भावना
भावनाएं मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जिस व्यक्ति के भीतर जिस प्रकार की भावनाएं आकार लेगी, उसका व्यक्तित्व भी उसी अनुरूप विकसित होता जाता है। भावनाएं वास्तव में हमें आंतरिक संदेश देती हैं कि हम जिस स्थिति में हैं था हम जो कर रहे हैं, वाह हमारे विश्वास, हमारी मान्यताओं और हमारी इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप है या नहीं। एक प्रकार से भावनाएं अंतरात्मा की आवाज की ही अभिव्यक्ति हैं। हमारे सभी क्रियाकलाप भावनाओं से ही तो संचालित होते हैं। हम अच्छी भावनाएं महसूस करते हैं तो वे कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं जिनमें हम पारंगत नहीं होते। वहीं, नकारात्मक भावनाओं के वशीभूत होकर वह कार्य भी पूर्ण नहीं कर पाते, जिसमें हमें महारत हासिल होती है।
भावनाएं हमें आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और क्रियात्मक तौर पर प्रभावित करती हैं। यदि हम सकारात्मक भावनाओं से ओतप्रोत हैं तो लाभ में रहेंगे। यदि हम नकारात्मक भावनाओं के नियंत्रण में हैं तो हमें क्षति उठानी पड़ेगी। ऐसे में अपने भावों को इस प्रकार रखना ही उचित होता है कि उनसे अच्छी भावनाएं प्रस्फुटित हों। इसमें अतीत के अनुभव प्रभावी सिद्ध होते हैं। इससे हम वस्तुस्थिति के बेहतर आकलन में सक्षम हो सकते हैं।
अपनी भावनाओं को संतुलित और नियंत्रित रखना जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। बुरी भावनाओं से निपटने का सबसे आसान उपाय है कि उन्हें समझना, न कि उन्हें नकारना या उनके साथ बह जाना। सबसे पहले हम स्वयं से यह पूछें कि हम जो भावना महसूस कर रहे ‘ हैं, वह क्या है, कैसी महसूस हो रही है और वह हमें क्या बताना चाहती है? उसकी प्रकृति और स्वरूप को समझकर हमें उसके साथ अपनी ताल मिलानी चाहिए। स्मरण रहे कि कई बार भावनाओं के अतिरेक में बहकर हम अपना अहित कर बैठते हैं। इसलिए भावनाओं के प्रवाह की थाह लेकर ही आगे की कोई राह चुनना समझदारी है।