जैन धर्म प्रागैतिहासकि काल से चल रहा है। इस काल की अपेक्षा प्रथम तीर्थकर आदिनाथ इसके संस्थापक हैं। शेष 23 तीर्थंकर प्रवर्तक हैं। 24वें तथा अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी ने उसी कड़ी को आगे बढ़ाया है। ऋग्वेद में भी आदिनाथ, अजितनाथ व नेमिनाथ तीर्थंकरों का उल्लेख हुआ है।
जो इन्द्रियों, कषायों और विकारों को जीतते हैं वे जिन कहलाते हैं और जिन को मानने वाले जैन कहलाते हैं।
मद्य (शराब, नशाखोरी), मांस (अंडा, मछली) और मधु (शहद) का त्याग करना और भगवान महावीर के संदेशों पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति अपने को जैन समझ सकता है।
जैन धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक और अत्यंत प्राचीन धर्म है। जैन आचरण की श्रेष्ठ जीवन शैली प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभदायक है। दुनियाँ यदि जैन सिद्धांतों पर अमल करे तो धरती स्वर्ग हो जाए।
जैन कोई जाति नहीं अपितु धर्म है। जैन धर्म में जातिवाद, वर्णवाद, वंशवाद, भाषावाद या संकुचितताओं के लिए कोई जगह नहीं है। जैन धर्म सार्वभौम धर्म है। जैन धर्म किसी के विरोध में या किसी धर्म में से पैदा नहीं हुआ है। वह तो वस्तुनिष्ट, प्राकृतिक धर्म है।
जैन धर्म को प्राचीन सिद्ध करने वाले साक्ष्य सिंधु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ों की खुदाई में भी मिले हैं। 2000 साल पुराने शिलालेख और उससे भी प्राचीन दिगंबर जैन प्रतिमाएँ आज भी चित्तौड़गढ़ स्थित जैन कीर्ति स्तंभ अनेक जगह मौजूद हैं।
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट खारवेल, अमोघवर्ष, जैसे कई राजा और विश्वविख्यात गोम्मटेश्वर बाहुबली की मूर्ति के निर्माता चामुण्डराय तथा महाराणा प्रताप के सहयोगी भामाशाह जैसे अनेक सेनापति जैन धर्म का पालन करते थे।
भगवान महावीर के सत्य अहिंसा सिद्धांत का अनुसरण कर महात्मा गांधी ने देश का स्वतंत्र कराया था। बाद में कई देशों व नेताओं ने उनका अनुसरण किया। आज भी कुछ गांधीवादी विचारधारा के लोग मिलते हैं जो अहिंसा, सत्य, शाकाहार, स्वेदशी और आपसी मैत्री में विश्वास रखते हैं।