अध्यात्म की शक्ति
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की समस्याओं से घिरा रहता है। आध्यात्भिक उपायों से इन समस्याओं का प्रभावी एवं स्थायी समाधान संभव है। राज्य-शक्ति यदि हिंसा, तनाव, द्वेष और अशांति की समस्या को हल कर सकती तो ये समस्याएं कभी की हल हो गई होतीं। जबकि बढ़ती जा रही जेलों और उनमें कैदियों की संख्या यही संकेत करती है कि इन समस्याओं का हल दंडशक्ति से किया जा रहा है, इसीलिए वह अस्थायी है। वहीं, यदि व्यक्ति में आध्यात्मिक चेतना जागृत हो जाए तो वह स्वयं सुधर जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति में बदलने की, सुधरने की शक्ति है। आवश्यकता है उस शक्ति को जगाने की। आध्यात्मिक चेतना जागृत होने पर उलझनें स्वतः समाप्त हो जाती हैं। हनुमान जी की शक्ति को जामवंत जी ने जगाया था। शक्ति तो हनुमान जी में थी, किंतु उस शक्ति का भान उन्हें नहीं था। अपनी जागृत शक्तियों के प्रताप से ही वह विशाल सागर को पार कर लंका को जला पाए। संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राण बचाए। मीरा की आध्यात्मिक चेतना जाग गई तो महाराणा भी उन्हें संकल्प से डिगा नहीं सके। कबीर की आध्यात्मिक चेतना जागी तो इब्राहीम लोदी उन्हें पथ से विचलित नहीं कर सका। वह अपूर्व संत बन गए। पत्नी के कटाक्ष से तुलसी की चेतना जागी तो रामचरितमानस जैसी अद्भुत रचना हुई और तुलसी लोकमानस में प्रतिष्ठित हुए। आध्यात्मिक चेतना जाग गई तो फिर मनुष्य इस लोक में रहते हुए समस्यामुक्त जीवन जीता है।
मनुष्य निज स्वार्थ के कारण ही समस्याओं में घिरता है। तनावग्रस्त, हिंसक और अहंकारी होता है। इन समस्याओं का निदान अध्यात्म की औषधि से ही संभव है। आध्यात्मिक उपचार से लोग बिना चिकित्सक और दवाओं के ही सुख, शांति और संतोष का अनुभव कर सकते हैं। जब यह ज्ञात है कि अध्यात्म के द्वारा हम कई समस्याओं को सुलझा सकते हैं तब फिर हमारा पूरा प्रयत्न आत्मा एवं चेतना और अध्यात्म की दिशा में होना चाहिए।