्पित कर देते हैं।