कुसंग से मुक्ति
मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रयत्न करता रहता है, लेकिन इन प्रयत्नों में सभी लोग सफल नहीं हो पाते। अधिकांश को असफलता का स्वाद चखना पड़ता है। वास्तव में लोग अपनी जीवन यात्रा में सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते। सही लोगों का चुनाव नहीं कर पाते। गलत व्यक्ति की संगति का चुनाव उन्हें जीवन भर कुमार्ग पर चलने पर विवश कर देता है। जब हम अपने जीवन में मित्र का चुनाव करते हैं तो यह बड़ा महत्वपूर्ण समय होता है। अग अगर हमने गलती से भी गलत व्यक्ति का सान्निध्य स्वीकार कर लिया, तो हम स्वयं जीवन में विकृतियों को आमंत्रित करने लगते हैं। नशा, बुरी आदतें, असत्य, चोरी आदि प्रवृत्तियां यहीं से जन्म लेती हैं।
वास्तव में कुसंग एक ज्वर की भांति होता है और यदि इस ज्वर का ज्वार एक बार चढ़ जाए तो फिर जीवन भर उतरने का नाम नहीं लेता। कुसंग रूपी दलदल हमें लीलने को आतुर रहता है। हम उस दलदल में फंसते और धंसते चले जाते हैं। इसीलिए हमें कुसंग के बादलों के मंडराने से पूर्व ही स्वयं का मार्ग बदल लेना चाहिए। अगर लगे कि हमने गलत लोगों को मित्रता के लिए चुन लिया है तो तुरंत उनसे संबंध त्याग देना चाहिए। आपका यह विवेक ही आपको और आपके जीवन में घटित होने वाले अनर्थ से बचा सकता है।
दूसरी ओर, सत्संग से जीवन में विकृतियों को तिलांजलि दी जा सकती है। उन्हें बहुत हद तक खत्म किया जा सकता है। सत्संग ही कुसंग के ज्वर को समाप्त करने की प्रभावी सामर्थ्य रखता है। कुसंगति में पड़कर जीवन की सामर्थ्य को खत्म करने से अच्छा है कि सत्संगति का सुधापान कर अपने जीवन को आलोकित किया जाए। कुसंग का मार्ग वीभत्स है। तिमिर से भरा हुआ है। वहीं सत्संग का आलोक जीवन में उजास और उल्लास को आमंत्रित करता है। सत्संग का मार्ग जीवन की ध्येय यात्रा में सफलता के मोती जड़ता चला जाता है। जीवन को सुंदर एवं सार्थक बनाता है।