उत्सव
हमारा देश तो विभिन्न धर्मों, आस्थाओं, त्योहारों और उत्सवों का देश है। पूरे वर्ष कहीं न कहीं धार्मिक उत्सव मनाए ही जाते रहते हैं। अभी नवरात्र और दशहरा बीते हैं। धनतेरस, दीपावली, भाई दूज, छठ आदि त्योहार भी दस्तक देने वाले हैं। अभी से व्रत, भजन कीर्तन, मंगल गान से समस्त वातावरण भक्तिभाव से सराबोर है। सच में आज की संघर्षपूर्ण दिनचर्या में उत्सवों की मिलावट न हो तो जीवन कदाचित दूभर हो जाए।
हम आए दिन के छिट-पुट प्रकरणों को भी प्रथागत उत्सवों की तरह मना आनंदित हो सकते हैं। हर दिन को खुशी-खुशी बिताना अपने आप में एक उत्सव ही तो है, लेकिन क्या यह सच में संभव है? यह तो जीवन चक्र है। जहां प्रकाश है तो अंधकार भी होगा। सुख के दिन भी हमेशा नहीं रहते। ऐसे ही दुख के पलों का बीत जाना भी तय है। ऐसे में थोड़े से प्रयास एवं सकारात्मक सोच सुखद परिणाम का कारण बन सकते हैं। आनंद के छोटे-छोटे क्षण और अपनों का सान्निध्य जीवन में उत्सव-सा उत्साह भरने के लिए पर्याप्त हैं।
यह भी एक कड़वा यथार्थ है कि चारों ओर दृष्टि घुमाने पर न जाने कितने लाचार, संतापग्रस्त, रोते- बिलखते प्राणी दिखेंगे। उनकी व्यथा को बांटकर हम स्वयं भी अपने मन के खालीपन, हताशा, निराशा को दूर कर पाने में समर्थ हो सकते हैं। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि दूसरों को खुशी देकर हम उनके मन को कहीं गहराई तक छू सकते हैं। हमारा छोटा सा प्रयास किसी व्यथित जीवन के अंधकार को हमेशा के लिए असीम प्रकाश से भर उत्सव का कारण बन सकता है। आनंदित होने के लिए उत्सवों की राह क्या देखना। अवसाद, वेदना भरे पलों को किसी बहाने उत्सव में बदल दें तो जीवन अवश्य सुखद हो सकता है। चिड़ियों को दाना डालना, किसी भूखे को खाना खिलाना, घायल का उपचार करना, दीन-हीन के प्रति संवेदना रखना हृदय में उल्लास भर सकता है। हम सभी को ऐसे प्रयास अवश्य करने चाहिए।