भन का स्वभाव है कि किसी विशेष वस्तु का थोड़े समय तक आनंद लेने के पश्चात वह दूसरी वस्तु की ओर मुड़ना चाहता है। जबकि सत्य यही है कि संसार में जो चीजें आई हैं, उनका अंत सुनिश्चित है। इसलिए किसी वस्तु का आप आनंद हमेशा नहीं उठा पाएंगे। लोग इस बात को समझ नहीं पाते हैं। वे अपने जीवन की सुगंध को भौतिकता की वेदी पर समर्पित कर देते हैं। इसकी परिणति सदैव कष्टदायी होती है। आनंद मिलता भी है तो क्षणिक।
मनुष्य सदैव सुरक्षित आश्रय की चाह रखता है। क्या आप रेत पर अपना घर बनाएंगे? नहीं, आप अपना घर ठोस मिट्टी की मजबूत नींव पर बनाएंगे। लोग हमेशा अपनी मानसिक क्षमताओं को अनंत काल तक सुरक्षित रखने और लौकिक कारकों से संघर्ष में उन्हें महत्वपूर्ण ऊर्जा देने के लिए एक ठोस आधार की तलाश में रहते हैं। क्या इस संसार में कोई ठोस आधार है? जो सीमित, है वह आपके जीवन का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि वह खत्म हो जाएगा और आपके दिमाग को खाली छोड़ देगा। वह आपको अंधेरे की गर्त में धकेल कर अनंत पथ पर अपनी राह चला जाएगा। इसलिए ब्रह्मा, अनादि और अनंत के अलावा कोई भी आपके मन का विषय और आपके जीवन का आधार नहीं हो सकता है।
फिर क्या करना चाहिए? जो सतही और सीमित है, उसे अनंत और स्थायी रूपों में देखना शुरू करें। तब उसके प्रति आकर्षण और उसके खोने की चिंता नहीं रहेगी। अपने पुत्र से कौन ‘यार नहीं करता है। ईश्वर न करे किसी पिता के सामने उसके पुत्र की मृत्यु हो जाए। पुत्र एक सीमित इकाई है। वह अनंत काल तक जीवित नहीं रह सकता। वह चला जाएगा और रुलाएगा, लेकिन यदि अपने पुत्र के रूप में ब्रह्म की अभिव्यक्ति मान लेते हैं, तो उसे खोने का कभी डर नहीं होगा, गम नहीं होगा, क्योंकि ब्रह्म को कभी खोया नहीं जा सकता। यही जीवन का सबसे सुरक्षित आश्रय स्थल है जो इस लोक से लेकर परलोक को भी सुधार देता है।